शेष भारत के अनुरूप राजस्थान में भी अंग्रेजों, निरकुंश राजतंत्र तथा
अत्याचारी सामन्तों के प्रति घोर असन्तोष व्याप्त था। उनके असन्तोष को
मूर्तरूप देने के लिए संगठन की आवश्यकता थी। वैसे राजस्थान में 20वीं
शताब्दी के प्रारम्भ में संगठनों तथा संस्थाओं का निर्माण होने लग गया था।
लेकिन 1919 ई. मेंराजस्थानसेवासंघ
के स्थापित हो जाने से जनता की अभिव्यक्ति के लिए एक सशक्त माध्यम मिल
गया। 1920 से 1929 तक राजस्थान में होने वाले कृषक आन्दोलन का नेतृत्व इसी
संघ के द्वारा किया गया था। 1919 ई. में अन्य महत्वपूर्ण संगठन का निर्माण
हुआ, जिसका नाम "राजपूताना-मध्यभारतसभा"
रखा गया। इस सभा का उद्देश्य शासकों और सामन्ती जुल्मों के विरूद्ध आवाज
उठाना था। संगठन निर्माण की प्रक्रिया में 1927 में उठाया गया जब अखिलभारतीयदेशीराज्यलोकपरिषद्
का निर्माण किया गया। परन्तु राजस्थान के विभिन्न राज्यों में ऐसे संगठन
का अभाव था जिसका ध्येय पूरी रियासत हो। इतना ही नहीं अखिल भारतीय कांग्रेस
भी रियासतों के मामलों में उदासीन ही रही किन्तु हरिपुराकांग्रेस
में स्थिति में परिवर्तन आया और 1938 के इस अधिवेश में रियासती जनता को भी
अपने-अपने राज्य में संगठन निर्माण करने तथा अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन
करने की छूट दे दी परिणामस्वरूप राजस्थान के विभिन्न राज्यों में
प्रजामंडलों की स्थापना हुई। अब राजस्थानी रियासतों का आन्दोलन मुख्यतः इसी
संस्था के नेतृत्व में लड़ा जाने लगा।
मेवाड़मेंप्रजामंडलआंदोलन
- उदयपुर में प्रजामंडल आंदोलन की स्थापना का श्रेय श्रीमाणिक्यलालवर्मा
को जाता है। 24 अप्रैल, 1938 को श्री बलवन्तसिंह मेहता की अध्यक्षता में
मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना की। प्रजामण्डल की स्थापना के समाचारों से
मेवाड़ की जनता में अभूतपूर्व उत्साह का संचार हुआ, परंतु जैसे ही मेवाड़
सरकार को इसकी सूचना मिली, सरकार ने श्री वर्माजी को मेवाड़ से निष्कासित कर
दिया तथा बिना सरकार से आज्ञा लिए सभा, समारोह करने, संस्थाएँ बनाने एवं
जुलूस निकालने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। - उदयपुर सरकार द्वारा मेवाड़
प्रजामण्डल को 24 सितम्बर, 1938 को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया, परंतु
उसी दिन नाथद्वारा में निषेधाज्ञा के बावजूद कार्यकर्ताओं द्वारा विशाल
जुलूस निकाल गया। प्रजामण्डल कार्यकर्ताओं ने सरकार को अल्टीमेटम दिया कि 4
अक्टूबर, 1938 तक प्रजामण्डल से प्रतिबन्ध नहीं हटाया गया तो सत्याग्रह
प्रारंभ किया जाएगा। - मेवाड़ सरकार ने प्रजामंडल नेताओं व
कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। श्री भूरेलाल बया को सराड़ा किले (मेवाड़
का काला पानी) में नजरबंद कर दिया गया। विजयादशमी के दिन प्रजामंडल
कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह प्रारंभ किया। क्रांतिकारी रमेशचन्द्रव्यासकोपहलासत्याग्रही
बनकर गिरफ्तार होने का श्रेय प्राप्त हुआ। सत्याग्रहियों पर पुलिस दमन
चक्र प्रारंभ हो गया। इसकी परवाह न करते हुए सत्याग्रहियों ने जगह-जगह
जुलूस निकालें, आमसभाएँ की एवं सरकार की आलोचना की। - श्री माणिक्यलाल वर्मा ने मेवाड़कावर्तमानशासन
नामक पुस्तिका छपवाकर वितरित करवाई जिसमें मेवाड़ व्याप्त अव्यवस्था एवं
तानाशाही की आलोचना की गई। लोगों में जागृति लाने हेतु मेवाड़ प्रजामण्डल :
मेवाड़वासियों से एक अपील नामक पर्चें भी बाँटे गये। सरकार ने डाक पर
सेंसर लगा दिया। - 24 जनवरी, 1939 को श्री माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी
नारायणी देवी वर्मा एवं पुत्री को प्रजामंडल आंदोलन में भाग लेने के कारण
राज्य से निष्कासित कर दिया गया। - मेवाड़ में भयंकर अकाल पड़ने के
कारण प्रजामंडल ने गाँधीजी के आदेश पर 3 मार्च, 1939 को सत्याग्रह स्थगित
कर दिया गया। श्री वर्माजी का स्वास्थ्य खराब होने की खबर मिलने पर श्री
जवाहर लाल नेहरू ने मेवाड़ सरकार को पत्र लिखा, तब 8 जनवरी, 1940 को उन्हें
जेल से रिहा किया गया। इसके बाद प्रजामण्डल ने बेगार एवं बलेठ प्रथा के
विरूद्ध अभियान चलाया फलस्वरूप मेवाड़ सरकार को इन दोनों, प्रथाओं पर रोक
लगानी पड़ी। यह मेवाड़ प्रजामंडल की पहली नैतिक विजय थी। - 22 फरवरी,
1941 को मेवाड़ प्रजामंडल पर से प्रतिबन्ध हटने के बाद प्रजामंडल ने सदस्यता
अभियान प्रारंभ किया एवं 25-26 नवम्बर, 1941 को श्री माणिक्यलाल वर्मा की
अध्यक्षता में पहला अधिवेशन आयोजित किया, जिसका उद्घाटनआचार्यजे. बी. कृपलानी ने
किया। अधिवेशन में अपार भीड़ के समक्ष राज्य में उत्तरदायी शासन की
स्थापना, सरकार द्वारा प्रस्तावित धारा सभा में संशोधन एवं नागरिक अधिकारों
की बहाली आदि प्रस्ताव पारित किए गए। इसके बाद मेवाड़ के प्रत्येक जिले एवं
परगने में प्रजामंडल की शाखाएँ खोली गई। - मेवाड़ प्रजामंडल ने
कांग्रेस द्वारा 9 अगस्त, 1942 को शुरू किये गये भारत छोड़ों आंदोलन में
सक्रिय रूप से भाग लेना प्रारंभ किया। 20 अगस्त, 1942 को प्रजामंडल की
कार्यसमिति ने मेवाड़ महाराणा को पत्र द्वारा चेतावनी दी कि यदि 24 घंटे के
भीतर महाराजा ब्रिटिश सरकार से संबंध विच्छेद नहीं करते हैं तो जन आन्दोलन
प्रारंभ किया जाएगा। सरकार द्वारा प्रजामंडल कार्यकारिणी के सदस्यों को
गिरफ्तार कर लिया गया तथा 23 अगस्त से जुलूस आदि पर प्रतिबंध लगा दिए गये।
सरकारी दमन चक्र प्रारंभ हो गया कार्यकर्ताओं ने सर्वत्र अंग्रेजों भारत
छोड़ों के नारे बुलन्द किए गये। स्त्रियों एवं छात्रों ने भी आंदोलन में
बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सरकार ने बड़ी संख्या में सत्याग्रहियों को गिरफ्तार
कर लिया। नारायणी देवी वर्मा, उनकी पुत्री आदि कई महिलाओं को गिरफ्तार किया
गया। मेवाड़ प्रजामंडल को मेवाड़ सरकार द्वारा वापस गैर-कानूनी घोषित कर
दिया गया। - प्रजामंडल ने भील सेवाकार्य, भील छात्रावास आदि कार्यों
को पुनः प्रारंभ किया। ठक्कर बापा की सलाह से उचित योजना बनाई गई। मेवाड़
हरिजन सेवक संघ के कार्यों को पुनर्गठित कर वहाँ गृह उद्योगों का विकास
किया गया। - 31 दिसम्बर, 1945 एवं 1 जनवरी, 1946 को उदयपुर के सलेटिया मैदान में अखिलभारतीयदेशीलोकराज्यपरिषद् काछठाअधिवेशनपं. जवाहरलालनेहरूकीअध्यक्षता
में हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कर देशी रियासतों के शासकों से बदलती
राजतनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप अविलंब उत्तरदायी शासन की स्थापना की
अपील की गई।
मारवाड़मेंप्रजामण्डलआंदोलन
- जोधपुर
राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना एवं नागरिक अधिकारों की माँग बीसवीं
सदी के तीसरे दशक में जोर पकड़ने लगी। जागरूक कार्यकर्ताओं- जयनारायण व्यास,
भँवरलाल सर्राफ, आनन्दराज सुराणा आदि ने इस हेतु 1920 मेंमारवाड़सेवासंघ
नामक पहली राजनीतिक संस्था स्थापित की। परंतु इसके कुछ समय बाद ही
निष्क्रिय हो जाने के कारण 1921 ई. में इसके स्थान पर मारवाड़ हिताकारिणी
सभा का गठन हुआ। इसने समय-समय पर सरकार की जनविरोधी नतियों की आलोचना की
एवं विरोध प्रकट किया। - 11-12 अक्टूबर, 1929 को मारवाड़ हितकारिणी
सभा का प्रथम अधिवेश जोधपुर में आयोजित होना था परंतु जोधपुर सरकार ने इस
पर प्रतिबंध लगा दिया एवं प्रमुख राजनीतिक नेताओं-जयनारायण व्यास, आनन्दराज
सुराणा एवं भँवरलाल सर्राफ आदि को जेल में डाल दिया गया एवं अध्यादेश
द्वारा सभा, जुलूस, धरने आदि पर प्रतिबंध लगा दिया। - 10 मई, 1931 को जयनारायण व्यास आदि ने मारवाड़यूथलीग की स्थापना की।
- मारवाड़
राज्य लोक परिषद् की बैठक चांदकरण शारदा की अध्यक्षता में 24-25 नवम्बर,
1931 को पुष्कर (अजमेर) में हुई। कस्तूरबा गाँधी, काका कालेलकर आदि इसमें
उपस्थिति थे। इस सम्मेलन ने मारवाड़ में राजनीतिक चेतना का प्रसार किया। - सरकार ने 1932 में मारवाड़ हितकारिणी सभा एवं मारवाड़ यूथ लीग तथा बाल भारत सभा को अवैध घोषित कर दिया।
- 1934
में जयनारायण व्यास, आनन्दमल सुराणा आदि ने राज्य में उत्तरदायी सरकार की
स्थापना एवं नागरिक अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से जोधपुर में
जोधपुर प्रजामंडल का गठन किया। - कृष्णा दिवस मारवाड़ की कृष्णा कुमारी को न्याय दिलवाने के लिए 1935 में बंबई में मनाया गया था।
- 1936 में कराची में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के अधिवेशन में जयनारायण व्यास को महामंत्री चुना गया। श्रीव्यासनेबम्बईसेअखण्डभारतकासम्पादन प्रारंभ किया।
- 1937 में दीपावली के दिन जोधपुर प्रजामंडल एवं सिविल लिबर्टीज यूनियन को अवैध घोषित कर दिया गया।
- 1938
के कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के बाद 16 मई, 1938 को जोधपुर में मारवाड़
लोक परिषद् की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य महाराजा की छत्रछाया में
उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था। फरवरी, 1939 में सरकार द्वारा
जयनारायण व्यास पर लगाये गये प्रतिबंध हटाने के बाद वे जोधपुर आये एवं
मारवाड़ में प्रजामंडल आंदोलन की बागडोर संभाली। व्यासजी पर से प्रतिबन्ध
हटवाने में बीकानेर महाराजा गंगासिंह जी का बड़ा योगदान था। - अप्रैल,
1940 में पं. जवाहरलाल नेहरू ने मारवाड़ की स्थिति के आकलन हेतु पं.
द्वारकानाथ कचरू को जोधपुर भेजा जिन्होंने रिपोर्ट में जोधपुर के वातावरण
को दम घोंटने वाला बताया। महात्मा गाँधी ने भी मारवाड़ की स्थिति से क्षुब्ध
होकर अपने पत्र हरिजन में उसकी आलोचना की। परंतु सरकार का दमन चक्र तेज
हो गया। - 26 जून, 1940 को मारवाड़ लोक परिषद् एवं मारवाड़ शासन के
मध्य समझौता हुआ जिसमें सरकार ने लोक परिषद् को जन प्रतिनिधि सभा के रूप
में मान लिया एवं महाराजा की छत्र-छाया में उत्तरदायी सरकार की स्थापना के
उद्देश्य को स्वीकार कर लिया तथा कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया गया तब लोक
परिषद् ने अपना आंदोलन समाप्त कर दिया। आंदोलन की अपूर्व सफलता ने लोक
परिषद् के जीवन में नवीन चेतना एवं शक्ति का संचार किया। जून, 1940 में
श्री जयनारायण व्यास को मारवाड़ लोक परिषद् का अध्यक्ष चुना गया। 28 मार्च,
1941 को मारवाड़ में उत्तरदायी शासन दिवस मनाया गया। - 7-8 जून, 1941
को सरकार ने प्रथम बार जोधपुर नगरपालिका के चुनाव क्षेत्रीय आधार पर
करवाये। लोक परिषद् को 22 में से 18 स्थानों पर जीत हासिल हुई एवं श्रीजयनारायणव्यासनगरपालिकाकेप्रथमनिर्वाचितअध्यक्षबने। - 26
जनवरी, 1942 को लोक परिषद् के तत्वावधान में स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया।
श्री व्यास ने नगरपालिका अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर राज्य में उत्तरदायी
शासन की स्थापना हेतु संघर्ष को पुनः प्रारम्भ किया। उन्होंने उत्तरदायीशासनकेलिएसंघर्ष वसंघर्षक्यों ?
आदि पुस्तिकाएँ वितरित करवाई तथा 11 मई से दूसरा सत्याग्रह आरंभ किया गया।
श्री बालमुकुन्द बिस्सा का जेल में अव्यवस्था व अन्याय के विरूद्ध भूख
हड़ताल करने के कारण स्वास्थ्य खराब हो जाने से 19 जून, 1942 को मृत्यु हो
गई। इसकी देश में सर्वत्र कड़ी प्रतिक्रिया हुई। - लोक परिषद् के आंदोलन में मारवाड़ की महिलाएँ भी महिमा देवी किंकर के नेतृत्व में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी।
- 9
अगस्त, 1942 को गाँधी के भारत छोड़ों आंदोलन के प्रारंभ होने के कारण
मारवाड़ में प्रजामंडल आंदोलन में और तेजी आ गई। परिषद् के कई नेताओं को
गिरफ्तार कर लिया गया। जयनारायण व्यास की पुत्री रमादेवी, अचलेश्वर प्रसाद
शर्मा की पत्नी कृष्णा कुमारी आदि के नेतृत्व में महिलाओं ने आंदोलन को
बढ़ाया। - देश में कैबिनेट मिशन योजना के तहत् श्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ एवं देश की संविधानसभामेंजोधपुरसेश्रीसी.एस. वेंकटाचारीएवंश्रीजयनारायणव्यास को प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया।
- 13
मार्च, 1947 को डीडवाना परगने के डाबड़ा गाँव में मारवाड़ लोक परिषद् के
नेता मथुरादास माथुर, राधाकिशन बोहरा आदि किसान सम्मेलन को संबोधित करने
हेतु गये। जागीरदारों ने अपने लठैतों के माध्यम से लोक परिषद् के
कार्यकर्ताओं पर (श्री मोतीलाल चौधरी के घर पर) लाठियों व तेज धार वाले
हथियारों से आक्रमण करवा दिया। श्री मोतीलाल के पिता व भाई सहित कई लोगों
को मार दिया तथा कईयों को घायल कर दिया गया। डाबड़ा काण्ड की सर्वत्र निंदा
की गई। - 21 जून, 1947 को युवा एवं अनुभवहीन महाराजा हनुवन्त सिंह
जोधपुर की गद्दी पर बैठे जो स्वयं उत्तरदायी सरकार के विरोधी थे। उनके
सामंती मंत्रिमंडल के गठन के आदेशों के विरोध में मारवाड़लोकपरिषद्ने 14 नवम्बर, 1947 कोविधानसभाविरोधदिवस
मनाया एवं 26 जनवरी, 1948 को मारवाड़ में उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु
नया आन्दोलन प्रारंभ करने की घोषणा की, परंतु जैसलमेर की सीमा पर पाकिस्तान
आक्रमण के कारण आंदोलन कुछ समय के लिए ढीला पड़ गया। 8 मार्च, 1948 से पुनः
उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु आंदोलन की घोषणा की गई एवं श्री व्यास ने
तुरंत उत्तरदायी लोकप्रिय सरकार के गठन की माँग की तथा मार्च से संघर्ष
क्यों ? पुस्तक प्रकाशित की। अन्ततः लोक नेताओं के निरन्तर विरोध एवं
केन्द्र सरकार के दबाव के कारण जोधपुर महाराजा को झुकना पड़ा। 22 फरवरी,
1948 रियासती विभाग के सचिव श्री वी.पी. मेनन जोधपुर आये एवं उनके दबाव के
फलस्वरूप 3 मार्च, 1948 को जयनारायण व्यास के प्रधानमंत्रित्व में एक मिली
जुली लोकप्रिय सरकार का गठन किया गया। 30 मार्च, 1949 को जोधपुर रियासत का
राजस्थान में विलय हो गया।
इस प्रकार प्रजामंडल आंदोलन अन्ततः राज्य में लोकप्रिय एवं उत्तरदायी सरकार की स्थापना करवाने में कामयाब हुआ।
जयपुरप्रजामंडलआंदोलन
- जयपुरप्रजामंडलकीस्थापना : 1931 ई. मेंश्रीकपूरचन्दपाटनीएवंश्रीजमनालालबजाजकेप्रयासों
से जयपुर जनसहयोग व उत्साही कार्यकर्ताओं के अभाव के कारण अगले पाँच
वर्षों तक यह प्रजामंडल राजनैतिक दृष्टि से अधिक प्रभावी भूमिका नहीं निभा
पाया एवं इस दौरान इसकी सम्पूर्ण गतिविधियाँ खादी उत्पादन एवं प्रचार जैसे
रचनात्मक कार्यों तक ही सीमित रही। - जयपुर राज्य प्रजामंडल का
पुनर्गठन : 1931 ई. में स्थापित जयपुर प्रजामंडल को राजनैतिक क्षेत्र में
अधिक प्रभावी भूमिका निभाने एवं जनता में राजनीतिक चेतना जाग्रत करने के
उद्देश्य से 1936 ई. में सेठ जमनालाल बजाज के प्रयासों से व श्री हीरालाल
शास्त्री के सहयोग से जयपुर राज्य प्रजामंडल का पुनर्गठन किया गया। जयपुर
के श्री चिरंजीलाल मिश्र को उसका अध्यक्ष तथा श्री शास्त्रीजी को उसका
मंत्री बनाया गया। श्री कपूरचंद पाटनी, हरिशचन्द्र शर्मा, चिरंजीलाल
अग्रवाल आदि भी उसकी कार्यकारिणी में थे। नवगठित प्रजामंडल ने 1937 से
कार्य प्रारंभ किया। - सन् 1938 मेंश्रीजमनालालबजाजजयपुरप्रजामंडलकेअध्यक्ष
निर्वाचित किये गये। उनकी अध्यक्षता में जयपुर में 8 व 9 मई, 1938 को
प्रजामंडल का विशाल अधिवेशन हुआ। प्रतिबंध के बावजूद निकाले गये जुलूस में
अत्यधिक संख्या में लोग शामिल हुए। 1938 में हीरालाल शास्त्री के प्रयासों
से शेखावाटी किसान सभा, जो कई वर्षों से शेखावाटी के किसानों में राजनैतिक
जाग्रति उत्पन्न कर ठिनेदारों के अत्याचारों के विरूद्ध संघर्ष कर रही थी,
का विलय जयपुर प्रजामंडल में हो गया। किसान शक्ति के व्यापक समर्थन के जुड़
जाने से जयपुर प्रजामंडल की शक्ति एवं लोकप्रियता में असाधारण वृद्धि हुई। - जयपुर
राज्य में प्रशासन पर अंग्रेज अधिकारियों का नियंत्रण था। जयपुर सरकार ने
जमनालाल बजाज के जयपुर राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया उन्होंने 1
फरवरी, 1939 को जयपुर राज्य में प्रवेश कर नागरिक अधिकारों की मांग पुरजोर
शब्दों में रखने का निर्णय लिया। सरकार ने प्रजामंडल की मांगों पर विचार
करने की बजाय प्रजामंडल को अवैध घोषित कर दिया एवं राज्य में प्रवेश करते
समय 1 फरवरी, 1939 को श्री बजाज को तथा बाद में अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर
लिया। अवैध घोषित होने के बाद प्रजामंडल का कार्यालय आगरा स्थानांतरित कर
दिया गया। 5 फरवरी, 1939 से सरकार की दमनकारी नीति के विरोध में प्रजामंडल
ने सत्याग्रह प्रारंभ किया। - प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बाद
सत्याग्रह आंदोलन का संचालन बलवंत सांवलराम देशपाण्डे, गुलाबचन्द कासलीवाल,
कपूरचन्द पाटनी, दौलतमल भण्डारी आदि नेताओं ने किया। 18 मार्च, 1939 को
जयपुर में श्रीमती दुर्गावती देवी शर्मा के नेतृत्व में महिला
सत्याग्रहियों के प्रथम जत्थे ने गिरफ्तारी दी। - सरकार द्वारा
प्रजामंडल को मान्यता प्रदान करने एवं कार्यकर्ताओं को रिहा करने का
आश्वासन देने पर गाँधीजी के निर्देश से 18 मार्च, 1939 को सत्याग्रह स्थगित
कर दिया गया। 2 अप्रैल, 1940 को प्रजामंडल एवं जयपुर सरकार के मध्य समझौता
हो गया। इसके तहत् प्रजामंडल को 2 अप्रैल को ही पंजीकृत कर लिया गया। - जेन्टलमेन्सएग्रीमेंट :
जयपुर प्रजामंडल के तत्कालीन अध्यक्ष श्री हीरालाल शास्त्री एवं रियासत के
प्रधानमंत्री पर मिर्जा इस्माइल के मध्य 1942 में एक समझौता हुआ, जिसके
तहत् महाराजा ने राज-काज में जनता को शामिल करने की अपनी नीति का उल्लेख
किया। प्रजामंडल इस उत्तर से संतुष्ट हो गया। - भारतछोड़ोंआंदोलनएवंजयपुरप्रजामंडल :
हीरालाल शास्त्री एवं मिर्जा इस्माइल के मध्य 1942 में हुए समझौते से
संतुष्ट होकर जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष हीरालाल शास्त्री ने जयपुर
प्रजामंडल को भारत छोड़ों आंदोलन से पूर्णतः अलग (निष्क्रिय) रखा। जयपुर
प्रजामंडल का एक वर्ग भारत छोड़ों आन्दोलन में सक्रिय भूमिका का निर्वहन
करना चाहता था। जिसमें बाबा हरिशचन्द्र, रामकरण जोशी, दौलतमल भण्डारी आदि
शामिल थे। उन्होंने 1942 में एक नये संगठन आजाद मोर्चे का गठन कर जयपुर
में भारत छोड़ों आन्दोलन का शुभारंभ कर दिया। सरकार ने आजाद मोर्चे के लगभग
सभी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। 26 अक्टूबर, 1942 को जयपुर महाराजा
ने संवैधानिक सुधारों हेतु एक समिति का गठन किया। - 1945 में जवाहरलाल नेहरू की प्रेरणा से आजादमोर्चे
का प्रजामंडल में विलय हो गया। मार्च, 1946 में विधानसभा में टीकाराम
पालीवाल द्वारा प्रस्तुत राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापित करने का
प्रस्ताव पास कर दिया गया। इसके बाद जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष देवीशंकर
तिवाड़ी को राज्य मंत्रिमण्डल में शामिल किया गया। इस प्रकार जयपुर राज्य
राजस्थान का पहला राज्य बना जिसने अपने मंत्रिमंडल में गैर सरकारी सदस्य
नियुक्त किया। - 1 मार्च, 1948 को जयपुर के प्रधानमंत्री वी.टी.
कृष्णामाचारी ने संवैधानिक सुधारों की घोषणा की। घोषणा का सभी ने स्वागत
किया। मंत्रिमडल में एक दीवान (प्रधानमंत्री), एक मुख्य सचिव (मुख्यमंत्री)
एवं 5 सचिव (मंत्रीगण) बनाये गये। सर वी.टी. कृष्णामाचारी को दीवान,
हीरालाल शास्त्री को मुख्य सचिव एवं देवीशंकर तिवाड़ी, टीकाराम पालीवाल एवं
दौलतमल भंडारी को प्रजामंडल की ओर से सचिव बनाया गया। दो मंत्रीगण
जागीरदारों से नियुक्त किये गये। वृहद् राजस्थान के निर्माण (30 मार्च,
1949) तक यही लोकप्रिय मत्रिमंडल कार्य करता रहा।
विभिन्नप्रजामंडल
| प्रजामंडल | विवरण |
मेवाड़ प्रजामंडल | स्थापना-24 अप्रैल, 1938 को बलवंत सिंह मेहता की अध्यक्षता में अन्य कार्यकर्ता - माणिक्यलाल वर्मा, श्री भूरेलाल बया। |
जयपुर प्रजामंडल | प्रथमतः
1931 में कर्पूरचन्द पाटनी की अध्यक्षता में गठित। 1936-37 में श्री
चिरंजीलाल मिश्र की अध्यक्षता में पुनः स्थापित। अन्य कार्यकर्ता श्री
चिरंजीलाल मिश्र, श्री हीरालाल शास्त्री, कर्पूरचंद पाटनी आदि थे। 1938 में
श्री जमनालाल बजाज अध्यक्ष बने। |
मारवाड़ प्रजामंडल | 1934 में भँवरलाल सर्राफ, अभयमल जैन एवं अचलेश्वर प्रसाद शर्मा के प्रयासों से गठित। |
मारवाड़ लोक परिषद् | 16
मई, 1938 को रणछोड़ दास गट्टानी की अध्यक्षता में अभयमल जैन (महामंत्री),
भीमराज पुरोहित, जयनारायण व्यास, अचलेश्वर प्रसाद शर्मा द्वारा स्थापित। |
बीकानेर राज्य प्रजामंडल | 4 अक्टूबर, 1936 को वैद्य मघाराम वैद्य (अध्यक्ष) व श्री लक्ष्मणदास स्वामी द्वारा गठित। |
बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् | 22 जुलाई, 1942 को बाबू रघुवर दयाल गोयल द्वारा गठित। |
कोटा राज्य प्रजामंडल | प्रथमतः
हाड़ौती प्रजामंडल के नाम से 1934 में पं. नयनूराम शर्मा एवं प्रभुलाल विजय
द्वारा स्थापित। 1938 में पं. नयनूराम शर्मा, अभिन्न हरि एवं तनसुखलाल
मित्तल के प्रयत्नों से स्थापित। |
भरतपुर प्रजामंडल | दिसम्बर,
1938 में गोपीलाल यादव (अध्यक्ष), श्री किशनलाल जोशी, श्री जुगल किशोर
चतुर्वेदी, मास्टर आदित्येन्द्र, ठाकुर देशराज आदि द्वारा स्थापित। 1939
में इसका नाम बदलकर भरतपुर प्रजा परिषद् कर दिया गया। |
सिरोही प्रजामंडल | 23 जनवरी, 1939 को श्री गोकुलभाई भट्ट (अध्यक्ष), श्री धर्मचंद सुराणा, घीसालाल चौधरी द्वारा स्थापित। |
करौली प्रजामंडल | अप्रैल, 1939 में श्री त्रिलोकचन्द माथुर, चिरंजीलाल शर्मा व कुँवर मदन सिंह द्वारा गठित |
शाहपुरा प्रजामंडल | 18 अप्रैल, 1938 को श्री रमेशचन्द्र औझा, लादूराम व्यास। |
धौलपुर प्रजामंडल | 1936 में कृष्णदत्त पालीवाल, श्री मूलचंद, श्री ज्वालाप्रसाद जिज्ञासु आदि द्वारा गठित। |
अलवर राज्य प्रजामंडल | 1938 में पं. हरिनारायण शर्मा एवं कुंजबिहारी मोदी द्वारा स्थापित। |
जैसलमेर राज्य प्रजामंडल | 15
दिसम्बर, 1945 को मीठालाल व्यास द्वारा जोधपुर में स्थापित। इसे असफल
बनाने हेतु सामन्ती तत्त्वों द्वारा जैसलमेर राज्य लोक परिषद् का गठन किया
गया। |
जैसलमेर राज्य प्रजा परिषद् | 1939 में श्री शिवशंकर गोपा द्वारा गठित। |
बूँदी प्रजामंडल | 1931 में श्री कांतिलाल द्वारा स्थापित। |
बूँदी राज्य लोकपरिषद् | 19 जुलाई, 1944 को श्री हरिमोहन माथुर व बृजसुंदर शर्मा द्वारा गठित। |
डूँगरपुर प्रजामंडल | 1 अगस्त, 1944 को श्री भोगीलाल पण्ड्या एवं शिवलाल कोटड़िया द्वारा स्थापित। अन्य सदस्य-कुरीचंद जैन, छगनलाल मेहता। |
बाँसवाड़ा प्रजामंडल | भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी, धूलजी भाई भावसार, मणिशंकर नागर आदि द्वारा 27 मई, 1945 को स्थापित। |
झालावाड़ प्रजामंडल | 25 नवम्बर, 1946 को श्री माँगीलाल भव्य (अध्यक्ष) द्वारा गठित। |
कुशलगढ़ प्रजामंडल | अप्रैल, 1942 में श्री भँवरलाल निगम (अध्यक्ष) व कन्हैयालाल सेठिया द्वारा गठित। |
प्रतापगढ़ प्रजामंडल | 1945 ई. में श्री चुन्नीलाल एवं अमृतलाल के प्रयासों से स्थापित। |
किशनगढ़ प्रजामंडल | 1939 में श्री कांतिलाल चौथानी द्वारा स्थापितकृष्णा
|
मारवाड़ प्रजमंदल में कृष्णा मामला क्या था