Tree Information In Hindi : जैसा की हम सब जानते है पौधों (importance of trees) का अधिकांश भाग मिट्टी के बाहर पाया जाता है जैसे तना,पत्ती, फूल व फल। कुछ भाग मिट्टी के अन्दर पाया जाता है, जिसे जड़ कहते हैं। अधिकतर पौधों में ये सभी भाग दिखाई देते हैं। ये सब पौधों के अंग हैं। हमारे शरीर के अंगों की तरह पौधों का प्रत्येक भाग महत्वपूर्ण है।
पौधों के प्रत्येक भाग (Tree Parts In Hindi) का एक विशेष कार्य होता है। इस लेख के जरिये हम आपको पौधे के विभिन्न भाग और कार्यों से अवगत करायेंगे जो निम्नलिखित है...
जड़ :
पृथ्वी के नीचे का भाग अधिकांशत: जड़ होता है। बीज के जमने के समय जो भाग मूलज या मूलांकुर (radicle) से निकलता है, उसे ही जड़ कहते हैं। पौधों में प्रथम निकली जड़ जल्दी ही मर जाती है और तने के निचले भाग से रेशेदार जड़े निकल आती हैं। द्विबीजपत्री में प्रथम जड़, या प्राथमिक जड़, सदा ही रहती है। यह बढ़ती चलती है और द्वितीय, तृतीय श्रेणी की जड़, सदा ही रहती है। यह बढ़ती चलती है और द्वितीय, तृतीय श्रेणी की जड़ की शाखाएँ इसमें से निकलती हैं। ऐसी जड़ को मूसला जड़ कहते हैं।
जड़ों में मूलगोप (root cap) तथा मूल रोम (root hair) होते हैं, जिन के द्वारा पौधे मिट्टी से लवणों का अवशोषण कर बढ़ते हैं। खाद्य एवं पानी प्राप्त करने के अतिरिक्त जड़ पौधों में अपस्थानिक जड़ें (adventtious roots) भी होते हैं। कुछ पौधों में जड़े बाहर भी निकल आती हैं।
जड़ के मध्य भाग में पतली कोशिका से बनी मज्जा रहती है किनारे में दारु (xylem) तथा फ्लोयम (Phloem) और बाह्यआदिदारुक (exarch) होते हैं। दारु के बाहर की ओर आदिदारु (protoxylem) और अंदर की ओर अनुदारु (metaxyeiem) होते हैं। इनकी रचना तने से प्रतिकूल होती है, संवहन ऊतक के चारों तरफ परिरंभ (perichycle) और बाहर अंत:त्वचा (endodremis) रहते हैं। वल्कुट (cortex) तथा मूलीय त्वचा (epiblema) बाहर की तरफ रहते हैं।
तना :
यह पृथ्वी के ऊपर के भाग का मूल भाग है, जिसमें अनेकानेक शाखाएँ, टहनियाँ, पत्तियाँ और पुष्प निकलते हैं। बीज के जमने पर प्रांकुल (plumule) से निकले भाग को तना कहते हैं।
आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की यह धरती से ऊपर की ओर बढ़ता है। इससे निकलनेवाली शाखाएँ बहिर्जात (exogenous) होती हैं, अर्थात् जड़ों की शाखाओं की तरह अंत:त्वचा से नहीं निकलतीं वरन् बाहरी ऊतक से निकलती हैं। तने पर पत्ती, पर्णकलिका तथा पुष्पकलिका लगी होती है।
तने का कार्य जड़ द्वारा अवशोषित जल तथा लवणों को ऊपर की ओर पहुँचाना है, जो पत्ती में पहुँचकर सूर्य के प्रकाश में संश्लेषण के काम में आते हैं। बने भोजन को तने द्वारा ही पोधे के हर एक भाग तक पहुँचाया जाता है। इसके अतिरिक्त तने पौधों को खंभे के रूप में सीधा खड़ा रखते हैं। ये पत्तियों को जन्म देकर भोजन बनाने तथा पुष्प को जन्म देकर जनन कार्य सम्पन्न करने में सहायक होते हैं।
पत्तियाँ :
संवृतबीजी के पौधों में पत्तियाँ भी अन्य पौधों की तरह विशेष कार्य के लिये होती हैं। इनका प्रमुख कार्य भोजन बनाना है। इनके भाग इस प्रकार है : टहनी से निकलकर पर्णवृत (petiole) होता है, जिसके निकलने के स्थान पर अनुपर्ण (stupule) भी हो सकते हैं। पत्तियों का मुख्य भाग चपटा, फैला हुआ पर्णफलक (lamina) है। इनमें शिरा कई प्रकार से विन्यासित रहती है।
वैसे पत्तियों के आकार कई प्रकार के मिलते हैं। पत्तियों में छोटे छोटे छिद्र, या रंध्र (stomata), होते हैं। अनुपर्ण भी अलग अलग पौधों में कई प्रकार के होते हैं, जैसे गुलाब, बनपालक, स्माइलेक्स, इक्ज़ारा इत्यादि में। नाड़ीविन्यास जाल के रूप में जालिका रूपी (reticulate) तथा समांतर (parallel) प्रकार का होता है। पहला विन्यास मुख्यत: द्विबीजीपत्री में और दूसरा विन्यास एकबीजपत्री में मिलता है। इन दोनों के कई रूप हो सकते हैं, जैसे जालिकारूप विन्यास आम, पीपल तथा नेनूआ की पत्ती में और समांतररूप विन्यास केला, ताड़, या केना की पत्ती में।
शिराओं द्वारा पत्तियों का रूप आकार बना रहता है, जो इन्हें चपटी अवस्था में फैले रखने में मदद देता है और शिराओं द्वारा भोजन, जल आदि पत्ती के हर भाग में पहुँचते रहते हैं। पत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं। साधारण तथा संयुक्त, बहुत से संवृतबीजियों में पत्तियाँ विभिन्न प्रकार से रूपांतरित हो जाती हैं, जैसे मटर में ऊपर की पत्तियाँ लतर की तरह प्रतान (tendril) का रूप धारण करती हैं, या बारबेरी (barberry) में काँटे के रूप में, विगनोनियाँ में अंकुश (hook) की तरह और नागफनी, धतूरा, भरभंडा, भटकटइया में काँटे के रूप में बदल जाती हैं। घटपर्णी (nephenthes) में पत्तियाँ सुराही की तरह हो जाती हैं, जिसमें छोटे कीड़े फँसकर रह जाते हैं और जिन्हें यह पौधा हजम कर जाता है।
पत्तियों के अंदर की बनावट इस प्रकार की होती हैं कि इनके अंदर पर्णहरित, प्रकाश की ऊर्जा को लेकर, जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड को मिलाकर, अकार्बनिक फ़ॉस्फ़ेट की शक्तिशाली बनाता है तथा शर्करा और अन्य खाद्य पदार्थ का निर्माण करता है।
पुष्प :
संवृतबीजी के पुष्प नाना प्रकार के होते हैं और इन्हीं की बनावट तथा अन्य गुणों के कारण संवृतबीजी का वर्गीकरण किया गया है। परागण के द्वारा पौधों का निषेचन होता है। निषेचन के पश्चात् भ्रूण धीरे धीरे विभाजित होकर बढ़ता चलता है। इसकी भी कई रीतियाँ हैं जिनका भारतीय वनस्पति विज्ञानी महेश्वरी ने कॉफी विस्तार से अध्ययन किया है।
भ्रूण बढ़ते बढ़ते एक या दो दलवाले बीज बनाता है, परंतु उसके चारों तरफ का भाग अर्थात् अंडाशय, तथा स्त्रीकेसर (pistil) का पूरा भाग बढ़कर फल को बनाता है। बीजों को ये ढँके रहते हैं। इसी कारण इन बीजों को आवृतबीजी या संवृतबीजी कहते हैं। फल भी कई प्रकार के होते हैं, जिनमें मनुष्य के उपयोग में कुछ आते हैं।
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