स्थाई बन्दोबस्त या ज़मींदारी प्रथा, इस व्यवस्था को जागीरदारी, मालगुज़ारी व बीसवेदारी के नाम से भी जाना जाता था। इस व्यवस्था के लागू किए जाने से पूर्व ब्रिटिश सरकार के समक्ष यह समस्या थी कि भारत में कृषि योग्य भूमि का मालिक किसे माना जाए, सरकार राजस्व चुकाने के लिए अन्तिम रूप से किसे उत्तरदायी बनाये तथा उपज में से सरकार का हिस्सा कितना हो।
वारेन हेस्टिंग्स ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि किसानों से लगान वसूल करने के बदले में ज़मींदारों के पास कुछ कमीशन प्राप्त करने का अधिकार हो। परन्तु हेस्टिंग्स की यह पद्धति असफल रही। 1772 ई. में वारेन हेस्टिंग्स ने पंचवर्षीय बन्दोबस्त चलाया। 1776 ई. में इस व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया। 1786 ई. में लॉर्ड कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर-जनरल बना। उसने जेम्स ग्राण्ट एवं सर जॉन शोर से नवीन लगान व्यवस्था पर विचार-विमर्श किया। 1790 ई. में लॉर्ड कार्नवालिस ने दसवर्षीय व्यवस्था को लागू किया। 1793 ई. में इस व्यवस्था को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में स्थायी कर दिया गया और कालान्तर में इसे उत्तर प्रदेश के बनारस खण्ड एवं उत्तरी कर्नाटक में भी लागू किया गया।
स्थाई बन्दोबस्त व्यवस्था तत्कालीन ब्रिटिश भारत की लगभग 19% भूमि पर लागू की गई। सर्वप्रथम यह व्यवस्था बंगाल में लागू की गई। व्यवस्था के अंतर्गत ज़मींदारों से मालगुज़ारी के रूप में एक निश्चित आय हमेशा के लिए निश्चित कर ली जाती थी। ज़मींदार किसान से वसूले गए लगान का 10/11 भाग सरकारी कोश में जमा करता था तथा शेष 1/11 भाग अपने ख़र्च, परिश्रम व दायित्व के लिए अपने पास रख लेता था। ज़मींदारों द्वारा निश्चित समय में सरकारी खज़ाने में लगान न जमा करने पर भूमि को नीलाम कर दिया जाता था। दैवीय प्रकोप के समय लगान की दर में कोई रियायत नहीं दी जाती थी। लगान की दर बढ़ाने का अधिकार सरकार के पास नहीं था, लेकिन ज़मींदार इसमें वृद्धि कर सकता था। ज़मींदार भूमि को बेच सकता था और रेहन व दान में दे सकता था।
कम्पनी सरकार द्वारा इस व्यवस्था को लागू करने के पीछे अनेक कारण थे, जो निम्नलिखित हैं-
इस व्यवस्था से कम्पनी को अनेक लाभ प्राप्त हुए। जैसे-
इस व्यवस्था के अनेक दोष भी थे-इस व्यवस्था की आलोचना में होम्स ने कहा कि, “स्थायी व्यवस्था एक भयानक भूल थी, यहाँ के कृषकों ने इससे कुछ भी लाभ नहीं उठाया, ज़मींदार अपने लगान को तय समय में जमा करने में असमर्थ रहे और साथ ही उनकी भूमि को सरकार के लाभ के लिए बेच दिया गया”। इस व्यवस्था के लागू होने पर सरकार का किसान से कोई सीधा सम्पर्क नहीं रह गया। परिणामत: सरकार किसानों की वास्तविक स्थिति से परिचित न होने के कारण उनके प्रति उदासीन रहने लगी। बाढ़ एवं अकाल के समय सरकार मालगुज़ारी की वसूली में कोई भी छूट नहीं देती थी। ज़मींदार लोग किसानों का आर्थिक शोषण करते थे। कृषकों द्वारा लगान न देने पर उन्हें भूमि से बेदख़ल कर दिया जाता था, जिसके अंतर्गत यह व्यवस्था थी कि निश्चित दिन को सूर्य छिपने से पहले लगान को अवश्य ही जमा करा दिया जाए, ऐसा न करने पर ज़मींदार को जागीर के अधिकार से मुक्त कर दिया जाता था तथा उसकी पूरी अथवा कुछ जागीर जब्त करके सार्वजनिक नीलामी द्वारा उसे नीलाम कर दिया जाता था।
Sathai Bandobasat ke mukaya paheluoo ka varnan kijiye
मुख्य
सरकारी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए
स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओ का वर्णन कीजिए
Ya mukya phluong
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स्थायी बदोंबस्त के दो पहलू बताएं