Vishisht Balak Ki Visheshta विशिष्ट बालक की विशेषता

विशिष्ट बालक की विशेषता



Pradeep Chawla on 12-05-2019

आज शिक्षा के सार्वभौमिककरण के प्रयास के तहत विशिष्ट शिक्षा के संप्रत्यय को बल मिला है लेकिन लोगों में अभी भी जागरूकता का अभाव है। विशिष्ट बालक कौन है और विशिष्टता के कितने प्रकार हैं, इस संदर्भ में या तो लोगों को जानकारी ही नहीं है या फिर अपुर्ण जानकारी है। विशिष्ट बालक के मुख्य प्रकार जैसे अस्थि विकलांगता, श्रवण विकलांगता, दृष्टि विकलांगता आदि में तो फिर भी लोग अंतर कर लेते हैं लेकिन मानसिक मंदता, अधिगम अक्षमता पागलपन आदि की जानकारी उन्हें नहीं है। भ्रमवश वे इन सबको एक ही अर्थ में समझते हैं तथा एक ही अर्थ में प्रयोग करते हैं। यह बहुत गंभीर समस्या। अधिगम अक्षमता के साथ ऐसा अधिकांशत: होता है।



हर प्रकार के विशिष्टता की अपनी प्रकृति होती है और उस प्रकृति के अनुकूल ही हमें शिक्षण अधिगम – प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। अत: यह आवश्यक है कि हम विशिष्ट बालकों के विभिन्न प्रकार को जाने एवं समझें। इसी क्रम में, इस इकाई में यह विशिष्ट बालकों को एक प्रकार, अधिगम अक्षमता की परिभाषा, प्रकृति लक्षण, विभिन्न प्रकार एवं विशिष्ट बालकों के अन्य प्रकार से अंतर की चर्चा करेंगे।

उद्देश्य



इस ईकाई के अध्ययन के पश्चात् आप



अधिगम अक्षमता की परिभाषा, प्रकृति, विशेषता की व्याख्या कर सकेंगे

अधिगम अक्षमता के विभिन्न प्रकार का वर्णन कर सकेंगे

अन्य प्रकार की विकलांगताओं एवं अधिगम अक्षमता में अंतर कर सकेंगे।



अधिगम अक्षमता

अधिगम अक्षमता अर्थ और परिभाषा



अधिगम अक्षमता पद दो अलग – अलग पदों अधिगम अक्षमता से मिलकर बना है। अधिगम शब्द का आशय सीखने से है तथा अक्षमता का तात्पर्य क्षमता के अभाव या क्षमता की अनुपस्थिति से है। अर्थात सामान्य भाषा में अधिगम अक्षमता का तात्पर्य सीखने क्षमता अथवा योग्यता की कमी या अनुपस्थिति से है। सीखने में कठिनाइयों को समझने के लिए हमें एक बच्चे की सीखने की क्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों का आकलन करना चाहिए। प्रभावी अधिगम के लिए मजबूत अभीप्रेरणा, सकारात्मक आत्म छवि, और उचित अध्ययन प्रथाएँ एवं रणनीतियां आवश्यक शर्तें हैं (एरो, जेरे-फोलोटिया, हेन्गारी, कारिउकी तथा मकानडावार, 2011) औपचारिक शब्दों में अधिगम अक्षमता को विद्यालयी पाठ्यक्रम सीखने की क्षमता की कमी या अनुपस्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।



अधिगम अक्षमता पद का सर्वप्रथम प्रयोग 1963 ई. में सैमुअल किर्क द्वारा किया गया था और इसे निम्न शब्दों में परिभषित किया था।



अधिगम अक्षमता को वाक्, भाषा, पठन, लेखन अंकगणितीय प्रक्रियाओं में से किसी एक या अधिक प्रक्रियाओं में मंदता, विकृति अथवा अवरूद्ध विकास के रूप में परिभाषित किया जा सकता हैं हो संभवता: मस्तिष्क कार्यविरूपता और या संवेगात्मक अथवा व्यवाहरिक विक्षोभ का परिणाम है न कि मानसिक मंदता, संवेदी अक्षमता अथवा संस्कृतिक अनुदेशन कारक का। (किर्क, 1963)



इसके पश्चात् से अधिगम अक्षमता को परिभाषित करने के लिए विद्वानों द्वारा निरंतर प्रयास किये किए गए लेकिन कोई सर्वमान्य परिभाषा विकसित नहीं हो पाई।



अमेरिका में विकसित फेडरल परिभाषा के अनुसार, विशिष्ट अधिगम अक्षमता को, लिखित एवं मौखिक भाषा के प्रयोग एवं समझने में शामिल एक या अधिक मूल मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया में विकृति, जो व्यक्ति के सोच, वाक्, पठन, लेखन, एवं अंकगणितीय गणना को पूर्ण या आंशिक रूप में प्रभावित करता है, के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसके अंतर्गत इन्द्रियजनित विकलांगता, मस्तिष्क क्षति, अल्पतम असामान्य दिमागी, प्रक्रिया, डिस्लेक्सिया, एवं विकासात्मक वाच्चाघात आदि शामिल है। इसके अंतर्गत वैसे बालक नहीं सम्मिलित किए जाते हैं, जो दृष्टि, श्रवण या गामक विकलांगता, संवेगात्मक विक्षोभ, मानसिक मंदता, संस्कृतिक या आर्थिक दोष के परिणामत: अधिगम संबंधी समस्या से पीड़ित है। (फेडरल रजिस्टर, 1977)



वर्ष 1994 में अमेरिका की अधिगम अक्षमता की राष्ट्रीय संयुक्त समिति (द नेशनल ज्वायंट कमिटी ऑन लंर्निंग डिसेब्लिटिज्म) ने अधिगम अक्षमता को परिभाषित करते हुए कहा कि अधिगम अक्षमता एक सामान्य पद है, जो मानव में अनुमानत: केन्द्रीय तांत्रिक तंत्र के सुचारू रूप से नहीं कार्य करने के कारण उत्पन्न आन्तरिक विकृतियों के विषम समूह, जिसमें की बोलने, सुनने, पढ़ने, लिखने, तर्क करने या गणितीय क्षमता के प्रयोग में कठिनाई शामिल होते हैं, को दर्शाता है। जीवन के किसी भी पड़ाव पर यह उत्पन्न हो सकता है। हालाँकि अधिकतम अक्षमता अन्य प्रकार की अक्षमताओं (जैसे की संवेदी अक्षमता, मानिसक मंदता, गंभीर संवेगात्मक विक्षोभ) या संस्कृतिक भिन्नता, अनुपयुक्तता या अपर्याप्त अनुदेशन के प्रभाव के कारण होता है लेकिन ये दशाएँ अधिगम अक्षमता को प्रत्यक्षत: प्रभावित नहीं करती है. (डी नेशनल ज्वायंट कमिटी ऑन लंर्निंग डिसेब्लिटिज्म - 1994).



उपर्युक्त परिभाषाओं की समीक्षा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अधिगम अक्षमता एक व्यापक संप्रत्यय है, जिसके अंर्तगत वाक्, भाषा, पठन, लेखन, एवं अंकगणितीय प्रक्रियाओं में से एक या अधिक के प्रयोग में शामिल एक या अधिक मूल मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया में विकृति को शामिल किया जाता है, जो अनुमानत: केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के सुचारू रूप से नहीं कार्य करने के कारण उत्पन्न होता है। यह स्वभाव से आंतरिक होता है।

ऐतिहासिक परिदृश्य



अधिगम अक्षमता के इतिहास पर दृष्टिपात करने से आप पाएँगे कि इस पद ने अपना वर्तमान स्वरुप ग्रहण करने के लिए एक लंबा सफर तय किया है। इस पद का सर्वप्रथम प्रयोग 1963 ई. सैमुअल किर्क ने किया था। यह पद आज सार्वभौम एवं सर्वमान्य है। जिसके पूर्व विद्वानों ने अपने – अपने कार्यक्षेत्र के आधार पर अनेक नामकरण किए थे। जैसे – न्यूनतम मस्तिष्क क्षतिग्रस्तता (औषधि विज्ञानियों या चिकित्सा विज्ञानियों द्वारा). मनोस्नायूजनित विकलांगता (मनोवैज्ञानिकों + स्नायुवैज्ञानिकों द्वारा), अतिक्रियाशिलता (मनोवैज्ञानिकों द्वारा), न्यूनतम उपलब्धता (शिक्षा मनोवैज्ञानिकों द्वारा) आदि।



रेड्डी, रमार एवं कुशमा (2003) ने अधिगम अक्षमता के क्षेत्र के विकास को तीन निम्नलिखित चरणों में विभाजित किया है -



प्रारंभिक काल

रूपांतरण काल

स्थापन काल



प्रारंभिक काल – यह काल अधिगम अक्षमता के उदभव से संबंधित है। वर्ष 1802 से 1946 के मध्य का यह समय अधिगम अक्षमता के लिए कार्यकारी साबित हुआ। अधिगम अक्षमता प्रत्यय की पहचान एवं विकास सी समय से आरंभ हुई तथा उनकी पहचान तथा उपयुक्त निराकरण हेतु प्रयास किए जाने लगे।



रूपांतरण काल – यह काल अधिगम अक्षमता के क्षेत्र में एक नये रूपांतरण का काल के रूप में जाना जाता है। जब अधिगम अक्षमता एक विशेष अक्षमता के रूप में स्थापित हुई तथा जब अधिगम अक्षमता प्रत्यय का उद्भव हुआ, इन दोनों के मध्य का संक्रमण का काल रही रूपांतरण काल से संबंधित है।



स्थापन काल – 60 के दशक के मध्य में अधिगम अक्षमता से संबंधित कठिनाइयों को सामूहिक रूप से पहचान की प्राप्ति हुई। इस काल में ही सैमुअल किर्क ने 1963 में अधिगम अक्षमता शब्द को प्रतिपादित किया। 60 के दशक के बाद इस क्षेत्र में अनेक विकासात्मक कार्य किए गए विशिष्ट शिक्षा में अधिगम अक्षमता एक बड़े उपक्षेत्र के रूप में प्रतिस्थापित हुई।



क्रूकशैक ने 1972 में 40 शब्दों का एक शब्दकोष विकसित किया। इसी क्रम में यदि आप कुर्त गोल्डस्टीन द्वारा 1927 ई. 1936 ई. एवं 1939 ई. में किए गए कार्यों का मूल्यांकन करें तो आप पाएँगे कि उनके उनके द्वारा वैसे मस्तिष्कीय क्षतिग्रस्त सैनिकों जो प्रथम विश्वयुद्ध में कार्यरत थे की अधिगम समस्याओं का जो उल्लेख किया गया है, वही अधिगम अक्षमता का आधार स्तंभ है. उनके अनुसार, ऐसे लोगों से अनुक्रिया प्राप्त करने में अधिक प्रयत्न करना पड़ता है। इनमें आकृति पृष्ठभूमि भ्रम बना रहता है, ये अतिक्रियाशील होते हैं तथा इनकी क्रियाएँ उत्तेजनात्मक होती हैं। स्ट्रास (1939) ने अपने अध्ययन में कुछ लक्षण बताए थे जो मूलत: अधिगम अक्षम बालकों पर बल दिया जो बुद्धिलब्धि परिक्षण पर सामान्य से कम बुद्धिलब्धि रखते थे। उन्होंने कहा कि यदि किसी बालक की बूद्धिलब्धि न्यून और साथ ही न्यूनतम शैक्षिक योग्यता प्राप्त करता है तो उसकी शैक्षिक योग्यता की न्यूनता का कारण बूद्धिलब्धि की न्यूनता ही है। इन अध्ययनों को सैमुअल किर्क ने अपने अध्ययन का आधार बनाया और कहा कि अधिगम अक्षमता सिर्फ शैक्षिक न्यूनता नहीं है। यह न्यूनतम मस्तिष्क क्षतिग्रस्तता, पढ़ने की दक्षता में समस्या अतिक्रियाशिलता आदि जैसे गुणों का समूह है। उन्होंने ये भी कहा जो बालक इन सारे गुणों से संयुक्त रूप से पीड़ित है, वो अधिगम अक्षम बालक है। शैक्षिक न्यून बालकों के संबंध में अपने मत को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि अधिगम अक्षम बालक शैक्षिक न्यूनता से पीड़ित होगा और यह न्यूनता उनके एवं वाह्य दशाओं के परिणाम के कारण ही नहीं बल्कि उसमें उपलब्ध न्यूनतम शैक्षिक दशाओं के कारण भी संभव है। सैमुअल किर्क ने इस कार्य को और प्रसारित करने के लिए अधिगम अक्षमता अध्ययनकर्ताओं का एक संघ बनाया जिसे एशोसिएशन फॉर चिल्ड्रेन विद लर्निंग डिसएब्लिटी कहा गया और अधिगम अक्षमता शोध पत्रिका का प्रारंभ किया। आज विश्व स्तर पर अधिगम अक्षमता संबंधी अध्ययन किए जा रहे हैं और अधिगम अक्षमता पर आधारित दो विश्वस्तरीय शोध पत्रिकाएँ मौजूद हैं जो किए जा रहे अध्ययनों का प्रचार प्रसार करने में अपनी भूमिका निभा रही हैं।



भारत में इस संबंध में कार्य शुरू हुए अभी बहुत कम समय हुआ है आज यह पश्चिमी में अधिगम अक्षमता संबंधी हो रहे कार्यों के तुलनीय है। भारत वर्ष में अधिगम अक्षम बालकों की पहचान विदेशियों द्वारा की गई लेकिन धीरे – धीरे भारतियों में भी जागरूकता बढ़ रही है। वर्तमान में भारत में सरकारी और गैर – सरकारी संस्थाएँ इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। लेकिन, आज भी अधिगम अक्षमता में भारत में कानूनी विकलांगता के रूप में पहचान नहीं मिली है। नि:शक्त जन (समान अवसर, अधिकार संरक्षण, और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 में उल्लेखित सात प्रकार की विकलांगता में यह शामिल नहीं है। ज्ञात हो कि यही अधिनियम भारतवर्ष में विकलांगता के क्षेत्र में सबसे वृहद कानून है। अर्थात भारत में अधिगम अक्षम बालक को कानूनी रूप से विशिष्ट सेवा पाने का आधार नहीं है।

अधिगम अक्षमता की प्रकृति एवं विशेषताएँ



अधिगम संबंधी कठिनाई, श्रवण, दृष्टि, स्वास्थ, वाक् एवं संवेग आदि से संबंधित अस्थायी समस्याओं से जुड़ी होती है। समस्या का समाधान होते ही अधिगम संबंधी वह कठिनाई समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत अधिगम अक्षमता उस स्थिति को कहते हैं जहाँ व्यक्ति की योग्यता एवं उपलब्धि में एक स्पष्ट अंतर हो। यह अंतर संभवत: स्नायूजनित होता है तथा यह व्यक्ति विशेष में आजीवन उपस्थित रहता है।



चूंकि अधिगम अक्षमता को कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है और जनगणना में अधिगम अक्षमता को आधार नहीं बनाया जाता है। इसलिए देश में मौजूद अधिगम अक्षम बालकों के संबंध में ठीक – ठीक आंकड़ा प्रदान करना तो अति मुश्किल है लेकिन एक अनुमान के अनुसार यह कहा जा सकता है कि देश में इस प्रकार के बालकों की संख्या अन्य प्रकार के विकलांगता बालकों की संख्या से कहीं ज्यादा है। यह संख्या, देश में उपलब्ध कुल स्कूली जनसंख्या के 1-42 प्रतिशत तक हो सकता है। वर्ष 2012 में चेन्नई में समावेशी शिक्षा एवं व्यवसायिक विकल्प विषय पर सम्पन्न हुए एक अंतराष्ट्रीय सम्मेलन लर्न 2012 में विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में लगभग 10% बालक अधिगम अक्षम हैं। (टाइम्स ऑफ़ इंडिया, जनवरी 27,2012)



अधिगम अक्षमता की विभिन्न मान्यताओं पर दृष्टिपात करने से अधिगम अक्षमता की प्रकृति के संबंध में आपको निम्नलिखित बातें दृष्टिगोचर होगी-



अधिगम अक्षमता आंतरिक होती है।

यह स्थायी स्वरुप का होता है अर्थात यह व्यक्ति विशेष में आजीवन विद्यमान रहता है।

यह कोई एक विकृति नहीं बल्कि विकृतियों का एक विषम समूह है।

इस समस्या से ग्रसित व्यक्तियों में कई प्रकार के व्यवहार और विशेषताएँ पाई जाती है।

चूंकि यह समस्या केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की कार्यविरूपता से संबंधित है, अत: यह एक जैविक समस्या है।

यह अन्य प्रकार की विकृतियों के साथ हो सकता है, जैसे – अधिगम अक्षमता और संवेगात्मक विक्षोभ तथा

यह श्रवण, सोच, वाक्, पठन, लेखन एवं अंकगणिततीय गणना में शामिल मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया में विकृति के फलस्वरूप उत्पन्न होता है, अत: यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या भी है।



अधिगम अक्षम बालक



सामान्य और सामान्य से थोड़ा ज्यादा सोचने एवं तर्क करने की योग्यता

औसत विद्यालय उपलब्धि से निम्न का प्रदर्शन

उपलब्धि और योग्यता केबीच में सार्थक अंतर का प्रदर्शन

निष्पादन संबंधी कठिनाई से युक्त।



अधिगम अक्षमता के लक्षण को आप अधिगम अक्षम बालकों की विशेषताओं के संदर्भ में समझ सकते हैं।



उपरोक्त मुख्य लक्षणों के अतिरिक्त कुछ अन्य लक्षण भी प्रदर्शित कर सकते हैं.जो निम्नलिखित है –



बिना सोचे – विचारे कार्य करना

उपयुक्त आचरण नहीं करना

निर्णयात्मक क्षमता का अभाव

स्वयं के प्रति लापरवाही

लक्ष्य से आसानी से विचलित होना

सामान्य ध्वनियों एवं दृश्यों के प्रति आकर्षण

ध्यान कम केन्द्रित करना या ध्यान का भटकाव

भावात्मक अस्थिरता

एक ही स्थिति में शांत एवं स्थिर रहने की असमर्थता

स्वप्रगति के प्रति लापरवाही बरतना

सामान्य से ज्यादा सक्रियता

गामक क्रियाओं में बाधा

कार्य करने की मंद गति

सामान्य कार्य को संपादित करने के लिए एक से अधिक बार प्रयास करना

पाठ्य सहगामी क्रियाओं में शामिल नहीं होना

क्षीण स्मरण शक्ति का होना

बिना वाह्य हस्तक्षेप के अन्य गतिविधियों में भाग लेना में असमर्थ होना तथा

प्रत्यक्षीकरण संबंधी दोष।



अधिगम अक्षमता का वर्गीकरण







अधिगम अक्षमता एक वृहद् प्रकार के कई आधारों पर विभेदीकृत किया गया है। ये सारे विभेदीकरण अपने उद्देश्यों के अनुकूल हैं। इसका प्रमुख विभेदीकरण ब्रिटिश कोलंबिया (201) एवं ब्रिटेन के शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक सपोर्टिंग स्टूडेंट्स विद लर्निंग डिएबलिटी ए गाइड फॉर टीचर्स में दिया गया है, जो निम्नलिखित है -



डिस्लेक्सिया (पढ़ने संबंधी विकार)

डिस्ग्राफिया (लेखन संबंधी विकार)

डिस्कैलकूलिया (गणितीय कौशल संबंधी विकार)

डिस्फैसिया (वाक् क्षमता संबंधी विकार)

डिस्प्रैक्सिया (लेखन एवं चित्रांकन संबंधी विकार)

डिसऑर्थोग्राफ़िय (वर्तनी संबंधी विकार)

ऑडीटरी प्रोसेसिंग डिसआर्डर (श्रवण संबंधी विकार)

विजुअल परसेप्शन डिसआर्डर (दृश्य प्रत्यक्षण क्षमता संबंधी विकार)

सेंसरी इंटीग्रेशन ऑर प्रोसेसिंग डिसआर्डर (इन्द्रिय समन्वयन क्षमता संबंधी विकार)

ऑर्गेनाइजेशनल लर्निंग डिसआर्डर (संगठनात्मक पठन संबंधी विकार)



अब आप बारी – बारी से एक – एक का अध्ययन करेंगे।

डिस्लेक्सिया



डिस्लेक्सिया शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्द डस और लेक्सिस से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है कथन भाषा (डिफिकल्ट स्पीच)। वर्ष 1887 में एक जर्मन नेत्र रोग विशेषज्ञ रूडोल्बर्लिन द्वारा खोजे गए इस शब्द को शब्द अंधता भी कहा जाता है। डिस्लेक्सिया को भाषायी और संकेतिक कोडों भाषा के ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वर्णमाला के अक्षरों या संख्याओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अंकों के संसाधन में होने वाली कठिनाई के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह भाषा के लिखित रूप, मौखिक रूप एवं भाषायी दक्षता को प्रभावित करता है यह अधिगम अक्षमता का सबसे सामान्य प्रकार है।



डिस्लेक्सिया के लक्षण - इसके निम्नलिखित लक्षण है –



वर्णमाला अधिगम में कठिनाई

अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई

एकाग्रता में कठिनाई

पढ़ते समय स्वर वर्णों का लोप होना

शब्दों को उल्टा या अक्षरों का क्रम इधर – उधर कर पढ़ा जाना, जैसे नाम को मान या शावक को शक पढ़ा जाना

वर्तनी दोष से पीड़ित होना

समान उच्चारण वाले ध्वनियों को न पहचान पाना

शब्दकोष का अभाव

भाषा का अर्थपूर्ण प्रयोग का अभाव तथा

क्षीण स्मरण शक्ति



डिस्लेक्सिया की पहचान – उपर्युक्त लक्षण हालाँकि डिस्लेक्सिया की पहचान करने में उपयोगी होते हैं लेकिन इस लक्षणों के आधार पर पूर्णत: विश्वास के साथ किसी भी व्यक्ति को डिस्लेक्सिया घोषित नहीं किया जा सकता है। डिस्लेक्सिया की पहचान करने के लिए सं 1973 में अमेरिकन फिजिशियन एलेना बोडर ने बोड टेस्ट ऑफ़ रीडिंग स्पेलिंग पैटर्न नामक एक परिक्षण का विकास किया। भारत में इसके लिए डिस्लेक्सिया अर्ली स्क्रीनिंग टेस्ट और डिस्लेक्सिया स्क्रीनिंगटेस्ट का प्रयोग किया जाता है।



डिस्लेक्सिया का उपचार – डिस्लेक्सिया पूर्ण उपचार अंसभव है लेकिन इसको उचित शिक्षण - अधिगम पद्धति के द्वारा निम्नतम स्तर पर लाया जा सकता है।

डिस्ग्रफिया



डिस्ग्रफिया अधिगम अक्षमता का वो प्रकार है जो लेखन क्षमता को प्रभावित करता है। यह वर्तनी संबंधी कठिनाई, ख़राब हस्तलेखन एवं अपने विचारों को लिपिवद्ध करने में कठिनाई के रूप में जाना जाता है। (नेशनल सेंटर फॉर लर्निंग डिसबलिटिज्म, 2006)।



डिस्ग्रफिया के लक्षण – इसके निम्नलिखित लक्षण है –



लिखते समय स्वयं से बातें करना।

अशुद्ध वर्तनी एवं अनियमित रूप और आकार वाले अक्षर को लिखना

पठनीय होने पर भी कापी करने में अत्यधिक श्रम का प्रयोग करना

लेखन समग्री पर कमजोर पकड़ या लेखन सामग्री को कागज के बहुत नजदीक पकड़ना

अपठनीय हस्तलेखन

लाइनों का ऊपर – नीचे लिया जाना एवं शब्दों के बीच अनियमित स्थान छोड़ना तथा

अपूर्ण अक्षर या शब्द लिखना



उपचार कार्यक्रम – चूंकि यह एक लेखन संबंधी विकार है, अत: इसके उपचार के लिए यह आवश्यक है कि इस अधिगम अक्षमता से ग्रसित व्यक्ति को लेखन का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास कराया जाय।

डिस्कैलकुलिया



यह एक व्यापक पद है जिसका प्रयोग गणितीय कौशल अक्षमता के लिए किया जाता है इसके अन्तरगत अंकों संख्याओं के अर्थ समझने की अयोग्यता से लेकर अंकगणितीय समस्याओं के समाधान में सूत्रों एवं सिंद्धांतों के प्रयोग की अयोग्यता तथा सभी प्रकार के गणितीय अक्षमता शामिल है।



डिस्कैलकुलिया के लक्षण – इसके निम्नलिखित लक्षण है –



नाम एवं चेहरा पहचनाने में कठिनाई

अंकगणितीय संक्रियाओं के चिह्नों को समझने में कठिनाई

अंकगणितीय संक्रियाओं के अशुद्ध परिणाम मिलना

गिनने के लिए उँगलियों का प्रयोग

वित्तीय योजना या बजट बनाने में कठिनाई

चेकबुक के प्रयोग में कठिनाई

दिशा ज्ञान का अभाव या अल्प समझ

नकद अंतरण या भुगतान से डर

समय की अनुपयुक्त समझ के कारण समय - सारणी बनाने में कठिनाई का अनुभव करना।



डिस्कैलकुलिया के कारण – इसका करण मस्तिष्क में उपस्थित कार्टेक्स की कार्यविरूपता को माना जाता है। कभी - कभी तार्किक चिंतन क्षमता के अभाव के कारण उया कर्य्क्रारी स्मिरती के अभाव के कारण भी डिस्ग्राफिया उत्पन्न होता है।



डिस्कैलकुलिया का उपचार – उचित शिक्षण- अधिगम रणनीति अपनाकर डिस्कैलकुलिया को कम किया जा सकता है। कुछ प्रमुख रणनीतियां निम्नलिखित हैं –



जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से संबंधी उदहारण प्रस्तुत करना

गणितीय तथ्यों को याद करने के लिए अतिरिक्त समय प्रदान करना

फ्लैश कार्ड्स और कम्प्यूटर गेम्स का प्रयोग करना तथा

गणित को सरल करना और यह बताना कि यह एक कौशल है जिसे अर्जित किया जा सकता है।



डिस्फैसिया



ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिस और फासिया जिनके शाब्दिक अर्थ अक्षमता एवं वाक् होते हैं से मिलकर बने है, शब्द डिस्फैसिया का शाब्दिक अर्थ वाक् अक्षमता से है। यह एक भाषा एवं वाक् संबंधी विकृति है जिससे ग्रसित बच्चे विचार की अभिव्यक्ति व्याख्यान के समय कठिनाई महसूस करते हैं। इस अक्षमता के लिए मुख्य रूप से मस्तिष्क क्षति (ब्रेन डैमेज) को उत्तरदायी माना जाता है।

डीस्प्रैक्सिया



यह मुख्य रूप से चित्रांकन संबंधी अक्षमता की ओर संकेत करता है। इससे ग्रसित बच्चे लिखने एवं चित्र बनाने में कठिनाई महसूस करते हैं।

अधिगम अक्षमता और मानसिक मंदता



अधिगम अक्षमता और मानसिक मंदता पद एक सामान्य आदमी भाषा में एक दूसरे के पर्याय हैं और भ्रमवश वे दोनों पदों का एक ही अर्थ में प्रयोग करते हैं। यह सवर्था गलत है। अधिगम अक्षमता और मानसिक मंदता में स्पष्ट अंतर है जिन्हें आप उनकी परिभाषाओं के माध्यम से समझ सकेंगे।



अधिगम अक्षमता को लिखित या मौखिक भाषा के प्रयोग में शामिल किसी एक या अधिक मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं में कार्यविरूपता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जबकी मानसिक मंदता को मानसिक विकास की ऐसी अवस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें बच्चों का बौद्धिक विकास औसत बुद्धि वाले बालकों से कम होता है। इस अंतर को आप निम्नलिखित तालिका के माध्यम से आप और स्पष्ट कर सकते हैं –



अधिगम अक्षमता





मानसिक मंदता



1. औसत या औसत से ज्यादा बूद्धिलब्धि प्राप्तांक





बूद्धिलब्धि प्राप्तांक 70 या उससे कम



2. मस्तिष्क की सामान्य कार्य- प्रणाली बाधित नहीं होती है या औसत होती है





मस्तिष्क की सामान्य कार्य प्रणाली औसत से कम



योग्यता और उपलब्धि में स्पष्ट अंतर





दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में पूर्णत: अक्षम या कठिनाई का सामना



4. अधिगम अक्षम व्यक्ति मानसिक मंदता से ग्रसित हो यह आवश्यक नहीं है





मानसिक मंद व्यक्ति आवश्यक रूप से अधिगम अक्षमता से ग्रसित होते हैं



यह किसी में भी हो सकता है





यह महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में ज्यादा पाई जाती है









अधिगम अक्षमता और स्लो लर्नर्स व पिछड़े बालक







अधिगम अक्षमता पद भ्रमवश स्लो लर्नर्स बालकों के लिए भी सामान्यत: प्रयोग किया जाता है। वर्तमान परिदृश्य में भी एक बहुत बड़ी जनसंख्या इन दोनों पदों का प्रयोग एक ही अर्थ में करती है। यह इन दोनों ही पदों का अनुपयुक्त प्रयोग है। दोनों पद एक दुसरे से सर्वथा भिन्न हैं। दोनों पदों के बीच स्पष्ट खिंची विभाजन रेखा को आप इनकी परिभाषाओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं।



एक स्लो लर्नर्स औसत से कम बुद्धि का बालक होता है जिसके सोचने की क्षमता, उस आयु समूह के बालकों के लिए निश्चित किए गए मानदंड से कम होता है। ऐसे बालक विकास की सभी अवस्थाओं से गुजरते हैं जो उसके लिए है लेकिन उस आयु समूह के सामान्य बालकों की तुलना में सार्थक रूप से धीमी गति से जबकि एक अधिगम अक्षम बालक औसत या ज्यादा बुद्धिवाला होता है जिसे कुछ विशिष्ट समस्याएँ होती हैं जो अधिगम को बहुत कठिन बना देती हैं। इस प्रकार अधिगम अक्षमता स्लो लर्निंग से भिन्न संप्रत्यय है।



पिछड़े बालक पद एक सापेक्ष पद है जिसकी व्याख्या शिक्षा, आर्थिक स्थिति, मानसिक स्थिति, सामाजिक स्थिती आदि के संदर्भ में की जाती है। यहाँ हम शिक्षा के संदर्भ में इसकी व्याख्या करेंगे। शिक्षा के संदर्भ में यह बालकों के एक विशिष्ट वर्ग को इंगित करता है जो किसी भी कारणवश अपने उम्र के अन्य बालकों ए कम निष्पादन करते हैं। वो मानिसक मंदता से ग्रसित हो सकते हैं या अधिगम अक्षमता से या फिर कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण पिछड़े हो सकते है। ये सब पिछड़े हुए बालक कहे जाएंगे।



अधिगम अक्षमता के संर्दभ में इसका अध्ययन करने पर आप पाएँगे कि अधिगम अक्षमता पद इसकी तुलना में एक संकीर्ण पद है। पिछड़े बालक पद एक अति व्यापक पद है। ये दोनों पद एक – दुसरे के पर्याय नहीं हैं बल्कि ये एक दुसरे से सार्थक रूप से भिन्न हैं। अधिगम अक्षमता और शैक्षिक रूप से पिछड़े बालक के मध्य अंतर को आप तालिका 2 के माध्यम से और स्पष्ट रूप से समझ सकेंगे।

सारांश



प्रस्तुत इकाई में हमने अधिगम अक्षमता के अर्थ, प्रकृति, लक्षण आदि पर चर्चा की और इस पर भी विवेचन किया है कि अधिगम संबंधी कठिनाई से अधिगम अक्षमता किस प्रकार अलग है। हमने अधिगम क्षमता के विभिन्न प्रकार, उनके लक्षण, कारण, उपचार एवं उनसे प्रभावित होनेवाले कौशलों की भी चर्चा की है। अधिगम अक्षमता के इतिहास एवं इसके प्रसार को भी स्पष्ट किया है। अधिगम अक्षमता का अन्य प्रकार की अक्षमताओं से जैसे मानसिक मंदता, स्लो लर्निंग, शैक्षिक पिछड़ापन आदि से अंतर को भी इस इकाई में स्पष्ट किया गया है।




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