Bharat Me Praval Bhitti भारत में प्रवाल भित्ति

भारत में प्रवाल भित्ति



Pradeep Chawla on 27-09-2018

प्रवालभित्तियाँ या प्रवाल शैल-श्रेणियाँ (Coral reefs) समुद्र के भीतर स्थित चट्टान हैं जो प्रवालों द्वारा छोड़े गए कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होती हैं। वस्तुतः ये इन छोटे जीवों की बस्तियाँ होती हैं। साधारणत: प्रवाल-शैल-श्रेणियाँ, उष्ण एवं उथले जलवो सागरों, विशेषकर प्रशांत महासागर में स्थित, अनेक उष्ण अथवा उपोष्णदेशीय द्वीपों के सामीप्य में बहुतायत से पाई जाती है।


ऐसा आँका गया है कि सब मिलाकर प्रवाल-शेल-श्रेणियाँ लगभग पाँच लाख वर्ग मील में फैली हुई हैं और तरंगों द्वारा इनके अपक्षरण से उत्पन्न कैसियम मलवा इससे भी कहीं अधिक क्षेत्र में समुद्र के पेदें में फैला हुआ है। कैल्सियम कार्बोनेट की इन भव्य शैलश्रेणियों का निर्माण प्रवालों में प्रजनन अंडों या मुकुलन (budding) द्वारा होता है, जिससे कई सहस्र प्रवालों के उपनिवेश मिलकर इन महान आकार के शैलों की रचना करते हैं। पॉलिप समुद्र जल से घुले हुए कैल्सियम को लेकर अपने शरीर के चारों प्याले के रूप में कैल्सियम कार्बोनेट का स्रावण करते हैं। इन पॉलिपों के द्वारा ही प्रवाल निवह का निर्माण होता है।


ज्यों ज्यों प्रवाल निवहों का विस्तार होता जाता है, उनकी ऊर्ष्वमुखी वृद्धि होती रहती है। वृद्ध प्रवाल मरते जाते हैं, इन मृत्तक प्रवालों के कैल्सियमी कंकाल, जिनपर अन्य भविष्य की संततियां की वृद्धि होती है, नीचे दबते जाते हैं। कालांतर में इस प्रकार से संचित अवसाद श्वेत स्पंजी चूनापत्थर के रूप में संयोजित (cemented) हो जाते हैं। इनकी ऊपरी सतह पर प्रवाल निवास पलते और बढ़ते रहते हैं। इन्हीं से प्रवाल-शैल-श्रेणियाँ बनती हैं समुद्र सतह तक आ जाने पर इनकी ऊर्ध्वमुखी वृद्धि अवरुद्ध हो जाता है, क्योंकि खुले हुए वातावरण में प्रवाल कतिपय घंटों से अधिक जीवि नहीं रह सकते।


सागर की गह्वरता और ताप का प्रवालशृंखलाओं के विस्तरर पर अत्याधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि शैलनिर्माण करने वाले जीव केवल उन्हीं स्थानों पर जीवित रह सकते है, जहाँ पर जल निर्मल, उथला और उष्ण होता है। प्रवाल के लिये 200 सें. ऊपर का ताप और 200 फुट से कम की गहराई अत्याधिक अनुकूल होती है।

मालदीव स्थित प्रवाल-द्वीप वलय

स्थिति और आकार के अनुसार इन्हें निम्नलिखित तीन वर्गो में वर्गीकृत किया गया है :


(1) तटीय प्रवालभित्तियाँ (Fringing reefs) : समुद्रतट पर पाई जाती हैं और मंच के रूप में ज्वार के समय दिख पड़ती हैं।


(2) प्रवालरोधिकाएँ (barrier reefs) : इस प्रकार की शैल भित्तियाँ, समुद्रतट से थोड़ी दूर हटकर पाई जाती है, जिससे कि इन और तट के बीच में छिछले लैगून (lagoon) पाए जाते हैं। यदि कहीं पर ये लैगून गहरे हो जाते हैं, तो वे एक अच्छे बंदरगाह निर्माण करते हैं। प्रशांत महासागर में पाए जानेवाले अनेक ज्वालामुखी द्वीप इस प्रकार की भित्तियों से घिरे हुए हैं।


(3) अडल या प्रवाल-द्वीप-वलय (Atolls) : उन वर्तुक कारीय भित्तियों को अडल कहते हैं जिनके मध्य में द्वीप की अपने लैगून होता है। साधारणत: ये शैल भित्तियाँ असंतत होती हैं, जिसके खुले हुए स्थानों से हो कर लैगून के अंदर जाया जा सकता है।

प्रवाल-शैल-श्रेणियों का निर्माण

विश्व में प्रवाल-शैल-श्रेणियों की स्थिति

तटीय प्रवाल-शैल-भित्ति का निर्माण, तट के समीप पाई जानेवाली शिलाओं में प्रवालों के प्रवाल-द्वीप-वलय का निर्माण (डारविन के अनुसार)

  • (क) प्रथम दशा में ज्वालामुखीय पर्वत थोड़ा धँसता है और पर्वत के किनारे किनारे प्रवालीय चट्टानें बनती हैं। इस प्रकार ज्वालामुखी द्वीप की तटीय प्रवालभित्ति का निर्माण होता है।
  • (ख) पर्वत के धँस जाने पर प्रवालद्वीप, वलयपर्वत से अलग हो जाता है और इस प्रकार सामान्य धँसाव द्वारा प्रवालरोधिकओं का निर्माण होता है।
  • (ग) इस स्थिति में विशाल धँसाव के कारण विशाल खाइयों का निर्माण होता है।
  • (घ) चौथी दशा लगभग वलयाकार प्रवाल द्वीप के समान होती हैं, किंतु पूर्णतया समान नहीं होती।
  • (च) इस दशा में पूर्ण प्रवाल द्वीप वलय का निर्माण हो जाता है।
  • (छ) यह स्थिति धँसी हुई प्रवालरोधिका तथा वलयाकार प्रवाल द्वीप में पाई जाती है। इसमें एक ऊँचे उठे प्रवाल-द्वीप-वलय का निर्माण होता है। इसमें धँसाव शीघ्र होता है और प्रवालजीव मर जाते हैं।

प्रवालरोधिका और अडल का निर्माण सामान्यत: निम्नलिखित तीन विधियों से होता है :

  • (1) तटीय प्रवालभित्तियों का निर्माण ऐसे ज्वालामुखी द्वीपों के चारों ओर होता है, जो समुद्र में धँसना प्रारंभ कर देते हैं। शनै: शनै:, जैसे जैसे द्वीप नीचे धँसता जाता है, प्रवाल भित्तियाँ वैसे ही वैसे ऊपर की ओर बढ़ती जाती हैं। ज्वालामुखी द्वीपों का अधोगमन और अपक्षरण होते रहने के कारण, ये द्वीप अंततोगत्वा समुद्र के गर्भ में विलीन हो जाते हैं और इस प्रकार से ज्वालामुखी द्वीप की तटीय प्रवालभित्ति का निर्माण होता है।
  • (2) दूसरे मतानुसार ऐसा समझा जाता है कि हिमानी युग में समुद्र जल से हिमानियों के बनने के कारण समुद्रसतह नीचे गिर गई और ताप में अत्यधिक कमी हो जाने के कारण पूर्वस्थित मालाएँ नष्ट हो गईं। हिमानी युग बीत जाने पर जब समुद्र पुन: उष्ण होने लगे तो हिमानियों के द्रवित हो जाने से समुद्र की सतह ऊपर उठने लगी और पहले की तरंगों द्वारा निर्मित सीढ़ियों पर पुन: प्रवाल वृद्धि प्रारंभ हो गई। जैसे जैसे समुद्र की सतह ऊपर उठती गई वैसे ही वैसे मालाएँ भी ऊँचाई में बढ़ती गई और इस प्रकार से वर्तमान युग में पाई जानेवाली तटीय प्रवाल भित्ति और अडल का निर्माण हुआ।
  • (3) तीसरे मत से 200 फुट से कम गहरे छिछले समुद्रांतर तटों पर प्रवाल भित्तियों का निर्माण हो जाता है। ऐसे स्थानों पर न तो समुद्रसतह के ऊपर उठने और न द्वीप के धँसने की आवश्यकता पड़ती है।





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Comments Sandhya on 27-06-2023

Bharat main dusro ka naam Bataye Prabhavathi Ke Hain

Vishal kumar on 25-05-2022

Praval bhiti se nirmit dyeep hai?

anshul on 03-07-2021

bharat ka prabhal ka name


Adarsh kumar on 21-08-2020

Bharat ke un dvipo ke nam btaia jo praval bhitti ke hai





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