Paudhon Ke Vibhinn Bhag Aivam Unke Karya पौधों के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य

पौधों के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य



GkExams on 12-05-2019

बीज पैदा करनेवाले पौधे दो प्रकार के होते हैं: नग्न या विवृतबीजी तथा बंद या संवृतबीजी। सपुष्पक, संवृतबीजी, या आवृतबीजी (flowering plants या angiosperms या Angiospermae या Magnoliophyta, Magnoliophyta, मैग्नोलिओफाइटा) एक बहुत ही बृहत् और सर्वयापी उपवर्ग है। इस उपवर्ग के पौधों के सभी सदस्यों में पुष्प लगते हैं, जिनसे बीज फल के अंदर ढकी हुई अवस्था में बनते हैं। ये वनस्पति जगत् के सबसे विकसित पौधे हैं। मनुष्यों के लिये यह उपवर्ग अत्यंत उपयोगी है। बीज के अंदर एक या दो दल होते हैं। इस आधार पर इन्हें एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री वर्गों में विभाजित करते हैं। सपुष्पक पौधे में जड़, तना, पत्ती, फूल, फल निश्चित रूप से पाए जाते हैं।



संवृतबीजी के सदस्यों की बनावट कई प्रकार की होती है, परंतु प्रत्येक में जड़, तना, पत्ती या पत्ती के अन्य रूपांतरित अंग, पुष्प, फल और बीज होते हैं। संवृतबीजी पौधों के अंगों की रचना तथा प्रकार निम्नलिखित हैं:



जड़

पृथ्वी के नीचे का भाग अधिकांशत: जड़ होता है। बीज के जमने के समय जो भाग मूलज या मूलांकुर (radicle) से निकलता है, उसे ही जड़ कहते हैं। पौधों में प्रथम निकली जड़ जल्दी ही मर जाती है और तने के निचले भाग से रेशेदार जड़े निकल आती हैं। द्विबीजपत्री में प्रथम जड़, या प्राथमिक जड़, सदा ही रहती है। यह बढ़ती चलती है और द्वितीय, तृतीय श्रेणी की जड़, सदा ही रहती है। यह बढ़ती चलती है और द्वितीय, तृतीय श्रेणी की जड़ की शाखाएँ इसमें से निकलती हैं। ऐसी जड़ को मूसला जड़ कहते हैं। जड़ों में मूलगोप (root cap) तथा मूल रोम (root hair) होते हैं, जिन के द्वारा पौधे मिट्टी से लवणों का अवशोषण कर बढ़ते हैं। खाद्य एवं पानी प्राप्त करने के अतिरिक्त जड़ पौधों में अपस्थानिक जड़ें (adventtious roots) भी होते हैं। कुछ पौधों में जड़े बाहर भी निकल आती हैं। जड़ के मध्य भाग में पतली कोशिका से बनी मज्जा रहती है किनारे में दारु (xylem) तथा फ्लोयम (Phloem) और बाह्यआदिदारुक (exarch) होते हैं। दारु के बाहर की ओर आदिदारु (protoxylem) और अंदर की ओर अनुदारु (metaxyeiem) होते हैं। इनकी रचना तने से प्रतिकूल होती है, संवहन ऊतक के चारों तरफ परिरंभ (perichycle) और बाहर अंत:त्वचा (endodremis) रहते हैं। वल्कुट (cortex) तथा मूलीय त्वचा (epiblema) बाहर की तरफ रहते हैं।



तना या स्तंभ

यह पृथ्वी के ऊपर के भाग का मूल भाग है, जिसमें अनेकानेक शाखाएँ, टहनियाँ, पत्तियाँ और पुष्प निकलते हैं। बीज के जमने पर प्रांकुल (plumule) से निकले भाग को तना कहते हैं। यह धरती से ऊपर की ओर बढ़ता है। इससे निकलनेवाली शाखाएँ बहिर्जात (exogenous) होती हैं, अर्थात् जड़ों की शाखाओं की तरह अंत:त्वचा से नहीं निकलतीं वरन् बाहरी ऊतक से निकलती हैं। तने पर पत्ती, पर्णकलिका तथा पुष्पकलिका लगी होती है।



संवृतबीजों में तने कई प्रकार पाए जाते हैं। इन्हें साधारणतया मजबूत (strong) तथा दुर्बल तनों में विभाजित किया जाता है। मजबूत तने काफी ऊँचे बढ़ते जाते हैं। जैसे ताड़ को कोडेक्स तना, या गाँठदार बाँस का कल्म (culm) तना इत्यादि। दुर्बल तने भी कई प्रकार के होते हैं, जैसे ट्रेलिंग या अनुगामी (trailing), क्रोपिंग इत्यादि। शाखा के तने से निकलने की रिति को शाखा विन्यास कहते हैं। अगर एक स्थान से मुख्य शाखा दो भागों में विभाजित हो जाए, तो इसे द्विभाजी (dichotomous) विन्यास कहते हैं अन्यथा अगर मुख्य तने के किनारे से टहनियाँ निकलती रहे, तो इन्हें पार्श्व (lateral) विन्यास कहते हैं। द्विभाजी विभाजन के भी कई रूप होते हैं, जैसे यथार्थ (true) द्विविभाजन, या कुंडलनी (helicoid), या वृश्चिकी (scorpioid)। पार्श्व शाखाएँ या तो अनिश्चित रूप से बढ़ती चलती है, जिसे असीमाक्षी (recemose) शाखा विन्यास कहते हैं, या वह जिसमें शाखाओं की वृद्धि रुक जाती है और जिसे समीमाक्षी (Cymose) विन्यास कहते हैं।



तने का कार्य जड़ द्वारा अवशोषित जल तथा लवणों को ऊपर की ओर पहुँचाना है, जो पत्ती में पहुँचकर सूर्य के प्रकाश में संश्लेषण के काम में आते हैं। बने भोजन को तने द्वारा ही पोधे के हर एक भाग तक पहुँचाया जाता है। इसके अतिरिक्त तने पौधों को खंभे के रूप में सीधा खड़ा रखते हैं। ये पत्तियों को जन्म देकर भोजन बनाने तथा पुष्प को जन्म देकर जनन कार्य सम्पन्न करने में सहायक होते हैं। बहुत से तने भोजन का संग्रह भी करते हैं। कुछ तने पतले होने के कारण स्वयं सीधे नहीं उग पाते और अन्य किसी मजबूत आधार या अन्य वृक्ष से लिपटकर ऊपर बढ़ते चलते हैं। कुछ में तने काँटों में परिवर्तित हो जाते हैं। बहुत से पौधों में तने मिट्टी के नीचे उगते हैं और कई तने रूपविशेष धारण कर अलग अलग कार्य करते हैं, जैसे अदरक का परिवर्तित तना, जो खाया जाता है। इसे प्रकंद (Rhizome) कहते हैं। आलू भी ऐसा ही तना है जिसे कंद (Tuber) कहते हैं। इन तनों पर भी कलिका रहती है, जो पादप प्रसारण के कार्य आती है। प्याज का खानेवाला भाग मिट्टी के नीचे रहनेवाला तना ही है, जिसे शल्क कंद (Bulb) कहते हैं। इसमें शल्कपत्र तथा अग्रस्थ कलिका दबी पड़ी रहती है। लहसुन, केना, बनप्याजी तथा अन्य कई एक एकबीजपत्री संवृतबीजी में ऐसे तने मिलते हैं। सूरन तथा बंडे का भी खानेवाला भाग भूमिगत रहता है और यह भी शाखा का ही रूप है, जिसे घन कंद (Corm) कहते हैं। तने का ऐसा भी रूपांतर कई पौधों में पाया जाता है, जिसका कुछ भाग भूमि के नीचे और कुछ भाग भूमि के ऊपर रहते हुए विशेष कार्य करता है, जैसे दूब घास में तने उर्पार भूस्तारी (runner) के रूप पृथ्वी पर पड़े रहते हैं और उनकी पर्वसंधि (node) से जड़ मिट्टी में घुस जाती है। इसी से मिलते जुलते भूस्तारी (stolon) प्रकार के तने होते हैं, जैसे झूमकलता, या चमेली इत्यादि। भूस्तारी (offset) तने जलकुंभी में, तथा अंत: भूस्तारी (sucker) तने पुदीना में होते हैं।



कुछ हवाई तने या स्तम्भ भी कई विशेष रूपों में परिवर्तित हो जाते हैं, जैसे नागफनी में चपटे, रस्कस (Ruscus) में पत्ती के रूप में तथा कुछ पौधों में अन्य रूप धारण करते हैं।



आंतरिक रचना में भी स्तम्भ के आकार काफी हद तक एक प्रकार के होते हैं, जिसमें एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री केवल आंतरिक रचना द्वारा ही पहचाने जा सकते हैं। स्तंभ में भी बहिर्त्वचा (epidermis), वल्कुट (cortex) तथा संवहन (vascular) सिलिंडर होते हैं। एकबीजपत्री में संवहन पुल (bundle) बंद अर्थात् गौण वृद्धि न करनेवाले एघा (Cambium) से रहित होता है तथा द्विबीजपत्री में गौण वृद्धि होती है, जो एक प्रकार की सामान्य रीति द्वारा ही होती है। कुछ पौधों में परिस्थिति के कारण, या अन्य कारणों से विशेष प्रकार से भी, गौण वृद्धि होती है।



पत्तियाँ



मैग्नोलिया लिलिफ्लोरा का पुष्प

संवृतबीजी के पौधों में पत्तियाँ भी अन्य पौधों की तरह विशेष कार्य के लिये होती हैं। इनका प्रमुख कार्य भोजन बनाना है। इनके भाग इस प्रकार है : टहनी से निकलकर पर्णवृत (petiole) होता है, जिसके निकलने के स्थान पर अनुपर्ण (stupule) भी हो सकते हैं। पत्तियों का मुख्य भाग चपटा, फैला हुआ पर्णफलक (lamina) है। इनमें शिरा कई प्रकार से विन्यासित रहती है। पत्तियों के आकार कई प्रकार के मिलते हैं। पत्तियों में छोटे छोटे छिद्र, या रंध्र (stomata), होते हैं। अनुपर्ण भी अलग अलग पौधों में कई प्रकार के होते हैं, जैसे गुलाब, बनपालक, स्माइलेक्स, इक्ज़ारा इत्यादि में। नाड़ीविन्यास जाल के रूप में जालिका रूपी (reticulate) तथा समांतर (parallel) प्रकार का होता है। पहला विन्यास मुख्यत: द्विबीजीपत्री में और दूसरा विन्यास एकबीजपत्री में मिलता है। इन दोनों के कई रूप हो सकते हैं, जैसे जालिकारूप विन्यास आम, पीपल तथा नेनूआ की पत्ती में और समांतररूप विन्यास केला, ताड़, या केना की पत्ती में। शिराओं द्वारा पत्तियों का रूप आकार बना रहता है, जो इन्हें चपटी अवस्था में फैले रखने में मदद देता है और शिराओं द्वारा भोजन, जल आदि पत्ती के हर भाग में पहुँचते रहते हैं। पत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं। साधारण तथा संयुक्त, बहुत से संवृतबीजियों में पत्तियाँ विभिन्न प्रकार से रूपांतरित हो जाती हैं, जैसे मटर में ऊपर की पत्तियाँ लतर की तरह प्रतान (tendril) का रूप धारण करती हैं, या बारबेरी (barberry) में काँटे के रूप में, विगनोनियाँ में अंकुश (hook) की तरह और नागफनी, धतूरा, भरभंडा, भटकटइया में काँटे के रूप में बदल जाती हैं। घटपर्णी (nephenthes) में पत्तियाँ सुराही की तरह हो जाती हैं, जिसमें छोटे कीड़े फँसकर रह जाते हैं और जिन्हें यह पौधा हजम कर जाता है। पत्तियों के अंदर की बनावट इस प्रकार की होती हैं कि इनके अंदर पर्णहरित, प्रकाश की ऊर्जा को लेकर, जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड को मिलाकर, अकार्बनिक फ़ॉस्फ़ेट की शक्तिशाली बनाता है तथा शर्करा और अन्य खाद्य पदार्थ का निर्माण करता है।



पुष्प

संवृतबीजी के पुष्प नाना प्रकार के होते हैं और इन्हीं की बनावट तथा अन्य गुणों के कारण संवृतबीजी का वर्गीकरण किया गया है। परागण के द्वारा पौधों का निषेचन होता है। निषेचन के पश्चात् भ्रूण धीरे धीरे विभाजित होकर बढ़ता चलता है। इसकी भी कई रीतियाँ हैं जिनका भारतीय वनस्पति विज्ञानी महेश्वरी ने कॉफी विस्तार से अध्ययन किया है। भ्रूण बढ़ते बढ़ते एक या दो दलवाले बीज बनाता है, परंतु उसके चारों तरफ का भाग अर्थात् अंडाशय, तथा स्त्रीकेसर (pistil) का पूरा भाग बढ़कर फल को बनाता है। बीजों को ये ढँके रहते हैं। इसी कारण इन बीजों को आवृतबीजी या संवृतबीजी कहते हैं। फल भी कई प्रकार के होते हैं, जिनमें मनुष्य के उपयोग में कुछ आते हैं। सेब में पुष्पासन (thalamus) का भाग, अमरूद में पुष्पासन तथा फलावरण, बेल में बीजांडासन (placents) का भाग, नारियल में भ्रूणपोष (endosperm) का भाग खाया जाता है।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Sunil on 05-11-2023

Paudho ko kitne bhago me bata gya hai naam lachar example batiye

Bhavna on 20-03-2023

Podhe ke Ang aur unke karye namankit chitr dwarw Bhavna

Sushil Kumar Pandey on 04-04-2022

Write the names of the following edible parts of the plants ginger


Sushil Kumar Pandey on 18-05-2021

Write the names of the following edible parts of the plants

Kartik singh on 03-03-2021

फूल के काये





नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment