Bauddh Dharm Ki Gatiyan बौद्ध धर्म की गलतियां

बौद्ध धर्म की गलतियां



GkExams on 10-01-2019


कुछ विद्वानों के कथनानुसार भारतवर्ष से बौद्ध धर्म के लोप हो जाने का कारण 'ब्रह्मणों का विरोध' ही था। बौद्ध धर्म के पुर्व ब्राम्हण वैदिक धर्म का पालन करते थे अत्ः बौद्ध धर्म का आगमन एक प्रकार से ब्राम्हण धर्म के विरुध्द एक् क्रान्ति थी। मौर्यकाल में चुकि सम्राट अशोक ने बौध्द धर्म को अपना राजधर्म बना लिया था अतः इसके आचरनानुसार वैदिक बलिप्रथा पर रोक लगादी थी जिससे बौद्ध धर्म का काफी विस्तार हुआ। प्रतिक्रान्तिस्वरुप बाद के शुण्ग शासक ने ईसे फिर से प्रारम्भ करवा दिया था। देवानाप्रिय अशोक ने पूरे जम्बूद्विप में लगभग 84000 हजार स्तुपबनवाये थे जिसमे साची, सारनाथ ईत्यादि थे। पुश्यमित्र शुङ को बुद्धिस्टो से शत्रुता रखनेवाला मानाजाता है जिसने बुध्दिस्टो के शास्त्र जलाए तथा भिक्षुओं का नरसन्हार किया। अपनी गलती का कुपरिणाम भोगकर ब्राह्मण जब पुनः सँभले तो वे बौद्ध धर्म की बातों को हि अपने शास्त्रों में ढूँढ़कर बतलाने लगे और अपने अनुयायियों को उनका उपदेश देने लगे।" बौद्ध- धर्म का मुकाबला करने के लिए हिंदू धर्म के विद्वानों ने प्राचीन कर्मकांडके स्थान पर ज्ञान- मार्ग और भक्ति- मार्ग का प्रचार करना आरंभ किया। कुमारिल भट्ट और शंकराचार्य जैसे विद्वानों ने मीमांसा और वेदांत जैसे दर्शनों का प्रतिपादन करके बौद्ध धर्म के तत्त्वज्ञान को दबाया और रामानुज, विष्णु स्वामी आदि वैष्णव सिद्धांत वालों ने भक्ति- मार्ग द्वारा बौद्धों के व्यवहार- धर्म से बढ़कर प्रभावशाली और छोटे से छोटे व्यक्ति को अपने भीतरस्थान देने वाला विधान को प्रचारित किया। साथ ही अनेक हिंदू राजा भी इन धर्म- प्रचारकों की सहायतार्थ खडे़ हो गए। इस सबका परिणाम यह हुआ कि जिस प्रकार बौद्ध धर्म अकस्मात् बढ़कर बडा़ बन गया और देश भर में छा गया, उसी प्रकार जब वह निर्बल पड़ने लगा, तो उसकी जड़ उखड़ते भी देर न लगी।

ईसके अन्तर्गत मध्य एशिया से आये श्वेत हुन तथा मंगोल, मुस्लिम शासक मुहम्मद बिन कासिम, मेह्मुद गजनवी तथा मोह्म्मद गौरी ईत्यादि को माना जा सकता है। भारत के उत्तरी पूर्व भाग से आने वाले श्वेत हुन तथा मंगोलो के आक्रमनो से भी बौद्ध धर्म को बहुत हानि हुई। मुहम्मद बिन कासिम का सिन्ध पर आक्रमन करने से भारतीयो का पहली बार् इस्लाम से परिचय हुआ। चुकि सिन्ध का शासक दाहिर एक, बौद्धीस्ट प्रजा पर शासन करनेवाला अलोकप्रिय शासक था, अत्ः राजा दाहिर को मुहम्मद ने हरा दिया। मेह्मुद गजनवी ने 10 वी शताब्दी ईसवी में बुद्धिस्ठ एवम ब्राम्हण दोनो धर्मो के धार्मिक स्थलो को तोडा एवम सम्पुर्ण पंजाब क्षेञ पर कब्जा कर लिया। इस प्रकार से बहुत से बौद्ध नेपाल एवम तिब्बत की ओर भाग गये। अंररेज अफसर ह्चीसन के अनुसार तुर्किश जनरल मुहम्मद बख्तियार खिल्जी केद्वारा भी बडी मात्रा में बुद्धिस्ट भिक्खुओ का कत्लेआम किया गया था। मंगोलो में चंगेज खानने सन 1215 में अफगानिस्तान एवम समस्त मुस्लिम देशों में तबाही मचा दी थी, उसकी मौतके बाद उसका साम्राज्य दो भागो में बट गया। भारतीय सीमा पर चगताई ने चगताई साम्राज्य खडा किया तथा ईरान प्लातु पर हलाकु खान ने अपना साम्राज्य बनाया जिसमे हलाकु के पुत्र अरघुन ने बौद्ध धर्म अपना कर इसे अपना राजधर्म बनाया था। उसने मुस्लिमों की मस्जिदो को तोड्करस्तुप निर्माण कराये थे। बाद में उस्के पुत्र ने फिर से इस्लाम को अपना राजधर्म बना लिया। तैमुरलङ ने 14 वी सदी में लगभग सारे पश्चिम एवम मध्य एशिया को जीत लिया था, तेमुर ने बहुत से बुद्धिस्ट स्मारक तोडे एवम बुद्धिस्टो को मारा।


आज बौद्ध धर्म अनेक दूरवर्ती देशों में फैला हुआ है और जिसके अनुयायियों की संख्या विश्व में तीसरे स्थान पर है किन्तु भारत में अधिकांश अन्य धर्म वालों से बहुत कम हो गयी है। इसका भारत से इस प्रकार लोप हो जाना बड़ा हि दुर्भाग्यजनक हुआ है। लोग बौद्ध धर्म को पूर्ण रूप से एक विदेशी- धर्म ही मानने लगे थे किन्तु 14 अक्तुबर 1956 को दलितो के नेता डा.भीमराव अम्बेड्कर ने हिन्दु धर्म में व्याप्त छूआछुत से तङ आकर अपने लगभग 10 लाख अनुयायियो के साथ भारत के ईस प्राचीन एवम समानता पर आधारित धर्म को अपनाकर, बौद्ध धर्म को पुनः उसकी उसी जन्मभुमि पर पुनर्जीवित कर दिया है तथा आज महारास्ट्र, उत्तर प्रदेश एवम देशभर के दलीत बौद्ध धर्म को माननेवाले बन गये हैं।


इस विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि संसार के सभी प्रमुख धर्म लोगों को निम्न स्तर के जैविक मुल्यो से निकालकर उच्च मुल्यो को प्राप्त करने के उद्देश्य से स्थापित किए गए हैं। पारसी, यहूदी, ईसाई, इस्लाम आदि मजहब आज चाहे जिस दशा में हों पर आरंभ में सबने अपने अनुयायियों को जीवन के श्रेष्ठ मुल्यो पर चलाकर उनका कल्याण साधन ही किया था। पर काल- क्रम से सभी में कुछ व्यक्तियों या समुदाय विशेष की स्वार्थपरता के कारण विकार उत्पन्न हुए और तब उनका पतन होने लगा। तब फिर किन्हीं व्यक्तियों के हृदय में अपने धर्म की दुरावस्था का ख्याल आया और वे लोगों को गलत तथा हानिकारक मार्ग से हटाकर धर्म- संस्कार का प्रयत्न करने लगे। बुद्ध भी इस बात को समझते थे और इसलिए यह व्यवस्था कर गये थे कि प्रत्येक सौ वर्ष पश्चात् संसार भर के बौद्ध प्रतिनिधियों की एक बडी़ सभा की जाए और उसमें अपने धर्म तथा धर्मानुयायियों की दशा पर पूर्ण विचार करके जो दोष जान पडे़ उनको दूर किया जाए और नवीन समयोपयोगी नियमों को प्रचलित किया जाए। इस उद्देश्य की सिद्धी के लिए अगर आवश्यक समझा जाए तो पुरानी प्रथाओं और नियमों से कुछ छोटी-मोटी बातों को छोडा़ और बदला जा सकता है।


बौद्ध धर्माचार्यों द्वारा इसी बुद्धिसंगत व्यवस्था पर चलने और रूढि़वादिता से बचे रहने का यह परिणाम हुआ कि बौद्ध धर्म कई सौ वर्ष तक निरंतर बढ़ता रहा और संसार के दूरवर्ती देशों के निवासी आग्रहपूर्वक इस देश में आकर उसकी शिक्षा प्राप्त करके अपने यहाँ उसका प्रचार करते रहे। जीवित और लोक- कल्याण की भावना से अनुप्राणित धर्म का यही लक्षण है कि वह निरर्थक या देश- काल के प्रतिकूल रीति- रिवाजों के पालन का प्राचीनता या परंपरा के नाम पर वह आग्रह नहीं करता। वरन् सदा आत्म- निरीक्षण करता रहता है और किसी कारणवश अपने धर्म में, अपने समाज में अपनी जाति में यदि कोई बुराई, हानिकारक प्रथा-नियम उत्पन्न हो गए हों तो उनको छोड़ने तथा उनका सुधार करने में आगा- पीछा नहीं करता। इसलिए बुद्ध की सबसे बडी़ शिक्षा यही है कि-मनुष्यों को अपना धार्मिक, सामाजिक आचरण सदैव कल्याणकारी और समयानुकूल नियमों पर आधारित रखना चाहिए। जो समाज, मजहब इस प्रकार अपने दोषों, विकारों को सदैव दूर करते रहते हैं, उनको ही 'जिवित' समझना चाहिए और वे ही संसार में सफलता और उच्च पद प्राप्त करते हैं।


वर्तमान समय में हिंदू धर्म में जो सबसे बडी़ त्रुटि उत्पन्न हो गई है। वह यही है कि इसने आत्म- निरीक्षण की प्रवृत्ति को सर्वथा त्याग दिया है और 'लकीर के फकीर' बने रहने को ही धर्म का एक प्रमुख लक्षण मान लिया है। अधिकांश लोगों का दृष्टिकोण तो ऐसा सीमित हो गया है कि वे किसी अत्यंत साधारण प्रथा- परंपरा को भी, जो इन्हीं सौ-दो सौ वर्षों में किसी कारणवश प्रचलित हो गई है। पर आजकल स्पष्टतः समय के विपरीत और हानिकारक सिद्ध हो रही है, छोड़ना 'धर्म विरुद्ध समझते' हैं। इस समय बाल- विवाह, मृत्युभोज, वैवाहिक अपव्यय, छुआछूत, चार अर्णों के स्थान पर आठ हजार जातियाँ आदि अनेक हानिकारक प्रवृत्तियाँ हींदू- समाज में घुस गई हैं, पर जैसे ही उनके सुधार की बात उठाई जाती है, लोग 'धर्म के डूबने की पुकार, मचाने लग जाते हैं बुद्ध भगवान् के उपदेशों पर ध्यान देकर हम इतना समझ सकते है कि- वास्तविक धर्म आत्मोत्थान और चरित्र- निर्माण में है, न कि सामाजिक लौकिक प्रथाओं में। यदि हम इस तथ्य को समझ लें और परंपरा तथा रुढि़यो के नाम पर जो कूडा़-कबाड़ हमारे समाज में भर गया है। उसे साफ कर डालें तो हमारे सब निर्बलताएँ दूर करके प्राचीन काल की तरह हम फिर उन्नति की दौड़ में अन्य जातियों से अग्रगामी बन सकते हैं।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Anil kumar on 15-05-2022

Buodh dharam me bhi anay dharam ki bhati avtar pr visvas kiya jata he kya

Rakesh kumar Aligarch on 10-07-2021

Hame Boodh Dharm Bilkul Gallat Laga He kiyo is Dharm me Aapne Baap ko Baap Nahi Balki Dusro ke Baap Ko Baap Bola jaata he jai Sanatn Dharm ki Sanaatan dharm jinda tha Or jinda He Or jinda Rahega jai shri Ram

Harishchind.patel. on 20-09-2020

हम बौद्ध धर्म से सहमत हैं अप्प दीपो भव


Vinod kumar on 16-01-2020

Kya baudh dharam sahi jai





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