Kendra Aur Rajya Ke Beech Vittiya Sambandhon केंद्र और राज्य के बीच वित्तीय संबंधों

केंद्र और राज्य के बीच वित्तीय संबंधों



GkExams on 03-02-2019


भारत के संबंध में विद्वानों में इस बात को लेकर कई विवाद रहे हैं कि क्या भारत एक “संघीय व्यवस्था वाला राज्य” है या नहीं? लेकिन, जब हम किसी “संघीय राज्य” की विशेषताओं को देखते हैं तो पाते हैं कि इन विशेषताओं में से एक “संघ और उसकी इकाइयों के बीच” राजस्व के वितरण की व्यवस्था भी है. किसी भी संघीय राज्य में हमेशा शक्तियों का वितरण होता है.


भारत के संविधान में करों के वितरण के बारे में उल्लेख है जहाँ राज्यों को करों को एकत्रित करने की विशिष्ट शक्तियाँ प्राप्त हैं और करों के संबंध में अन्य विशेष शक्तियाँ केंद्र में निहित हैं.


भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची (अनुच्छेद 246) में तीन सूचियों का उल्लेख है जिनके नाम हैं – संघ सूची (Central list), राज्य सूची (State list) और समवर्ती सूची (Concurrent list). इन सूचियों के विभिन्न विषयों में करों के वितरण संबंधी उपबंध हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि संविधान निर्माताओं ने संघ और राज्यों के बीच करों के वितरण के मामले को पर्याप्त सूझ-बूझ से हल किया था.


इस प्रकार के वितरण का महत्व बहुत स्पष्ट है क्योंकि केवल इसी तरीके से सरकार यह तय कर सकती है कि राजस्व प्रत्येक राज्य को कैसे वितरित किया जाये और कितना राजस्व भारत की संचित निधि (Consolidated fund of India) में भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए रखा जाए. इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि राज्यों को उनकी भागीदारी के संबंध में राजस्वों का उचित वितरण किया जाए.


राजस्व के वितरण के स्पष्ट उपबंध होने से संघ और राज्यों के बीच किसी भ्रम की सम्भावना समाप्त हो जाती है, साथ ही इससे संघ और राज्यों के बीच मधुर संबंधो को भी प्रोत्साहन मिलता है. यदि संघ और राज्य/राज्यों के बीच राजस्व के वितरण को लेकर कोई विवाद उत्पन्न होता है तो राजस्व के वितरण से संबंधित उपबंधों को आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है. इस प्रकार का वितरण सरकार के उत्तम रूप के निर्माण को भी सुनिश्चित करता है.


भारत के संविधान में संघ और राज्यों के बीच करों के वितरण से संबंधित उपबंध भाग 12 के अंतर्गत शामिल हैं जिनमें अनुच्छेद 268 से अनुच्छेद 281 तक के उपबंध अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. इनका सामान्य विवरण निम्नानुसार है.


A. अनुच्छेद 268 – संघ द्वारा लगाये जाने वाले किन्तु राज्यों द्वारा एकत्रित और विनियोजित किये जाने वाले शुल्क (Duties levied by the Union but collected and appropriated by the States) –
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इस अनुच्छेद को संविधान (सातवाँ) संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा संशोधित किया गया था जो 1 नवम्बर 1956 से प्रभावी हुआ. अनु. 268(1) के अनुसार ऐसे स्टाम्प शुल्क (stamp duties) तथा औषधीय एवं प्रसाधन उत्पादों (medicinal and toilet preparation) पर ऐसे उत्पाद शुल्क (excise duty), जो संघ सूची में वर्णित हैं, को भारत सरकार द्वारा लगाया जायेगा (levied by the Union Government) किन्तु इन्हें राज्यों द्वारा एकत्रित (collection) किया जाएगा. किसी राज्य में लगाये गये इन शुल्कों की प्राप्तियाँ/आगम (proceeds) किसी वित्तीय वर्ष में भारत की संचित निधि का भाग नहीं होंगी बल्कि उसी राज्य को सौंप दी जायेंगी.


यदि ये शुल्क किसी संघराज्य क्षेत्र (Union territory) में लगाये गए हैं तो वहाँ ये शुल्क भारत सरकार द्वारा ही एकत्रित किये जायेंगे.


B. अनुच्छेद 268क – संघ द्वारा लगाया जाने वाला और संघ तथा राज्यों द्वारा एकत्रित और विनियोजित किया जाने वाला सेवा कर (Service tax levied by Union and collected and appropriated by the Union and the States) –
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यह अनुच्छेद संविधान (अठासीवाँ) संशोधन अधिनियम, 2003 द्वारा अंतर्विष्ट किया गया था. इसके अनुसार सेवाओं पर कर भारत सरकार द्वारा लगाये जायेंगे, किन्तु ऐसे कर भारत सरकार और राज्यों, दोनों के द्वारा एकत्रित और विनियोजित किये जायेंगे. इस प्रकार लगाये गए करों को किसी वित्तीय वर्ष में भारत सरकार और राज्यों के द्वारा एकत्रित करने और उनके आगमों को भारत सरकार और राज्यों के द्वारा विनियोजित करने से संबंधित सिद्धांतों का विनियमन संसद, विधि बनाकर, करेगी.


C. अनुच्छेद 269 – संघ द्वारा लगाये और एकत्रित किये जाने वाले, किन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर )Taxes levied and collected by the Union but assigned to the States) –
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इस अनुच्छेद को संविधान (अस्सीवाँ) संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा संशोधित किया गया था किन्तु इसे भूतलक्षी प्रभाव देते हुए 1 अप्रैल 1996 से लागू किया गया. इस अनुच्छेद के अनुसार जो कर भारत सरकार द्वारा लगाये और एकत्रित किये जायेंगे तथा 1 अप्रैल 1996 को या इस तिथि के पश्चात राज्यों को सौंप दिए जायेंगे या सौंप दिए गए समझे जायेंगे वे हैं –


1. समाचार पत्रों को छोड़कर, किसी माल के क्रय या विक्रय पर उस दशा में कर जब एसा क्रय या विक्रय अंतर्राज्यीक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है,
2. किसी माल के परेषण (consignment of goods) पर उस दशा में कर जब एसा परेषण अंतरार्ज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान होता है.


इस अनुच्छेद के उपबंधों के संबंध में गुडइयर इंडिया लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य (Goodyear India Ltd. vs State of Haryana) का वाद उल्लेखनीय है. इस वाद में प्रश्न दो अलग-अलग विक्रय कर अधिनियमों के संबंध में था जो वस्तु/माल के परेषण पर कर से संबंधित थे. हरियाणा सामान्य विक्रय कर अधिनियम, 1973 (Haryana General Sales Tax Act, 1973) की धारा 19(1)(b) और मुंबई विक्रय कर अधिनियम, 1959 (Bombay Sales Tax Act, 1959) की धारा 13AA परेषित माल पर कर अधिरोपित करते हैं, किन्तु ये प्रावधान संबंधित राज्य-विधानमंडलों की विधायी शक्ति से बाहर के हैं और इसलिए अवैध हैं क्योकि यह शक्ति संसद में निहित है. अनुच्छेद 269(3) में उपबंध है कि “संसद, यह अवधारित करने के लिए विधि द्वारा सिद्धांत बना सकेगी कि माल का क्रय या विक्रय या परेषण कब अंतर्राज्यिक व्यापार-वाणिज्य के दौरान होता है.”


इसी प्रकार, आंध्र प्रदेश राज्य बनाम नेशनल थर्मल कारपोरेशन लिमिटेड (State of Andhra Pradesh vs National Thermal Corporation Ltd.) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने केन्द्रीय विक्रय कर अधिनियम, 1956 की धारा 3 और धारा 6 पर विचार किया और अभिनिर्धारित किया कि राज्य में किसी वस्तु/माल के विक्रय का सौदा (transaction) पूरा होने के बाद उस वस्तु का राज्यों के बीच आवागमन (movement of goods) अंतर्राज्यिक व्यापार नहीं है. न्यायालय ने अंतर्राज्यिक व्यापार या वाणिज्य पर विचार करने के लिए कुछ सिद्धांत भी दिए जिनके अनुसार –


1. विक्रय के समझौते का अस्तित्व हो जिसमें माल के अंतर्राज्यिक आवागमन के संबंध में कोई अनुबंध, अभिव्यक्त या अन्तरनिहित हो,
2. ऐसे समझौते के अनुसरण में माल का एक राज्य से अन्य राज्य को आवागमन वास्तव में होना चाहिए.
3. माल का ऐसा आवागमन एक राज्य से उस अन्य राज्य को अवश्य होना चाहिए जहाँ विक्रय का कार्य पूरा होना है.


D. अनुच्छेद 270 – संघ द्वारा लगाये जाने वाले और संघ तथा राज्यों के बीच वितरित किये जाने वाले कर (Taxes levied and collected by the Government of India and shall be distributed between the Union and the States) –
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इस अनुच्छेद को भी संविधान (अस्सीवाँ) संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा संशोधित किया गया था और भूतलक्षी प्रभाव देते हुए 1 अप्रैल 1996 से लागू किया गया. यह अनुच्छेद विशेष रूप से उपबंध करता है कि संघ सूची में निर्दिष्ट सभी कर और शुल्क [इनमें मुख्य रूप से कृषि आय से भिन्न किसी आय पर कर (taxes on income other than agricultural income) और निगम कर (corporation tax) शामिल हैं], अनु. 271 में निर्दिष्ट करों और शुल्कों पर अधिभार (surcharge) और संसद द्वारा निर्मित किस विधि के अधीन किन्हीं विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए लगाया गया कोई उपकर (cess) भारत सरकार द्वारा लगाये और एकत्रित किये जायेंगे तथा संघ एवं राज्यों के बीच वितरित किये जायेंगे.


यह वितरण वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार किया जाता है. इसके अधीन जो राजस्व राज्यों को सौंपा जाता है वह बिना किसी शर्त के होता है और राज्य अपनी इस आय का अपनी मर्जी के अनुसार उपयोग करने के लिए स्वतंत्र होते हैं.


तथापि, राज्यों को राजस्व की बड़ी मात्रा प्राप्त होने के बावजूद भी यह वास्तविकता है कि राज्य अक्सर संतुष्ट नहीं होते और इसका मुख्य कारण प्राय: राजनितिक होता है. प्राय: राज्य अधिक कर लगाने/एकत्रित करने के लिए उचित और पर्याप्त प्रयास नहीं करते हैं, जबकि करों के आगम पूर्णत: भारत की संचित निधि का भाग होने की बजाय सभी राज्यों के बीच वितरित होने होते हैं.


उच्चतम न्यायालय ने टी. एम. कन्नियान बनाम आईटीओ (T.M. Kanniyan vs I.T.O) के वाद में आय कर के संबंध में निर्णय दिया और कहा कि संघराज्य क्षेत्रों से प्राप्त आय कर भारत की संचित निधि का भाग होगा और चूँकि ये संघराज्य क्षेत्र राष्ट्रपति के माध्यम से सीधे केंद्र के प्रशासनाधीन होते हैं इसलिए इनके संबंध में आय कर का वितरण आवश्यक नहीं है.


E. अनुच्छेद 271 – कुछ शुल्कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार (Surcharge on certain duties and taxes for purposes of the Union) –
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यह अनुच्छेद, जो कि भारत शासन अधिनियम 1935 की धारा 137 और धारा 138(1) के समान है, उपबंध करता है कि संसद को अनु. 269 और अनु. 270 में वर्णित शुल्कों और करों में से किसी में किसी भी समय संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार (surcharge) लगाने की शक्ति है.


ऐसे अधिभार से प्राप्त सम्पूर्ण राजस्व भारत की संचित निधि का भाग होता है और इसे राज्यों के बीच वितरित किये जाने का दावा नहीं किया जा सकता.


अनुच्छेद 272 को संविधान (अस्सीवाँ) संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा निरसित कर दिया गया है. यह अनुच्छेद संघ द्वारा लगाये और संग्रहित किये जाने वाले तथा संघ और राज्यों के बीच वितरित किये जा सकने वाले करों का उपबंध करता था.




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Comments Bharti on 14-07-2022

संघ व्यं राज्य के मध्य कर विभाजन किस निकाय द्वारा की जाती है?

Kanishka on 27-01-2020

Kandr or rajay ka bich btavara ko krta h





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