Arsenic Dwara Jal Pradooshann Sarwaadhik Hai आर्सेनिक द्वारा जल प्रदूषण सर्वाधिक है

आर्सेनिक द्वारा जल प्रदूषण सर्वाधिक है



Pradeep Chawla on 29-09-2018


आर्सेनिक क्या है?
आर्सेनिक (As) एक गंधहीन और स्वादहीन उपधातु है जो ज़मीन की सतह के नीचे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। यह रसायन-विज्ञान पीरियोडिक टेबल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, एंटीमनी और बिस्मथ सहित ग्रुप VA का सदस्य है। इसका परमाणु क्रमांक (एटोमिक नंबर) 33 है और परमाणु भार (एटोमिक मास) 74.91 है।

प्रकृति में आर्सेनिक किन-किन रूपों में उपलब्ध है?
आर्सेनिक और इसके यौगिक रवेदार (क्रिस्टेलाइन), पाउडर और एमोरफस या काँच जैसी अवस्था में पाये जाते हैं। यह सामान्यतः चट्टान, मिट्टी, पानी और वायु में काफी मात्रा में पाया जाता है। यह धरती की तह का प्रचुर मात्रा में पाए जाना वाला 26वाँ तत्व है।

आर्सेनिक का कौन सा स्वरूप सबसे जहरीला होता है?


अगर मात्रा को आधार माना जाये आर्सेनाइट As-3 को आर्सेनिक का सबसे जहरीला स्वरूप माना जाता है। यह माना जाता है कि गम्भीरता के मामले में As-3 और As-5 में जहरीलापन समान होता है। पहले यह माना जाता था कि आर्सेनिक का मिथाइलेटेड स्वरूप {MMA(V), DMA(V)} कम जहरीले होते हैं, मगर अब देखा गया है कि MMA(III) और DMA(III) काफी जहरीले होते हैं।

आर्सेनिक के विभिन्न प्रकट स्रोत कौन-कौन से हैं?
इस वातावरण में उपलब्ध आर्सेनिक के प्रकट स्रोत में प्राकृतिक और मानवजनित स्रोत निम्न हैं-
प्राकृतिक- आर्सेनिकयुक्त गाद से भूजल में आर्सेनिक का रिसाव; मिट्टी में आर्सेनिक का रिसना और घुलना।
मानवजनित- कृषि रसायन, दीमकरोधी जैसे रासायनिक तत्व, औद्योगिक स्रोत, खनिज संशोधन, खनिज संशोधन के अम्ल-अपशिष्ट का निस्तार, जैव-ईंधन का जलना, आदि।

आर्सेनिकोसिस क्या है?
आर्सेनिक मानव शरीर के लिये जहरीला असर पैदा करता है, आर्सेनिक-पॉइजनिंग को चिकित्सकीय भाषा में आर्सेनिकोसिस कहते हैं। यह शरीर में उपलब्ध आवश्यक एँजाइम्स पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ता है और जिसकी वजह से शरीर के बहुत से अंग काम करना बंद कर देते हैं, अंत में इसकी वजह से रोगी की मौत हो जाती है।

आर्सेनिक मानव शरीर को किस तरह प्रभावित करता है?
पीने के पानी में मौजूद आर्सेनिक आंतों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, वहाँ से रक्तवाहिनियाँ इन्हें विभिन्न अंगों तक पहुंचाती हैं। शरीर में अवशोषित आर्सेनिक की मात्रा का पता नाखून और बाल के नमूनों से लगाया जाता है। सामान्यतः मानव शरीर आर्सेनिक के बहुत कम मात्रा का आदी होता है, जो मूत्र के जरिए बाहर निकल जाता है। अगर अधिक मात्रा में आर्सेनिक का सेवन होने लगे तो यह शरीर के अंदर ही रह जाता है। और आर्सेनिक शरीर पर तरह-तरह के नकारात्मक असर छोड़ता रहता है, पर आर्सेनिक कैसे और क्या असर करता है, अभी बहुत काम होना बाकी है।

मेरे पेयजल में आर्सेनिक कहाँ से और कैसे आता है?
चूँकि यह वातावरण में प्राकृतिक रूप से मौजूद है, इसके अलावा कुछ कृषि और औद्योगिक गतिविधियों के कारण भी ऐसा हो जाता है। यह भूजल अथवा सतही जल में घुल जाता है और हमारे पेयजल में आ जाता है।

आर्सेनिक के सेहत पर प्रभाव क्या-क्या हैं?
आर्सेनिक की वजह से कई बीमारियाँ होती हैं और कई बीमारियों का खतरे की गम्भीरता बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर त्वचा का फटना, केराटोइस और त्वचा का कैंसर, फेफड़े और मूत्राशय का कैंसर और नाड़ी से सम्बन्धित रोग आदि। दूसरी परेशानियाँ जैसे मधुमेह, दूसरे अंगों का कैंसर, संतानोत्पत्ति से सम्बन्धित गड़बड़ियाँ आदि के मामले भी देखे गए हैं। और बीमारियों पर शोध कार्य अभी जारी हैं।

पेयजल में आर्सेनिक की सान्द्रता का स्वीकृत मात्रा क्या है?
पेयजल में आर्सेनिक के लिये निर्देशित मानक या मैक्सिमम कंटामिनेशन लेवल (एमएलसी) 10 पीपीबी (डब्लूएचओ के अनुसार) है जिसे अधिकतर विकसित देश मानते हैं। विकासशील देश जिनमें भारत और बांग्लादेश भी शामिल हैं, में पेयजल में आर्सेनिक की स्वीकृत मात्रा 50 पीपीबी मानी गई है।

अधिक आर्सेनिकयुक्त पेयजल के कितने सेवन से त्वचा सम्बन्धित रोगों की आशंका बढ़ जाती है?
जमीनी अनुभव बताते हैं कि आर्सेनिकयुक्त जल के कुछ सालों के लगातार सेवन के बाद आर्सेनिक सम्बन्धी त्वचा रोग नजर आने लगते हैं। पर अगर पानी में आर्सेनिक की मात्रा 500 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से अधिक हो तो यह सम्भावना काफी अधिक हो जाती है। हालांकि किसी परिवार में ऐसा भी देखा गया है कि एक व्यक्ति को छोड़कर सारे प्रभावित हो गए हैं। ऐसा क्यों हुआ इसकी वजह हम जान नहीं पाये।

गंगा-मेघना बेसिन मैदान में आर्सेनिक के स्रोत क्या हैं?
कई नदियों के खादर हिमालय पर्वत और तिब्बत के पठार से प्रभावित होते हैं। गंगा का मैदान हिमालय और प्रायद्वीपीय पठारों से निकली मिट्टी से तैयार हुआ है। हिमालय से लाये गए पदार्थ मैदानी भाग में जमा होते रहते हैं जहाँ वे फिर से रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से टूटते हैं, इससे उनमें कई बार ऋणायन और धनायन होता है। गंगा नदी के गाद में आर्सेनिक, क्रोमियम, कॉपर, लेड, यूरेनियम, थोरियम, टंगस्टन आदि पाये जाते हैं।

भारत में कितने राज्य आर्सेनिक प्रभावित हैं?
पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, असम, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश आदि राज्यों में आर्सेनिक का प्रभाव पाया गया है। ज्यादा प्रभावित राज्य पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखण्ड हैं।

क्या सतही जल और बारिश का जल और कुएँ का जल आर्सेनिक मुक्त पेयजल स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है? और कैसे?
बैक्टीरिया और दूसरे जहर के समुचित शुद्धीकरण के बाद इन स्रोतों के पानी को पीने के लिये इस्तेमाल में लाया जा सकता है। अधिकतर कुएँ आर्सेनिक मुक्त होते हैं, हालांकि कुछ कुओं के पानी में आर्सेनिक की मात्रा पाई गई है। सतही जल अमूमन आर्सेनिक मुक्त होते हैं। बारिश का जल हमेशा आर्सेनिकमुक्त होता है।

क्या उबालने से पानी से आर्सेनिक हटाया जा सकता है?
नहीं, उबालकर आर्सेनिक को नहीं हटाया जा सकता, चूँकि यह वोलेटाइल पदार्थ नहीं है सो उबालने से इसकी सान्द्रता बढ़ जाने का ही खतरा रहता है।

क्या आर्सेनिकोसिस के संक्रमण का खतरा रहता है?
नहीं, यह संक्रमित नहीं होता है।

कोई कैसे जान सकता है कि उनका ट्यूबवेल आर्सेनिक दूषित है या नहीं?
आर्सेनिक का कोई अलग स्वाद, रंग या गंध नहीं होता। सही तरीके से जमा करने और संरक्षित करने के बाद, पानी के नमूने को मान्यता प्राप्त एनालिटिकल लैब में जाँच कराकर यह पता लगाया जा सकता है। प्रमाणित फील्ड किट से जरिए भी यह मालूम किया जा सकता है, मगर इन किटों से सिर्फ इशारा मिलता है, हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते।

फसलों के जरिए कैसे आर्सेनिक खाद्य चक्र में शामिल हो जाता है?
जब खेतों की सिंचाई आर्सेनिकयुक्त पानी से की जा रही हो तो आर्सेनिक का अकार्बनिक स्वरूप पौधों में अवशोषित हो जाता है और इस तरह आर्सेनिक खाद्य चक्र में शामिल हो जाता है।

क्या भोजन में आर्सेनिक हमेशा खतरनाक होता है?
अगर आर्सेनिक अकार्बनिक स्वरूप में मौजूद हो तो यह जहरीला हो सकता है, जैसे आर्सेनाइट और आर्सेनेट। मगर आर्सेनिक के कार्बनिक स्वरूप जैसे आर्सेनोबेटाइन, आर्सेनोकोलीन, आर्सेनोसुगर जहरीले नहीं होते (ये मुख्यतः समुद्री भोजन में पाये जाते हैं)।

आर्सेनिक के बायोमार्कर (शरीर के अंग से पहचान के लिये नमूने) क्या हैं?
आर्सेनिकयुक्त जल का सेवन करने वाले व्यक्ति के बाल, नाखून, मूत्र और त्वचा की पपड़ियों में आर्सेनिक जमा रहता है, उनकी जाँच करके पता किया जा सकता है।

पानी में आर्सेनिक की मात्रा जाँचने से सम्बन्धित फील्ड किट पर आधारित नतीजे क्या प्रमाणिक माने जा सकते हैं?
फील्ड किट से जाँच वाले नतीजे सांकेतिक हो सकते हैं, मगर इसकी पुष्टि लैब में जाँच के बाद ही हो सकती है। कई बार पहले ऐसा देखा गया है कि फील्ड किट के नतीजे अपुष्ट रह गए हैं।

क्या आर्सेनिक अजन्मे बच्चे को भी प्रभावित कर सकता है?
हालांकि अब तक इस बात के समुचित प्रमाण नहीं मिले हैं कि आर्सेनिक गर्भवती महिला या उनके गर्भस्थ शिशु को प्रभावित करते हों, मगर पशुओं के साथ किये गए अध्ययन में पाया गया कि बीमार करने की क्षमता के बराबर आर्सेनिक के डोज गर्भवती मादाओं को देने से कम वजन वाले बच्चों का जन्म, गर्भस्थ शिशु में विकृति या उसकी मृत्यु हो सकती है।

आर्सेनिक के संकट पर क्या करना है, से सम्बन्धित कुछ सवाल-जवाब (स्रोत - सीएससी)


1. आर्सेनिक सन्दूषण के क्या संकेत हैं?
यदि लोगों की त्वचा पर वर्षा की बूँदों के आकार के धब्बे उभरने लगें, तो यह आर्सेनिक सन्दूषण का सम्भाविक संकेत है।

2. तत्काल हमें क्या करना चाहिए?
सन्दूषण ज्यादातर पीने के या प्रयोग में आने वाले पानी के द्वारा होता है। इसलिये हैण्डपम्प का पानी पीना बन्द कर देना चाहिए व केवल साफ किया गया पानी ही पीना चाहिए।

3. अगल कदम क्या होना चाहिए?
पब्लिक हेल्थ इन्जीनियरिंग विभाग या कुछ जगह जल-निगम को पानी की जाँच करने के लिये जोर देना चाहिए। अन्यथा गाँव की पंचायत द्वारा पानी के नमूनों को किसी अन्य उचित संस्थान के पास जाँच के लिये भेज देना चाहिए।

नमूनों को बहुत ध्यान से एकत्र करना चाहिए। पानी के स्रोत, जहाँ से नमूने लिये गए हैं, उन्हें स्पष्ट रूप से पहचान लेना चाहिए। जिन लोगों के शरीर पर सबसे अधिक निशान हैं, उनके द्वारा प्रयुक्त हैण्डपम्प के पानी के नमूने सबसे पहले लेने चाहिए। अधिकतम हैण्डपम्प-चाहे सार्वजनिक हों या निजी-के पानी की जाँच करानी चाहिए।

उसके पश्चात, 50-200 मिलीलीटर के उचित पात्र (शीशे की बोतल) को आसक्ति (डिस्टिल्ड) पानी से धो लेना चाहिए। पानी के स्रोत (हैण्डपम्प या ट्यूबवेल) को चलाकर बोरवेल के पाईप में रुका पानी निकाल देना चाहिए जिससे जाँच के लिये जलाशय का पानी उपलब्ध हो सके।

पानी के नमूनों का पीएच घटाने के लिये उनमें नाईट्रिक एसिड डालना चाहिए। नमूनों को सील बन्द करके स्रोत का नाम उन पर लिख देना चाहिए। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जाँच के परिणामों की विश्वसनीयता नमूनों की अखण्डता पर निर्भर करती है।

मुमकिन हो तो, आर्सेनिक के साथ पानी के नमूनों को अन्य घातक रसायन जैसे फ्लोराईड व कीटनाशकों के लिये भी जाँच लेना चाहिए।

उचित होगा यदि हर स्रोत से दो अलग नमूने लिये जाएँ, जिससे कि पुष्टि के लिये उन्हें दो अलग प्रयोगशालाओं में भेजा जा सके।

4. नमूनों को एकत्रित करने के बाद क्या करना चाहिए?
नमूनों को शीघ्र एक विश्वसनीय प्रयोगशाला में भेज देना चाहिए। इस प्रयोगशाला में आर्सेनिक की जाँच के लिये एटोमिक एब्जॉर्पशन स्पैक्ट्रोमैट्री प्रणाली हो तो उचित है।

5. इस बीच क्या उपाय करने चाहिए?
सबसे पहले, पूर्वावधान की दृष्टि से प्रभावित क्षेत्रों में सभी ग्रामवासियों को (वो भी जिनके शरीर पर धब्बे नहीं हैं) ट्यूबवेल का पानी छोड़ कर केवल साफ किया गया सतही पानी ही पीना चाहिए। इस समस्या पर विचार-विमर्श करने के लिये पंचायत की बैठक बुलानी चाहिए। प्रभावित क्षेत्र के सभी निवासियों को इस समस्या के बारे में तथा स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तृत विवरण देना चाहिए। कुछ मौलिक तथ्यों से उनको अवगत कराना चाहिए जैसे कि आर्सेनिक संक्रामक नहीं है।

ग्रामीण स्तर पर इस समस्या से जूझने के लिये ग्रामवासियों का आपस में मिलना व जानकारी का आदान-प्रदान महत्त्वपूर्ण है। पड़ोस के क्षेत्रों को सन्दूषण की सम्भावना के लिये सतर्क कर देना चाहिए।

6. किसको सबसे पहले सूचित करना चाहिए?
स्थानीय गैर सरकारी संस्थाएँ जो स्वास्थ्य व स्वच्छता के क्षेत्र में कार्यरत हैं, उन्हें इस समस्या से अवगत कराना चाहिए। सबसे महत्त्वपूर्ण, प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र के चिकित्सकों को धब्बों का निदान करने के लिये कहना चाहिए। स्थानीय मीडिया को भी उसकी जानकारी पहुँचनी चाहिए जिससे कि वे इस समस्या के बारे में जानकारी व्यापक कर सकें।

7. किन अधिकारियों को समस्या की सूचना देनी चाहिए?
ब्लॉक डेवलपमेंट अधिकारी (बीडीओ), जिले के प्रमुख स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमओ) तथा जिला मजिस्ट्रेट ही मूल अधिकारी हैं।

8. यदि अधिकारी समस्या के समाधान के लिये कदम न उठाएँ तो क्या करना चाहिए?
स्थानीय विधायक तथा अन्य प्रभावशाली राजनितिज्ञों को सूचित करना चाहिए। यदि वे भी कुछ न करें तो केन्द्रीय सरकार की एजेंसियों, जैसे ‘राजीव गाँधी नेशनल ड्रिकिंग वॉटर मिशन’, को सम्पर्क करना चाहिए।

अन्तरराष्ट्रीय अनुदान एजेंसियों जैसे यूनीसेफ तथा संस्थान जैसे जादवपुर विश्वविद्यालय को भी सम्पर्क किया जा सकता है, क्योंकि वो भी आवश्यक जाँच करती हैं। ये संस्थाएँ सामुदायिक निगरानी के निकाय स्थापित करने में तकनीकी सहायता भी प्रदान करते हैं। साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया को भी सचेत कर देना चाहिए, जिससे कि वह इस समस्या की जानकारी आम जनता में फैलाकर अधिकारियों पर दबाव बना सके। स्थानीय स्तर पर जनता में जागरुकता बढ़ाने के लिये प्रयासरत रहना चाहिए, खासकर साफ सतही पानी के प्रयोग के महत्त्व पर।

9. समस्या से लड़ने के लिये व्यक्तिगत स्तर पर क्या किया जा सकता है?
क्योंकि आर्सेनिक के विषाक्तीकरण के उपचार नहीं है, इसके निवारण पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिये, पौष्टिक व अधिक प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ तथा साइट्रस (नींबू-वंश के) फल ग्रहण करने चाहिए। विटामिन बी कॉम्प्लेक्स जैसी औषधियाँ तथा विटामिन सी व प्रो-विटामिन-ए जैसे-एंटी ऑक्सीडंट भी दिये जा सकते हैं।

गृहस्थी के स्तर पर अल्पीकरण प्रणालियाँ जैसे डोमेस्टिक फिल्टर खरीद कर उपयोग किये जाने चाहिए। इस तरह के फिल्टर पश्चिम बंगाल में आम रूप से मिलते हैं। एक गाँव के लिये बड़ी संख्या में आर्डर एक साथ दिये जा सकते हैं।




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Comments Deepak on 23-09-2023

आर्सेनिक से सर्वाधिक जल प्रदूषण किस राज्य में है ?

Rajnesh meena on 27-01-2023

Aarsenik pardushan see dog konsa hota h





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