संसद के कार्यों में विविधता तो है, साथ ही उसके पास काम की अधिकता भी रहती है। चूंकि उसके पास समय बहुत सीमित होता है, इसलिए उसके समक्ष प्रस्तुत सभी विधायी या अन्य मामलों पर गहन विचार नहीं हो सकता है। अत: इसका बहुत-सा कार्य समितियों द्वारा किया जाता है।
संसद के दोनों सदनों की समितियों की संरचना कुछ अपवादों को छोड़कर एक जैसी होती है। इन समितियों में नियुक्ति, कार्यकाल, कार्य एवं कार्य संचालन की प्रक्रिया कुल मिलाकर करीब एक जैसी ही है और यह संविधान के अनुच्छेद 118 (1) के अंतर्गत दोनों सदनों द्वारा निर्मित नियमों के तहत अधिनियमित होती है।
सामान्यत: ये समितियां दो प्रकार की होती हैं - स्थायी समितियां और तदर्थ समितियां। स्थायी समितियां प्रतिवर्ष या समय-समय पर निर्वाचित या नियुक्त की जाती हैं और इनका कार्य कमोबेश निरंतर चलता रहा है। तदर्थ समितियों की नियुक्ति जरूरत पड़ने पर की जाती है तथा अपना काम पूरा कर लेने और अपनी रिपोर्ट पेश कर देने के बाद वे समाप्त हो जाती हैं।
स्थायी समितियां लोकसभा की स्थायी समितियों में तीन वित्तीय समितियों, यानी लोक लेखा समिति, प्राकक्लन समिति तथा सरकारी उपक्रम समिति का विशिष्ट स्थान है और ये सरकारी खर्च और निष्पादन पर लगातार नजर रखती हैं। लोक लेखा समिति तथा सरकारी उपक्रम समिति में राज्य सभा के सदस्य भी होते हैं, लेकिन प्राक्कलन समिति के सभी सदस्य लोकसभा से होती हैं।
प्राक्कलन समिति यह बताती है कि प्राक्कलनों में निहित नीति के अनुरूप क्या मितव्ययिता बरती जा सकती है तथा संगठन, कार्य कुशलता और प्रशासन में क्या-क्या सुधार किए जा सकते हैं। यह इस बात की भी जांच करती है कि धन प्राक्कलनों में निहित नीति के अनुरूप ही व्यय किया जा सकता है या नहीं। समिति इस बारे में भी सुझाव देती है कि प्राक्कलन को संसद में किस रूप में पेश किया जाए। लोक लेखा समिति भारत सरकार के विनियोग तथा वित्त लेखा और लेखा नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट की जांच करती है। यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी धन संसद के निर्णयों के अनुरूप ही खर्च हो। यह अपव्यय, हानि और निरर्थक व्यय के मामलों की ओर ध्यान दिलाती है। सरकारी उपक्रम समिति नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की, यदि कोई रिपोर्ट हो, तो उसकी जांच करती है। वह इस बात की भी जांच करती है कि ये सरकारी उपक्रम कुशलतापूर्वक चलाए जा रहे हैं या नहीं इनका प्रबंध ठोस व्यापारिक सिद्धांतों और विवेकपूर्ण वाणिज्यिक प्रक्रियाओं के अनुसार किया जा रहा है या नहीं।
इन तीन वित्तीय समितियों के अलावा, लोकसभा की नियमों के बारे में समिति ने विभागों से संबंधित 17 स्थायी समितियां गठित करने की सिफारिश की थी। इसके अनुसार 8 अप्रैल, 1993 को इन 17 समितियों का गठन किया गया। जुलाई 2004 में नियमों में संशोधन किया गया, ताकि ऐसी ही सात और समितियां गठित की जा सकें। इस प्रकार से इन समितियों की संख्या 24 हो गई है। इन समितियों के निम्नलिखित कार्य हैं:
- भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के अनुदानों की मांग पर विचार करना और उसके बारे में सदन को सूचित करना;
- लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति द्वारा समिति के पास भेजे गए ऐसे विधेयकों की जांच-पड़ताल करना, और जैसा भी मामला हो, उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करना;
- मंत्रालयों और विभागों की वार्षिक रिपोर्टों पर विचार करना तथा उसकी रिपोर्ट तैयार करना; और
- सदन में प्रस्तुत नीति संबंधी दस्तावेज, यदि लोकसभा के अध्यक्ष अथवा राज्य सभा के सभापति द्वारा समिति के पास भेजे गए हैं, उन पर विचार करना और जैसा भी हो, उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करना।
प्रत्येक सदन में अन्य स्थायी समितियां, उनके कार्य के अनुसार इस प्रकार विभाजित हैं:
- जांच समितियां:
- याचिका समिति विधेयकों और जनहित संबंधी मामलों पर प्रस्तुत याचिकाओं की जांच करती है और केन्द्रीय विषयों पर प्राप्त प्रतिवेदनों पर विचार करती है; और
- विशेषाधिकार समिति सदन या अध्यक्ष/सभापति द्वारा भेजे गए विशेषाधिकार के किसी भी मामले की जांच करती हैं;
- संवीक्षण समितियां:
- सरकारी आश्वासनों से संबंधी समिति मंत्रियों द्वारा सदन में दिए गए आश्वासनों, वादों एवं संकल्पों पर उनके कार्यान्वित होने तक नजर रखती है;
- अधीनस्थ विधि निर्माण समिति इस बात की जांच करती है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त विनियमों, नियमों, उप-नियमों तथा प्रदत्त शक्तियों का प्राधिकारियों द्वारा उचित उपयोग किया जा रहा है;
- पटल पर रखे गए पत्रों संबंधी समिति वैधानिक अधिसूचनाओं और आदेशों के अलावा, जो कि अधीनस्थ विधान संबंधी समिति के कार्य क्षेत्र में आते हैं, मंत्रियों द्वारा सदन के पटल पर रखे गए सभी कागजातों की जांच करती है और देखती है कि संविधान, अधिनियम, नियम या विनियम के अंतर्गत कागजात प्रस्तुत करते हुए उनकी व्यवस्थाओं का पालन हुआ है या नहीं।
- सदन के दैनिक कार्य से संबंधित समितियां:
- कार्य मंत्रणा समिति सदन में पेश किए जाने वाले सरकारी एवं अन्य कार्य के लिए समय-निर्धारण की सिफारिश करती है;
- गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा प्रस्तावों संबंधी लोकसभा की समिति निजी सदस्यों द्वारा पेश गैर-सरकारी विधेयकों का वर्गीकरण एवं उनके लिए समय का निर्धारण करती है, निजी सदस्यों द्वारा पेश प्रस्तावों पर बहस के लिए समय का निर्धारण करती है और लोकसभा में निजी सदस्यों द्वारा पेश किए जाने से पूर्व संविधान संशोधन विधेयकों की जांच करती है। राज्य सभा में इस तरह की समिति नहीं होती। राज्य सभा की कार्यमंत्रणा समिति की गैर-सरकारी विधेयकों एवं प्रस्तावों के चरण या चरणों में बहस के लिए समय के निर्धारण की सिफारिश करती है।
- नियम समिति सदन में कार्यविधि और कार्यवाही के संचालन से संबंधित मामलों पर विचार करती है और नियमों में संशोधन या संयोजन की सिफारिश करती है, और
- सदन की बैठकों में अनुपस्थित सदस्यों संबंधी लोकसभा की समिति सदन के सदस्यों की बैठकों से अनुपस्थिति या छुट्टी के आवेदनों पर विचार करती है। राज्य सभा में इस प्रकार की कोई समिति नहीं है। सदस्यों की छुट्टी या अनुपस्थिति के आवेदनों पर सदन स्वयं विचार करता है;
- अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण की समिति इसमें दोनों सदनों के सदस्य होते हैं। यह केंद्र सरकार के कार्यक्षेत्र में आने वाली अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी मामलों पर विचार करती है और इस बात पर नजर रखती है कि उन्हें जो संवैधानिक संरक्षण दिए गए हैं, वे ठीक से कार्यान्वित हो रहे हैं या नहीं।
- सदस्यों को सुविधाएं प्रदान करने संबंधी समितियां:
- सामान्य प्रयोजन संबंधी समितिया सदन से संबंधित ऐसे मामलों पर विचार करती है जो किसी अन्य संसदीय समिति के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते तथा अध्यक्ष/सभापति को इस बारे में सलाह देती है, और
- आवास समिति सदस्यों के लिए आवास तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करती है;
- संसद सदस्यों के वेतन और भत्तों संबंधी संयुक्त समिति इस संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं पेंशन अधिनियम 1954 के अंतर्गत गठित की गई है। संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते एवं पेंशन संबंधी नियम बनाने के अतिरिक्त, यह उनके चिकित्सा, आवास, टेलीफोन, डाक, निर्वाचन क्षेत्र एवं सचिवालय संबंधी सुविधाओं के संबंध में नियम बनाती है;
- लाभ के पदों संबंधी संयुक्त समिति यह केंद्र राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा नियुक्त समितियों एवं अन्य निकायों की संरचना और स्वरूप की जांच करती है, और यह सिफारिश करती है कि कौन - कौन से पद ऐसे हों, जो संसद के किसी भी सदन की सदस्यता के लिए किसी व्यक्ति को योग्य अथवा अयोग्य बनाते हैं;
- पुस्तकालय समिति इसमें दोनों सदनों के सदस्य होते हैं। यह संसद के पुस्तकालय से संबंधित मामलों पर विचार करती है, और
- महिला अधिकारिता समिति 29 अप्रैल 1997 को महिलाओं के अधिकारों के बारे में दोनों सदनों के सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया। इसका उद्देश्य, अन्य बातों के साथ, सभी क्षेत्रों में महिलाओं को हैसियत, गरिमा और समानता प्रदान करना है।
- 4 मार्च 1997 को राज्य सभा की आचार संहिता समिति गठित की गई। लोकसभा की आचार-संहिता संबंधी समिति 16 मई, 2000 को गठित की गई।
तदर्थ समितियां: इस तरह की समितियां को मोटे रूप में दो शीर्षकों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:
- संसद के दोनों सदनों द्वारा किसी विचाराधीन प्रस्ताव के स्वीकृत किए जाने पर समय-समय पर गठित समितियां अथवा अध्यक्ष/सभापति द्वारा कोई विशिष्ट विषय (उदाहरण के लिए-राष्ट्रपति, के अभिभाषण पर, कुछ सदस्यों के आचरण पर, कुछ सदस्यों के आचरण पर, पंचवर्षीय योजनाओं के मसौदे पर, रेलवे कनवेंशन समिति, स्थानीय क्षेत्रों के विकास की योजना से संबद्ध सांसदों की समिति, बोफोर्स ठेके पर संयुक्त समिति, उर्वरक मूल्य निर्धारण पर संयुक्त समिति और प्रतिभूति तथा बैंक भुगतानों में गड़बड़ी की जांच करने के लिए संयुक्त समिति, आदि) संसदीय परिसर की सुरक्षा संबंधी संयुक्त समिति और,
- विशेष विधेयकों पर विचार करने एवं रिपोर्ट देने के लिए नियुक्त प्रवर एवं संयुक्त समितियां। जहां तक विधेयकों से संबंधित सवाल है, ये समितियां अन्य तदर्थ समितियों से भिन्न हैं और इनके द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रिया का उल्लेख अध्यक्ष/सभापति के निर्देश तथा प्रक्रिया संबंधी नियमों में किया जाता है।