Harsh Ka Shashan Prabandh हर्ष का शासन प्रबंध

हर्ष का शासन प्रबंध



GkExams on 08-01-2019

एक कुशल प्रशासक एवं प्रजापालक राजा के रूप में हर्ष को स्मरण किया जाता है। नागानंद में उल्लेख आया है कि हर्ष का एकमात्र आदर्श प्रजा को सुखी व प्रसन्न देखना था। कादम्बरी व हर्षचरित में भी उसे प्रजा-रक्षक कहा है। राजा के दैवीय सिद्धान्त का इस समय प्रचलन था लेकिन इससे तात्पर्य यह नहीं कि राजा निरंकुश होता था। वस्तुत: राजा के अनेक कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व होते थे जिन्हें पूरा करना पड़ता था। उनकी व्यक्तिगत इच्छायें कर्त्तव्यों के सामने गौण थी। राजा को दण्ड एवं धर्म का रक्षक माना जाता था।


हर्ष की छवि ह्वेनसांग के विवरण से एक प्रजापालक राजा की उभरती है। वह राजहित के कार्यों में इतना रत रहता था कि निद्रा एवं भोजन को भी भूल जाता था। मौर्य सम्राट् अशोक की भाँति वह भी पूरे दिन शासन-संचालन में लगा रहता था। साम्राज्य की दशा, प्रजा की स्थिति, उनका जीवन-स्तर जानने के लिए प्राचीन काल के राजा वेश बदल कर रात्रि में भ्रमण किया करते थे। हर्ष भी अपने साम्राज्य का भ्रमण करता था। प्रजा के सुख-दु:ख से अवगत होता था। दुष्ट व्यक्ति को दण्ड व सज्जन को पुरस्कार देता था। वह युद्ध शिविरों में भी प्रजा की कठिनाईयाँ सुनता था। हर्षचरित में शिविरों का उल्लेख हुआ है। इस विवरण से तत्कालीन राजवैभव झलकता है। बाण ने राज्याभिषेक की परंपरा का उल्लेख किया है। हर्ष ने प्रभाकरवर्द्धन के राज्याभिषेक का उल्लेख किया है। राजप्रासाद वैभवपूर्ण व सर्वसुविधा सम्पन्न थे। राजा के व्यक्तिगत सेवकों में पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों की संख्या भी काफी होती थी। इनमें महाप्रतिहारी, प्रतिहारीजन, चामरग्राहिणी, ताम्बूल, करंकवाहिनी आदि उल्लेखनीय हैं। प्रासादों की सुरक्षा का कड़ा प्रबंध था। ह्वेनसांग के विवरण से हर्ष के परोपकार कायों का उल्लेख मिलता है। उसने सड़कों की सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किये और यात्रियों के ठहरने की समुचित व्यवस्था की। दान-पुण्य के कायों में भी वह बहुत खर्च करता था।


एक मंत्रिपिरषद् राजा को राजकीय कार्य में मदद देने के लिए होती थी। मंत्रियों के लिए प्रधानामात्य एवं अमात्य शब्द प्रयुक्त होते थे। रत्नावली नागानंद में कई प्रकार के प्रशासनिक पदों का उल्लेख है। बहुत से मंत्री गुप्तकालीन ही थे, जैसे सन्धिविग्रहिक, अक्षयपटलाधिकृत, सेनापति आदि। मंत्रियों की सलाह काफी महत्त्व रखती थी। ह्वेनसांग के विवरण से स्पष्ट होता है कि राज्यवर्द्धन के वध के पश्चात् कन्नौज के राज्याधिकारियों ने मंत्रियों की परिषद् की सलाह से हर्ष से कन्नौज की राजगद्दी संभालने का अनुरोध किया। स्पष्ट है कि प्राचीन काल में मंत्रियों को स्वतंत्र रूप से अपने विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता थी। प्रशासनिक व्यवस्था की धुरी राजा ही होता था। वह अंतिम न्यायाधीश व मुख्य सेनापति भी था। राजा सभी विभागों की देख-रेख करता था। केन्द्रीय शासन सुविधा की दृष्टि से कई विभागों में विभाजित था। प्रधानमंत्री, संधिविग्रहिक (पर राष्ट्र विभाग देखने वाला) अक्षयपटालिक (सरकारी लेखपत्रों की जाँच करने वाला), सेनापति (सेना का सर्वोच्च अधिकारी), महाप्रतिहार (राजप्रासाद का रक्षक), मीमांसक (न्यायाधीश), लेखक, भौगिक आदि अधिकारी प्रमुख थे। इनके अतिरिक्त महाबलाधिकृत, अश्वसेनाध्यक्ष, गजसेनाध्यक्ष, दूत, उपरिक महाराज, आयुक्त तथा दीर्घद्वग (तीव्रगामी संवादक) जैसे पदाधिकारी थे।


राज्य प्रशासनिक सुविधाँ के लिए ग्राम, विषय, भुक्ति एवं राष्ट्र आदि में विभाजित था। भुक्ति से तात्पर्य प्रांत से था और विषय का जिलों से। शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी। ग्राम अपने क्षेत्र में स्वतंत्र थे। ग्रामिक ग्राम का प्रमुख होता था। इसके अलावा भी कर्मचारियों की श्रृंखला मिलती है जैसे महासामंत, सामत दौस्साध, कुमारामात्य आदि।


दण्ड-व्यवस्था हर्ष के समय की कठोर थी। ह्वेनसांग लिखता है कि शासन कार्य सत्यतापूर्वक सम्पन्न होने पर लोग प्रेम-भाव से रहते हैं। अत: अपराधियों की संख्या अल्प है। राज्य के विरुद्ध षड्यंत्र करने पर आजीवन कैद की सजा दी जाती थी। इसके अलावा अंग-भंग, देश निकाला आर्थिक जुर्माना भी दिया जाता था। ह्वेनसांग के अनुसार अपराध की सत्यता को ज्ञात करने के लिए चार प्रकार की कठिनदिव्य प्रणालियाँ काम में लाई जाती थीं-जल द्वारा, अग्नि द्वारा, तुला द्वारा, विष द्वारा। साहित्यिक एवं अभिलेखीय साक्ष्य भी न्याय प्रबंध पर प्रकाश डालते हैं। अपराधियों के अपराध का निर्णय न्यायाधीश करते थे जो मीमांसक नाम से जाने जाते थे। अपराधियों के लिए जेल या बंदीगृह की व्यवस्था थी। कभी-कभी उन्हें बेड़ियाँ भी पहनाई जाती थीं। विशेष उत्सवों या समारोहों के समय अपराधियों का अपराध क्षमा कर दिया जाता था। हर्ष जब दिग्विजय के लिए जाते थे, तब भी उनका अपराध क्षमा कर दिया जाता था।


ठोस एवं दृढ़ आर्थिक नीति का पालन हर्ष ने किया था। ह्वेनसांग के विवरण से ज्ञात होता है कि राजा आय को उदारतापूर्वक व्यय करते थे। राजकोष के चार हिस्से थे-एक भाग धार्मिक कार्यों तथा सरकारी कार्यों में, दूसरा भाग बड़े-बड़े सार्वजनिक अधिकारियों पर खर्च होता था, तीसरे भाग से विद्वानों को पुरस्कार और सहायता दी जाती थी, चौथा भाग दान-पुण्य आदि में खर्च होता था।


हर्षकाल में जनता पर करों का अत्यधिक दबाव नहीं था। राजकर उपज का ⅙ था। भूमिकर के अलावा खनिज पदार्थों पर भी कर लगाया जाता था। चुंगी भी राज्य की आय का प्रमुख स्रोत थी। नागरिकों पर लगाये गये आर्थिक जुर्माने से भी राज्य की आय होती थी। हर्ष काल के प्रमुख कर भाग, हिरण्य तथा बलि थे। उद्रंग व उपरिकर का भी उल्लेख है।


सैनिक शासन अपने साम्राज्य की सुरक्षा हेतु हर्ष ने एक संगठित सेना का गठन किया था। वह सेना का सर्वोच्च अधिकारी था। सेना में पैदल, अश्वारोही, रथारोही, अस्तिआरोही होते थे। ह्वेनसांग के विवरण से स्पष्ट है कि हर्ष की सेना में पैदल सैनिक असंख्य थे, एवं 20,000 घुड़सवार व 60,000 हाथी थे। हर्षचरित के विवरण से सेना में ऊंटों के अस्तित्व का बोध होता है। हर्ष की सेना में नौ सेना भी अवश्य रही होगी। महाबलाधिकृत सेनापति अश्वसेनाध्यक्ष आदि बहुत से सैनिक अधिकारियों का उल्लेख मिलता है। इस समय तक सेना में रथ का प्रयोग समाप्त हो चुका था। हर्ष ने गुप्तचर संस्था का भी विकास किया था। पुलिस विभाग का भी गठन किया गया। चौरोद्धरणिक, दण्डपाशिक आदि पुलिस विभाग के अधिकारी थे।


धार्मिक आस्था- ह्वेनसांग के विवरण से भी हर्ष का महायान बौद्धानुयायी होना स्पष्ट होता है। हर्ष ने बहुत से बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया। बौद्ध के प्रसार के लिए उसने चीनी यात्री की सहायता प्रदान की। बांसखेड़ा व मधुवन अभिलेख में उसे परमसौगात कहा गया है। ब्राह्मणों को भी वह बहुत कुछ दान करता था। लेकिन बौद्ध धर्म के प्रति उसके झुकाव का आशय यह नहीं था कि वह कट्टर बौद्ध था। बांसखेडा ताम्रपत्र, नालंदा व सोनीपत से प्राप्त मुहरों में उसे परममाहेश्वर कहा गया है। इससे उसकी शिव-भक्ति का भी बोध होता है। हर्ष एक धर्मसहिष्णु शासक था जिसके शासन-काल में सभी धर्म फले-फूले।


कन्नौज धर्म-परिषद्- सम्राट हर्ष के शासन-काल की एक महत्त्वपूर्ण घटना कन्नौज की परिषद् है। कन्नौज की धर्म-परिषद् हर्ष के आयोजन का मुख्य उद्देश्य उन तमाम भ्रान्तियों का निराकरण था जो उस समय विविध धर्मावलम्बियों के समक्ष समस्या उत्पन्न कर रही थी। कन्नौज की धर्म परिषद् के आयोजन के पूर्व इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए चीनी यात्री ह्वेनसांग से कहा था- मैं कान्यकुब्ज में एक विशाल सभा करने की इच्छा करता हूँ और महायान की विशेषताओं को दिखाने तथा चित्र के भ्रम का निवारण करने के लिए श्रमणों, ब्राह्मणों तथा पंचगौड़ के बौद्ध तथा धर्मेतर मतावलम्बियों को आज्ञा देता हूँ कि वे आकर उसमें सम्मिलित हों। जिससे उनका अहर्भाव दूर हो जाय और वे परमेश्वर के महान् गुण को समझ सके। 643 ई. की फरवरी में कन्नौज में परिषद् की बैठक हुई। इसमें 18 देशों के राजा तीन हजार श्रमण (महायान तथा हीनसान), तीन सहस्र ब्राह्मण एवं निग्रन्थ अर्थात जैन तथा नालन्दा मठ के एक हजार पुरोहितों ने भाग लिया। ह्वेनसांग को वाद-विवाद का अध्यक्ष बनाया गया।


महामोक्ष परिषद्- हर्ष पाँचवें वर्ष प्रयाग में एक दान वितरण समारोह का आयेाजन करता था। इसे महामोक्ष परिषद् कहा जाता था। इसमें सम्राट् विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करता था। इसमें सम्मिलित मनुष्यों को मुक्त हस्त से दान देता था। ह्वेनसांग इस प्रकार के समारोह में सम्मिलित हुआ था। उसने इसका विस्तृत विवरण दिया है, छठी महामोक्ष परिषद् में लगभग 5 लाख मनुष्य सम्मिलित हुए।


ह्वेनसांग का यात्रा-विवरण- प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्ष के समय भारत आया था। वह 629 ई. में चीन से भारत आया व 645 ई. में लौट गया। वह नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रन्थों को लेने आया था। हर्ष की प्रयाग सभा में सम्मिलित होने के बाद वह वापस चला गया। वह अपने साथ बहुत से बौद्ध ग्रन्थ और भगवान बुद्ध के अवशेष ले गया। उसने चीन पहुँचकर अपनी यात्रा विवरण लिखा। यह विवरण ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसमें हर्ष से संबंधित विवरण के साथ तत्कालीन जनजीवन की झांकी मिलती है। उसके विवरण के आधार पर हमारे समक्ष प्राचीन भारत का एक सजीव चित्र उपस्थित हो जाता है। ह्वेनसांग ने हर्षवर्धन की प्रशासनिक अवस्था का चित्र खींचा है। हर्ष राज्य के कार्यों में व्यक्तिगत रूप से रुचि लेता था। दण्डनीति उदार थी, लेकिन कुछ अपराधों में दण्ड-व्यवस्था कठोर थी। राज्य के प्रति विद्रोह करने पर आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती थी। दिव्य प्रथा का प्रचलन था। राजनैतिक दृष्टि से वैशाली व पाटलिपुत्र का महत्त्व घटने लगा था। उसके स्थान पर प्रयाग व कन्नौज का महत्त्व बढ़ने लगा था।


तत्कालीन समाज को ह्वेनसांग ने चार भागों में बाँटा है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। शूद्रों को उसने खेतिहर कहा है। स्पष्ट है कि शूद्रों की स्थिति में अवश्य ही सुधार हुआ होगा। चीनी यात्री ने मेहतरों, जल्लादों जैसे अस्पृश्य लोगों का भी उल्लेख किया है। वे शहर से दूर रहते थे और प्याज, लहसुन खाते थे। सामान्य रूप से लोग हर प्रकार के अन्न-मक्खन आदि का प्रयोग करते थे। ह्वेनसांग वहाँ के लोगों के चरित्र से बहुत प्रभावित हुआ था। उसने उन्हें सच्चे व ईमानदार बताया है। सरलता, व्यवहारकुशलता व अतिथि प्रेम भारतीयों का मुख्य गुण माना है।


ह्वेनसांग के विवरण से ऐसा आभास होता है कि उस समय भारत में हिन्दू धर्म का प्रभाव अधिक था। ब्राह्मण यज्ञ करते थे व गायों का आदर करते थे। विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी। विष्णु, शिव व सूर्य के अनेक मंदिर थे। जैनधर्म व बौद्धधर्म का भी प्रचलन था। सामान्य रूप से लोग धर्म सहिष्णु थे। विभिन्न सम्प्रदायों में एकता कायम रहती थी। वादविवाद या शास्त्रार्थ का भी माहौल रहता था जो कभी-कभी उग्र रूप धारण कर लेता था।


यहाँ की आर्थिक समृद्धि से ह्वेनसांग बहुत प्रभावित हुआ था। लोगों के रहन-सहन का स्तर ऊंचा था। सोने व चाँदी के सिक्कों का प्रचलन था लेकिन सामान्य विनिमय के लिए कौड़ियों का प्रयोग होता था। भारत की भूमि बहुत उपजाऊ थी। पैदावार अच्छी होती थी। भूमि अनुदान के रूप में भी दी जाती थी। रेशमी, सूती, ऊनी कपड़ा बनाने का व्यवसाय उन्नत था। आर्थिक श्रेणियों का भी उल्लेख मिलता है। हर्ष-काल में उनका विकास हो गया था। ताम्रलिप्ति, भड़ौंच, कपिशा, पाटलिपुत्र आदि शहर व्यापारिक गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र थे। भारत के व्यापारिक संबंध पश्चिमी देशों, चीन, मध्य एशिया आदि से थे। दक्षिणी-पूर्वी द्वीप समूह यथा-जावा, सुमात्रा, मलाया आदि से व्यापार जलीय मार्ग द्वारा होता था।


ह्वेनसांग ने हर्ष द्वारा आयोजित कन्नौज व प्रयाग की सीमाओं का उल्लेख किया है। ह्वेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय का भी उल्लेख किया है जो उस समय की शैक्षणिक गतिविधियो का केन्द्र था। तत्कालीन समाज का शैक्षणिक स्तर बहुत उच्च था। हर्ष के धार्मिक दृष्टिकोण, दानशीलता व प्रजावत्सलता का भी उसने उल्लेख किया है।






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Comments Harshita Awjhekar on 04-06-2023

Haaras KY he iske liye prabandh karna kyu jaruri he

Radha arya on 21-09-2022

vishv me kitne hospital he

Tasha arya on 25-04-2021

Study kya he bataiye






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