Sanksharan Ki Paribhasha संक्षारण की परिभाषा

संक्षारण की परिभाषा



GkExams on 21-11-2018

धातुओं के संक्षारण निवारण में सैद्धांतिक रूप में उन सभी उपायों एवं कारकों को छोड़ देना पड़ता है जो स्थायी अवस्था के प्रत्यावर्तन को प्रोत्साहित करते हैं। इस प्रकार के कारक विभिन्न धातुओं के लिए भिन्न भिन्न होते हैं, परंतु सामान्य रूप में तथा ऑक्सीजन मिश्रित विलयन एवं जल में विलेय पदार्थ स्थायी अवस्था के प्रत्यावर्तन को प्रोत्साहित करते हैं। संक्षारण के निवारण में उपर्युक्त कारकों का पूर्ण बहिष्कार प्राय: असंभव होता है। अत: इनकी उपस्थिति में स्वयंस्थिरक (stiffening) क्रियाओं का सहारा लिया जाता है। धातुसंक्षारण की विशेष परिस्थितियों में संक्षारण की गति पर अधिकतम अवरोध उत्पन्न करनेवाले कारक को संक्षारण का नियंत्रक कारक कहा जाता है। औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्राय: सभी धातुओं के बाह्य तल पर वातावरण में खुले रहने से दिखाई देनेवाली, अथवा न दिखाई देनेवाली, सूक्ष्म परत जम जाती है, जो अनुवर्ती संक्षारण प्रक्रियायों को प्रभावित करती है। सामान्यत: यह परत खुली धातु के ऑक्साइड से निर्मित होती है। इसके गुण मूल धातु के गुणों से भिन्न होते हैं तथा खुले रहने की परिस्थितियों से भी व्यवहारभिन्नता उत्पन्न होती है। अधिकांश परिस्थितियों में ऑक्साइड की यह परत मूलधातु के संक्षारण का निवारण करती है। इस प्रकार की मोटी परत जब प्रसारण एवं संकुचन के कारण कहीं कहीं से टूट जाती है, तब इन स्थानों पर विद्युत्-रासायनिक-संक्षारण प्रारंभ हो जाता है। धातुओं के संक्षारण को निम्नांकित छह भागों में विभक्त किया जाता है :

  • (1) वायुमंडलीय संक्षारण, जिसमें धातुओं पर संक्षारण की क्रिया वायु में धातु को खुली रखने से प्रारंभ होती है (इस प्रकार के संक्षारण में के जल का धातु के ऊपर निक्षेपित होना अथवा न होना दोनों ही दशाएँ सम्मिलित हैं)
  • (2) पूर्णत:, अथवा आंशिक रूप में, द्रव में निमज्जित धातु का संक्षारण,
  • (3) की दशा का संक्षारण,
  • (4) सामुद्रिक जल द्वारा संक्षारण,
  • (5) मिट्टी द्वारा संक्षारण तथा
  • (6) अन्य विशेष दशा द्वारा संक्षारण।

उपर्युक्त प्रत्येक दशा के संक्षारण प्रक्रम में विशेषता होती है और इसके निवारण के लिए भिन्न भिन्न उपाय किए जाते हैं।


धातुओं के संक्षारण निवारण में विभिन्न रीतियों का उपयोग होता है, जिनमें निम्नांकित प्रमुख हैं :

  • (1) संक्षारण उत्पन्न करने वाले बाह्य कारकों का नियंत्रण,
  • (2) विद्युत्-रासायनिक-रीतियों द्वारा निवारण (जैसे [सक्रिय कैथोडी रक्षण]] द्वारा) ,
  • (3) संक्षारण निवारक धातु एवं के उपयोग,
  • (4) धातु के ऊपर संक्षारण निवारक अधिलेप।

संक्षारण निवारण की अंतिम रीति सर्वाधिक उपयोग में आती है। इस रीति में धातु के स्वच्छ बाह्य तल पर ऑक्साइड जैसे प्राकृतिक निवारक अधिलेप का संबलन अथवा उसके सदृश प्रभावोत्पादक कृत्रिम अधिलेप पदार्थ का उपयोग किया जाता है। अधिलेप द्वारा निवारण की इस रीति में रंगलेप एवं इसी प्रकार के अन्य लेपों का उपयोग होता है, जिनमें क्षारक क्रोमेट पदार्थ, लिथार्ज, रक्त सीस, लाल लोह ऑक्साइड, ग्रैफाइट, विटुमिनी पदार्थ आदि प्रमुख हैं। संक्षारण निवारण में , (atomization), , विद्युत् निक्षिप्त अधिलेप तथा अन्य धातु अधिलेप का अधिकाधिक उपयोग होने लगा है।






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Comments Shreyas on 14-01-2024

Hविद्युत्-रासायनिक-रीतियों द्वारा निवारण

Ranjeet Kumar on 08-08-2023

Sanksharan pad ki pribhasa de

Prashant Bhadauria on 16-06-2021

संक्षारण की परिभाषा क्या है ।






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