शून्य आधारबजटन ऐसी नियोजन एवं बजटन प्रक्रिया है जिसमें यह अपेक्षा की जाती है किप्रत्येक प्रबन्धक को शून्य आधार से अपनी सम्पूर्ण बजट माँग को विस्तारपूर्वकन्यायसंगत ठहराना पड़ता है एवं वह मांग किये गये धन को क्यों व्यय करेगा, इसकेऔचित्य को भी सिद्ध करने का भार प्रत्येक प्रबन्धक पर डाल दिया जाता है। इसदृष्टिकोण से कि सभी क्रियाएँ ‘निणर्य संकुलों’ में विश्लेषित की जाती हैं जिनकाव्यवस्थित विश्लेषण द्वारा मूल्यांकन किया जाता है तथा उन्हें महत्व के अनुसार क्रमबद्धकिया जाता है।
- पीटर ए. पेर के शब्दों में “यह (ZBB) एक परिचालन नियोजन एवं बजटन प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येकप्रब्न्धक को अपनी सम्पूर्ण बजट मांगों का प्रारम्भ (शून्य आधार) से विस्तार में औचित्य सिद्ध करना होता है।प्रत्येक प्रबन्धक यह बतलाता है कि वह आखिर कोर्इ धनराशि क्यों खर्च करे। इन विचारधारा के अनुसारसभी क्रियाएं निर्णय पैकेज में अभिव्यक्त की जाती है जिन्हें महत्व के अनुसार क्रम स्थान देकर सुव्यवस्थितविश्लेषण द्वारा मूल्यांकित किया जायेगा।”
- डेविड लिनिंजर रोलान्ड सी वॉग के अनुसार, “शून्य आधार बजटन एक प्रबन्धकीय उपकरण है जो सभीचालू अथवा नवीन क्रियाओं एवं कार्यक्रमों के मूल्यांकन के लिए सुव्यवस्थित विधि प्रदान करता हैं।विवेकपूर्ण तरीके से बजट में कमी या विस्तार स्वीकृत करता है तथा निमन से उच्च प्राथमिकता वालेकार्यक्रमों में साधनों के पुन: आबंटन की स्वीकृति देता है।”
- आर्इ.सी.एम.ए. शब्दावली के अनुसार, “यह बजटन की एक विधि है जिसमें प्रत्येक समय जब कभी भी बजटबनाया जाता है, सभी क्रियाओं का पुन: मूल्यांकन किया जाता है। प्रत्येक क्रियात्मक बजट इस मान्यता परप्रारम्भ किया जाता है कि वह क्रिया विद्यमान नहीं है और लागत शून्य है। लागत संवृद्धियों की तूलना लाभसंवृद्धियों से की जाती है ताकि, दी हुर्इ लागतों पर नियोजित अधिकतम लाभ पराकाष्ठा पर पहुँच जाये।”शून्य आधार बजट के अन्तर्गत प्रबन्धक को यह निर्णय लेना पड़ता है कि वहव्यय क्यों करना चाहता है। विभिन्न मदों पर किये जाने वाले व्ययों की प्राथमिकताउसके निर्णय पर आधारित होती है।
शून्य आधार बजटन की विशेषताएं
- प्रबन्धक को किसी भी प्रकार के बजट आबंटन के लिये उसका औचित्य सिद्ध करना होता है कि उसे यहराशि क्यों चाहिए। ऐसा उसके विभाग में पूर्व में व्यय की गर्इ राशि को ध्यान में रखे बिना नये सिरे सेकरना होता है।
- विकल्पों की छानबीन की जाती है।
- निर्णयन प्रक्रिया में सभी स्तर के प्रबन्धक भाग लेते हैं।
- चयन लागत-लाभ विश्लेषण के आधार पर किया जाता है।
- व्यक्तिगत इकार्इ के उद्देश्यों को संस्था के उद्देश्यों से जोड़ा जाता है।
- प्राथमिकताओं के आधार
पर तुरन्त समायोजन किये जाते हैं, यदि बजट अवधि में कमी करने कीआवश्कयता हो।
शून्य आधार बजटन के कदम
- सर्वप्रथम बजट के उद्देश्यों का निर्धारण किया जाना चाहिए। उद्देश्य सुनिश्चितहोने की ही स्थिति मेंं उन्हें प्राप्त करने के लिए प्रयास किया जा सकता है।अलग-अलग संस्थाओं के उद्देश्य भी अलग-अलग होते हैं। हो सकता है एक संस्थाकर्मचारियों पर किये जाने वाले व्ययों में कटौती करना चाह सकती है, जबकि दूसरीसंस्था एक परियोजना की जगह पर दूसरे को लागू करना चाह सकती है, इत्यादि।
- किस परिस्थिति में और किस सीमा तक शून्य बजट को अपनाया जायेगा,का भी निर्धारण हो जाना चाहिए।
- लागत एवं लाभ विश्लेषण भी किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम उसी परियोजनाको अपनाया जाना चाहिए जिससे लाभ की सम्भावना सर्वाधिक हो। लागत विश्लेषणसे विभिन्न परियोजनाओं को अपनाये जाने की प्राथमिकता के निर्धारण में काफीमदद मिलती है।
शून्य आधार बजट के लाभ
- विभिन्न क्रियाओं की प्राथमिकता के निर्धारण तथा उन्हें लागू करने मेंसहायता।
- शून्य आधार बजट से प्रबन्ध की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। इसकेमाध्यम से केवल उन्हीं क्रियाओं को अपनाया जायेगा जो व्यवसाय के लिए आवश्यकहोती हैं।
- शून्य आधार बजट से आर्थिक व व्यर्थ क्षेत्रों को पहचानने में मदद मिलतीहै। इसके आधार पर आर्थिक क्षेत्रों को छाँटकर भावी कार्यकलाप का निर्धारण कियाजा सकता है।
- प्रबन्ध साधनों का सर्वो़त्तम/अनुकूलतम प्रयोग करने में सफल हो सकतेहैं। किसी मद पर व्यय तभी किया जायेगा जब यह आवश्यक होगा अन्यथा नहीं।
- शून्य आधार बजट उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होता है जिनका उत्पाद,उत्पादन से सम्बन्धित नहीं हो। इस विधि से व्यवसाय की प्रत्येक क्रिया की उपयुक्तताके भी निर्धारण में सहायता मिलती है।
- शून्य आधार बजट व्यवसाय के लक्ष्यों से भी सम्बन्धित होगा। केवल वेही चीजें (क्रियाएं) स्वीकार की जायेंगी जिनसे संस्था के लक्ष्यों को प्राप्त किया जासकता है।
शून्य आधार बजटन की सीमाएँ
- शून्य आधार बजटन का सफल क्रियान्वयन तभी किया जा सकता है जबकिउच्च प्रबन्धक वर्ग का खुले दिल से सहयोग प्राप्त हो।
- जिन संस्थाओं के साधन सीमित होते हैं, उनके लिए इस प्रणाली को लागूकरना सम्भव नहीं होता है।
- इस प्रणाली की सबसे बड़ी समस्या निर्णय पैकेज के निर्धारण एवं क्रम स्थानप्रदान करने की है। यह क्रम कौन प्रदान करेगा? कैसे प्रदान करेगा ? तथा किससीमा तक क्रियान्वयन होगा ? आदि जटिल समस्याएँ हैं।
शून्य आधारित बज़ट सर्व प्रथम आरम्भ किया गया था?
A.) भारत में
B.) यू.के.में
C.) अमेरिका में
D.) फ़्रांस में