Bharat Me Jaiv Vividhata भारत में जैव विविधता

भारत में जैव विविधता



GkExams on 06-02-2019

जिस तरह से आज पूरी दुनिया वैश्विक प्रदूषण से जूझ रही है और कृषि क्षेत्र में उत्पादन का संकट बढ़ रहा है, उससे जैवविविधता का महत्त्व बढ़ गया है। लिहाजा, हमें जैविक कृषि को बढ़ावा देने के साथ ही बची हुई प्रजातियों के संरक्षण की जरूरत है क्योंकि 50 से अधिक प्रजातियाँ प्रतिदिन विलुप्त होती जा रही हैं। यह भारत समेत पूरी दुनिया के लिये चिन्ता का विषय है। शायद इसीलिये नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस जर्नल (National Academy of Science Journal) में छपे शोध पत्र में धरती पर जैविक विनाश को लेकर आगाह किया गया है।

करीब साढ़े चार अरब वर्ष की हो चुकी यह धरती अब तक पाँच महाविनाश देख चुकी है। विनाश के इस क्रम में लाखों जीवों और वनस्पितियों की प्रजातियाँ नष्ट हुईं। पाँचवाँ कहर जो पृथ्वी पर बरपा था उसने डायनासोर जैसे महाकाय प्राणी का भी अन्त कर दिया था। इस शोध पत्र में दावा किया गया है कि अब धरती छठे विनाश के दौर में प्रवेश कर चुकी है। इसका अन्त भयावह होगा क्योंकि अब पक्षियों से लेकर जिराफ तक हजारों जानवरों की प्रजातियों की संख्या कम होती जा रही है।

वैज्ञानिकों ने जानवरों की घटती संख्या को वैश्विक महामारी करार देते हुए इसे छठे महाविनाश का हिस्सा बताया है। बीते पाँच महाविनाश प्राकृतिक घटना माने जाते रहे हैं लेकिन वैज्ञानिक छठे महाविनाश की वजह, बड़ी संख्या में जानवरों के भौगोलिक क्षेत्र छिन जाने और पारिस्थितिकी तंत्र का बिगड़ना बता रहे हैं।

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफसर पाल आर इहरीच और रोडोल्फो डिरजो नाम के जिन दो वैज्ञानिकों ने यह शोध तैयार किया है उनकी गणना पद्धति वही है जिसे इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर (International Union of Conservation of Nature) जैसी संस्था अपनाती है। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक 41 हजार 415 पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों की प्रजातियाँ खतरे में हैं।

इहरीच और रोडोल्फो के शोध पत्र के मुताबिक धरती के 30 प्रतिशत कशेरूकीय प्राणी विलुप्त होने के कगार पर हैं। इनमें स्तनपायी, पक्षी, सरीसृप और उभयचर प्राणी शामिल हैं। इस ह्रास के क्रम में चीतों की संख्या 7000 और ओरांगउटांग 5000 ही बचे हैं। इससे पहले के हुए पाँच महाविनाश प्राकृतिक होने के कारण धीमी गति के थे परन्तु छठा विनाश मानव निर्मित है इसलिये इसकी गति बहुत तेज है। ऐसे में यदि तीसरा विश्व युद्ध होता है तो विनाश की गति तांडव का रूप ले सकती है।

इस लिहाज से इस विनाश की चपेट में केवल जीव-जगत की प्रजातियाँ ही नहीं बल्कि अनेक मानव प्रजातियाँ, सभ्यताएँ और संस्कृतियाँ भी आएँगी। शोध पत्र की चेतावनी पर गम्भीर बहस और उसे रोकने के उपाय को अमल में लाया जाना जरूरी है। परन्तु जलवायु परिवर्तन को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के रवैए से ऐसा मालूम पड़ता है कि दुनिया के सभी महत्त्वपूर्ण देश शायद ही इसे गम्भीरता से लेंगे।

छठा महाविनाश मानव निर्मित बताया जा रहा है इसलिये हम मानव का प्रकृति में हस्तक्षेप कितना है इसकी पड़ताल कर लेते हैं। एक समय था जब मनुष्य वन्य पशुओं के भय से गुफाओं और पेड़ों पर आश्रय ढूँढता फिरता था लेकिन ज्यो-ज्यों मानव प्रगति करता गया प्राणियों का स्वामी बनने की उसकी चाह बढ़ती गई। इसी चाहत का परिणाम है कि पशु असुरक्षित होते गए।

वन्य जीव विशेषज्ञों ने ताजा आँकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकला है कि पिछली तीन शताब्दियों में मनुष्य ने अपने निजी हितों की रक्षा के लिये लगभग 200 जीव-जन्तुओं का अस्तित्व ही मिटा दिया। भारत में वर्तमान में करीब 140 जीव-जंतु संकटग्रस्त अवस्था में हैं। ये संकेत वन्य प्राणियों की सुरक्षा की गारंटी देने वाले राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य और चिड़ियाघरों की सम्पूर्ण व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं?

आँकड़े बताते हैं कि पंचांग (कैलेण्डर) के शुरू होने से 18वीं सदी तक प्रत्येक 55 वर्षों में एक वन्य पशु की प्रजाति लुप्त होती रही। वहीं, 18वीं से 20वीं सदी के बीच प्रत्येक 18 माह में एक वन्य प्राणी की प्रजाति नष्ट हो रही है जिन्हें पैदा करना मनुष्य के बस की बात नहीं। वैज्ञानिक क्लोन पद्धति से डायनासोर को धरती पर फिर से अवतरित करने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन अभी इस प्रयोग में कामयाबी नहीं मिली है।

क्लोन पद्धति से भेड़ का निर्माण कर लेने के बाद से वैज्ञानिक इस अहंकार में हैं कि वह लुप्त हो चुकी प्रजातियों को फिर से अस्तित्व में ले आएँगे। चीन ने क्लोन पद्धति से दो बन्दरों के निर्माण का दावा किया है। बावजूद इसके इतिहास गवाह है कि मनुष्य कभी प्रकृति से जीत नहीं पाया है। मनुष्य यदि अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों के अहंकार से बाहर नहीं निकला तो विनाश का आना लगभग तय है। प्रत्येक प्राणी का पारिस्थितिकी तंत्र, खाद्य शृंखला और जैवविविधता की दृष्टि से विशेष महत्त्व होता है जिसे कम करके नहीं आँका जाना चाहिए। क्योंकि इसी पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य शृंखला पर मनुष्य का अस्तित्व टिका है।

भारत में फिरंगियों द्वारा किये गए निर्दोष प्राणियों के शिकार की फेहरिस्त भले ही लम्बी हो पर उनके संरक्षण की पैरवी भी उन्हीं ने की थी। 1907 में पहली बार सर माइकल कीन ने जंगलों को प्राणी अभयारण्य बनाए जाने पर विचार किया जिसे सर जॉन हिबेट ने इसे खारिज कर दिया था। फिर इआर स्टेवान्स ने 1916 में कालागढ़ के जंगल को प्राणी अभयारण्य में तब्दील करने का विचार रखा किन्तु कमिश्नर विन्डम के जबरदस्त विरोध के कारण मामला फिर ठंडे बस्ते में बन्द हो गया।

1934 में गवर्नर सर माल्कम हैली ने कालागढ़ के जंगल को कानूनी संरक्षण देते हुए राष्ट्रीय प्राणी उद्यान बनाने की बात कही। हैली ने मेजर जिम कॉर्बेट से परामर्श करते हुए इसकी सीमाएँ निर्धारित की और 1935 में यूनाईटेड प्रोविंस (वर्तमान उत्तर-प्रदेश एवं उत्तराखंड) नेशनल पार्क एक्ट पारित हुआ और यह अभयारण्य भारत का पहला राष्ट्रीय वन्य प्राणी उद्यान बना। यह हैली के प्रयत्नों से बना था इसलिये इसका नाम ‘हैली नेशनल पार्क’ रखा गया। बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने जिम कॉर्बेट की याद में इसका नाम ‘कॉर्बेट नेशनल पार्क’ रख दिया। इस तरह से भारत में राष्ट्रीय उद्यानों की बुनियाद फिरंगियों ने रखी।

भारत का आधिपत्य दुनिया के मात्र 2.4 प्रतिशत भू-भाग पर है। बावजूद इसके यह दुनिया की सभी ज्ञात प्रजातियों के सात से आठ प्रतिशत हिस्से का निवास स्थान है जिसमें पेड़-पौधों की 45 हजार और जीवों की 91 हजार प्रजातियाँ शामिल हैं। पेड़-पौधों और जीवों की प्रजातियों की संख्या भारत की जैवविविधता की दृष्टि से सम्पन्नता को दर्शाती है।

खेती की बात करें तो कुछ दशकों से पैदावार बढ़ाने के लिये रसायनों के प्रयोग इतने बढ़ गए हैं कि कृषि आश्रित जैवविविधता को बड़ी हानि पहुँची है। आज हालात इतने बदतर हो गए हैं कि प्रतिदिन 50 से अधिक कृषि प्रजातियाँ नष्ट हो रही हैं। हरित क्रान्ति ने हमारी अनाज से सम्बन्धित जरूरतों की पूर्ति तो की पर रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के प्रयोग ने भूमि की सेहत खराब कर दी। इसका प्रतिफल यह हुआ कि कई अनाज की प्रजातियाँ नष्ट हो गईं। अब फसल की उत्पादकता बढ़ाने के बहाने जीएम बीजों का प्रयोग भी जैवविविधता को नष्ट करने की प्रक्रिया को बढ़ा सकता है।

वर्तमान में जिस रफ्तार से वनों की कटाई चल रही है उससे तय है कि 2125 तक जलावन की लकड़ी की भीषण समस्या पैदा होगी। आँकड़े बताते हैं कि प्रतिवर्ष करीब 33 करोड़ टन लकड़ी का इस्तेमाल ईंधन के रूप में होता है। देश की अधिकांश ग्रामीण आबादी ईंधन के लिये लकड़ी पर निर्भर है।

केन्द्र सरकार की उज्ज्वला योजना ईंधन के लिये लकड़ी पर निर्भरता को कम करने के लिये एक कारगर उपाय साबित हो सकती है। इसके अलावा सरकार को वनों के निकट स्थित गाँवों में ईंधन की समस्या दूर करने के लिये गोबर गैस संयंत्र लगाने और प्रत्येक घर तक विद्युत कनेक्शन पहुँचाने पर भी बल देने की जरूरत है।

पालतू पशु इन्हीं वनों में घास चरते हैं अतः यह ग्रामीणों को सस्ती दरों पर उपलब्ध कराई जानी चाहिए। घास की कटाई गाँव के मजदूरों से कराई जानी चाहिए ताकि गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले ग्रामीण और उनके परिवार के भरण-पोषण के लिये धन सुलभ हो सके। ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि इन उपायों से बड़ी मात्रा में जैवविविधता का संरक्षण होगा।

एक समय हमारे यहाँ चावल की अस्सी हजार किस्में थीं लेकिन अब इनमें से कितनी शेष रह गई हैं इसके आँकड़े कृषि विभाग के पास नहीं हैं। जिस तरह सिक्किम पूर्ण रूप से जैविक खेती करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है इससे अन्य राज्यों को प्रेरणा लेने की जरूरत है। कृषि भूमि को बंजर होने से बचाने के लिये भी जैविक खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है।

मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़, देश के ऐसे राज्य हैं जहाँ सबसे अधिक वन और प्राणी संरक्षण स्थल हैं। प्रदेश के वनों का 11 फीसदी से अधिक क्षेत्र उद्यानों और अभयारण्यों के लिये सुरक्षित है। ये वन विंध्य-कैमूर पर्वत के अन्तिम छोर तक यानि दमोह से सागर तक, मुरैना में चंबल और कुँवारी नदियों के बीहड़ों से लेकर कूनो नदी के जंगल तक, शिवपुरी का पठारी क्षेत्र, नर्मदा के दक्षिण में पूर्वी सीमा से लेकर पश्चिमी सीमा बस्तर तक फैले हुए हैं।

देश में सबसे ज्यादा वन और प्राणियों को संरक्षण देने का दावा करने वाले ये राज्य, वन संरक्षण अधिनियम 1980 का उल्लंघन भी धड़ल्ले से कर रहे हैं। साफ है कि जैवविविधता पर संकट गहराया हुआ है। जैवविविधता बनाए रखने के लिये जैविक खेती को भी बढ़ावा देना होगा जिससे कृषि सम्बन्धी जैवविविधता नष्ट न हो।




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Comments Virendra on 29-03-2023

Bhartamadhe jaivivdhta

Virendra on 02-03-2022

BhartamadheKiti % jayvvividhta adhalte?

Virendra on 23-01-2021

Jangaltod kami karnysathi ku upay avalambun pahije?






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