खगोलीय दूरदर्शी की संरचना
Pradeep Chawla on 21-09-2018
ASTRONOMICAL TELESCOPE दूरबीन या दूरदर्शी (Telescope) एक ऐसा यंत्रहै जो दूर की वस्तुओं को साफ-साफ देखने के लिए काम में लाया जाता है । टेलिस्कोपशब्द की उत्पति ग्रीक भाषा के टेलेस्कोपीन (Teleskopein) शब्द से हुई है । टेली (Tele) का अर्थ है दूर और स्कोपीन (Skopein) का अर्थदेखना । अत:टेलेस्कोपीन का अर्थ है दूर की वस्तुओं का देखने का यंत्र ।
दूरदर्शीयंत्र दो प्रकार के होते है । एक प्रकाशीयदूरदर्शी यंत्र और दुसरे रेडियो दूरदर्शी यंत्र । प्रकाशीयदूरदर्शी यंत्र भी दो प्रकार के होते है । एक प्रकार केयंत्र को अपवर्तक दूरदर्शी यंत्र (RefractingTelescope) कहते है । और दुसरेप्रकार के यंत्र को परावर्तक दूरदर्शी यंत्र (ReflectingTelescope) कहते है । अपवर्तकदूरदर्शी यंत्र में एक नाली लगी होती है जिसके दोनों सिरों पर दो लैंस होते है । इन लैंसो कोआगे पीछे खिसकाया जा सकता है । जो लैंसवास्तु की और रहता है उसे अभिद्र्श्यक लैंस (Objective lens) कहते है । और जो आंख कीऔर रहता है उसे नेत्रिका लैंस (EyePiece) कहते है । वस्तु से आनेवाली प्रकाश की किरणें अभिद्र्श्यक लैंस से होती हुई उसका प्रतिबिम्ब बनाती है जोनेत्रिका लैंस द्वारा देख लिया जाता है । परावर्तकदूरदर्शी यंत्रों में एक नतोदर्पण (ConcaveMirror) होता है जोवस्तु से आने वाले प्रकाश को एकत्र करके उसका प्रतिबिम्ब बनाता है । रेडियोदूरदर्शी में आकाशीय पिण्डों से आने वाली रेडियो तरंगो को बड़े-बड़े धातु के दर्पणोंद्वारा प्राप्त करके इलेक्ट्रॉनिक यंत्रो की सहायता से उनका अध्ययन किया जाता है । किसी दूरदर्शीयंत्र का आकार उसके अभिदृश्यक लेंस के व्यास से मापते है । लैंस का जितनाअधिक व्यास होता है उतनी ही अधिक दुरी तक उससे वस्तुओ को देखा जा सकता है ।
यधपि संसार सेसबसे पहली दूरबीन हॉलैंड (Holland) के हान्सलिपरशे नमक व्यक्ति ने सन 1608 में बनायीं थी लेकिन उन्हें इस दूरबीन केनिर्माण का एकाधिकार न मिल सका । इटली केविज्ञानिक गैलिलियो को जब इस आविष्कार का पता लगा तोउन्होंने एक नए ढंग की दूरबीन बन डाली और इस प्रकार सन
1609 मेंदूरबीन के आविष्कार का श्रेय उन्होंने प्राप्त किया । आज संसार मेंगैलिलियो को ही दूरबीन का आविष्कारक कहते है।
गैलिलियो कीदूरबीन यधपि दखने में सुंदर न थी लेकिन इसके द्वारा वस्तुए वास्तविक आकार से 33गुना बड़ी दिखती थी। गैलिलियो नेअपनी दूरबीन से चन्द्रमा की सतह, वृहस्पति ग्रहके उपग्रह, शनि के छल्ले, आकाश गंगा आदिबहुत सी आकाशीय चीजों का अध्ययन किया। इस आविष्कारके बाद भांति-भांति के दूरदर्शी यंत्रों का विकाश हुआ।
सन 1928 मेंअमेरीका के माउंट पलोमेर (MountPalomer) पर 200 इंचके व्यास के परावर्तक वाला दूरदर्शी यंत्रों लगाया गया। इसी प्रकाररूस में 234 इंच व्यास के परावर्तक वाले दूरदर्शी का निर्माण किया जा चुका है। ये दूरदर्शीसंसार के सबसे शक्तिशाली दूरदर्शी था एक 48 इंच व्यास का दूरदर्शी यंत्रों भारत कीउश्मानिया युनिवेर्सिटी में भी लगा हुआ था । आज तो भारत के पासएक से बढ़कर एक दूरदर्शी यंत्र हैं। जिश्की सहायतासे ग्रह नक्षत्रों के विषय में बहुत सी खोजें की गई है।
20 वी सदी मेंबहुत से रेडियो दूरदर्शी यंत्रो का भी विकाश हुआ है इन दूरदर्शी यंत्रो में तश्तरीके आकार का धातु का एक बहुत बड़ा परावर्तक (Reflector) होता है जिसेएन्टीना कहते है। यह खगोलीयपिण्डों से आने वाली रेडियो तरंगों को प्राप्त करती है। ये रेडियोतरंगे रिसीवर (Receiver) में जाती हैं, फिर इनकी शक्ति बढ़ाकर इनकी परीक्षा की जाती है , रिसीवर उन तारों और ग्रहों के विषय में जानकारीदेता है जिससे ये तरंगे आती हैं। ये दूरदर्शीयंत्र सभी मौसमों , कुहरे और धुन्ध में सफलता पूर्वक काम करते रहतेहैं। संसार का सबसेबड़ा रेडियो दूरदर्शी Green Light, (TMT) ThirtyMeter Telescope। जो Mauna Kea, Hawaii (Island) में लगाया हुआ हैं।
वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोपभारत के पुणे शहरसे 80 किलोमीटर उत्तर में खोडाड नामक स्थानपर स्थित रेडियो दूरबीनों की विश्व की सबसे विशाल सारणी है। इसकी स्थिति 19°5’47.46"उत्तरी अक्षांश रेखा तथा 74° 2’59.07" पूर्वी देशान्तर रेखा पर है।यह टेलिस्कोप दुनिया की सबसे संवेदनशील दूरबीनों में से एक है। इसकासंचालन पुणेविश्वविधालय परिसरमें स्थित राष्ट्रीयखगोल भौतिकी केन्द्र (एनसीआरए) करता है जो टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टी आइ एफ़ आर) का एकहिस्सा है। इस दूरबीन के केन्द्र में वर्ग रूप से 14 डिश हैं तथा तीनभुजाओं का निर्माण 16 डिश से हुआ है, जनमें से प्रत्येक का व्यास 45मीटर है। इस प्रकार 25 किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह जायंट मीटरवेव रेडियोटेलिस्कोप 30 दूरबीनों का समूह है। इसका कोई सलगपृष्ठभागनहींहै क्योंकि यह दूरबीन पॅराबोलिक आकार में तारों का एक जाल है। पृष्ठभाग न रखकर इसकावजन कम किया गया है और कम पावर की मोटरों को लगाकर उनकी जगह बदलने कीव्यवस्था भी की गई है। सभी डिशों को अत्यन्त सूक्ष्मता पूर्वक सभी दिशाओंमें घुमाया जा सकता है। इस रचना का पेटंट है और खगोलशास्त्रज्ञ डॉ.गोविंद स्वरूप इसके जनक हैं। वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप की विशेषऔर स्वाभिमानवाली बात यह है कि इसका डिश एंटीना ही नहीं बल्कि संपूर्णइलेक्ट्रॉनिक्स भी भारत में भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार किया है।
अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इंजीनियर पिछले अनेक वर्षों से एक ऐसेविशालटेलिस्कोपके निर्माण में जुटे हुए हैं, जो अब तक अंतरिक्ष में भेजे गए सभी टेलिस्कोप की तुलनामें सबसे बड़ा और शक्तिशाली होगा। यह टेलिस्कोप है- जेम्स वैब स्पेसटेलिस्कोप।इसके निर्माण का काम 1996सेचल रहा है, लेकिन काम है कि पूरा होनेका नाम ही नहीं ले रहा है। फल यह हुआ कि अमेरिकी सदन में इस महायोजना कोरद्द कर देने की मांग उठ चुकी है। इस पर वित्तीय संकट के बादल मंडरा रहेहैं, लेकिन वैज्ञानिकों केजोश और दुनिया भर के इसके चहेतों ने इसकेनिर्माण को रुकने नहीं दिया है। इसे बचाने के लिए इंटरनेट पर ‘सेव द जेम्स वैबस्पेस टेलिस्कोप’ब्लॉगके अलावा फेसबुक और टिवट्र पर भी अभियान जारीहैं।
खगोलीय दूरदर्शी का चित्र कैसे बनाएं