Monsooni Varsha Ki Visheshtayein मानसूनी वर्षा की विशेषताएं

मानसूनी वर्षा की विशेषताएं



GkExams on 01-02-2019


भारत की जलवायु के बारे में कहा गया है कि भारत में केवल तीन ही मौसम होते हैं, मानसून पूर्व के महीने, मानसून के महीने और मानसून के बाद के महीने। यद्यपि यह भारतीय जलवायु पर एक हास्योक्ति है, फिर भी भारत की जलवायु के मानसून पर पूर्णतः निर्भर होने को यह अच्छी तरह व्यक्त करता है।

मानसून अरबी भाषा का शब्द है। अरब सागर में बहने वाली मौसमी हवाओं के लिए अरब मल्लाह इस शब्द का प्रयोग करते थे। उन्होंने देखा कि ये हवाएं जून से सितंबर के गरमी के दिनों में दक्षिण-पश्चिम दिशा से और नवंबर से मार्च के सर्दी के दिनों में उत्तर-पूर्वी दिशा से बहती हैं।

एशिया और यूरोप का विशाल भूभाग, जिसका एक हिस्सा भारत भी है, ग्रीष्मकाल में गरम होने लगता है। इसके कारण उसके ऊपर की हवा गरम होकर उठने और बाहर की ओर बहने लगती है। पीछे रह जाता है कम वायुदाब वाला एक विशाल प्रदेश। यह प्रदेश अधिक वायुदाब वाले प्रदेशों से वायु को आकर्षित करता है। अधिक वायुदाब वाला एक बहुत बड़ा प्रदेश भारत को घेरने वाले महासागरों के ऊपर मौजूद रहता है क्योंकि सागर स्थल भागों जितना गरम नहीं होता है और इसिलए उसके ऊपर वायु का घनत्व अधिक रहता है। उच्च वायुदाब वाले सागर से हवा मानसून पवनों के रूप में जमीन की ओर बह चलती है। सागरों से निरंतर वाष्पीकरण होते रहने के करण यह हवा नमी से लदी हुई होती है। यही नमी भरी हवा ग्रीष्मकाल का दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहलाती है।

भारतीय प्रायद्वीप की नोक, यानी कन्याकुमारी पर पहुंचकर यह हवा दो धाराओं में बंट जाती है। एक धारा अरब सागर की ओर बह चलती है और एक बंगाल की खाड़ी की ओर। अरब सागर से आनेवाले मानसूनी पवन पश्चिमी घाट के ऊपर से बहकर दक्षिणी पठार की ओर बढ़ते हैं। बंगाल की खाड़ी से चलनेवाले पवन बंगाल से होकर भारतीय उपमहाद्वीप में घुसते हैं।

ये पवन अपने मार्ग में पड़ने वाले प्रदेशों में वर्षा गिराते हुए आगे बढ़ते हैं और अंत में हिमालय पर्वत पहुंचते हैं। इस गगनचुंभी, कुदरती दीवार पर विजय पाने की उनकी हर कोशिश नाकाम रहती है और विवश होकर उन्हें ऊपर उठना पड़ता है। इससे उनमें मौजूद नमी घनीभूत होकर पूरे उत्तर भारत में मूसलाधार वर्षा के रूप में गिर पड़ती है। जो हवा हिमालय को लांघ कर युरेशियाई भूभाग की ओर बढ़ती है, वह बिलकुल शुष्क होती है।

दक्षिण-पश्चिमी मानसून भारत के ठेठ दक्षिणी भाग में जून 1 को पहुंचता है। साधारणतः मानसून केरल के तटों पर जून महीने के प्रथम पांच दिनों में प्रकट होता है। यहां से वह उत्तर की ओर बढ़ता है और भारत के अधिकांश हिस्सों पर जून के अंत तक पूरी तरह छा जाता है।

अरब सागर से आने वाले पवन उत्तर की ओर बढ़ते हुए 10 जून तक बंबई पहुंच जाते हैं। इस प्रकार तिरुवनंतपुरम से बंबई तक का सफर वे दस दिन में बड़ी तेजी से पूरा करते हैं। इस बीच बंगाल की खाड़ी के ऊपर से बहने वाले पवनों की प्रगति भी कुछ कम आश्चर्यजनक नहीं होती । ये पवन उत्तर की ओर बढ़कर बंगाल की खाड़ी के मध्य भाग से दाखिल होते हैं और बड़ी तेजी से जून के प्रथम सप्ताह तक असम में फैल जाते हैं। हिमालय रूपी विघ्न की दक्षिणी छोर को प्राप्त करके यह धारा पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। इस कारण उसकी आगे की प्रगति बर्मा की ओर न होकर गंगा के मैदानों की ओर होती है।

मानसून कलकत्ता शहर में बंबई से कुछ दिन पहले पहुंच जाता है, साधारणतः जून 7 को। मध्य जून तक अरब सागर से बहनेवाली हवाएं सौराष्ट्र, कच्छ व मध्य भारत के प्रदेशों में फैल जाती हैं।

इसके पश्चात बंगाल की खाड़ी वाले पवन और अरब सागर वाले पवन पुनः एक धारा में सम्मिलित हो जाते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पूर्वी राजस्थान आदि बचे हुए प्रदेश जुलाई 1 तक बारिश की पहली बौछार अनुभव करते हैं।

उपमहाद्वीप के काफी भीतर स्थित दिल्ली जैसे किसी स्थान पर मानसून का आगमन कुतूहल पैदा करने वाला विषय होता है। कभी-कभी दिल्ली की पहली बौछार पूर्वी दिशा से आती है और बंगाल की खाड़ी के ऊपर से बहनेवाली धारा का अंग होती है। परंतु कई बार दिल्ली में यह पहली बौछार अरब सागर के ऊपर से बहनेवाली धारा का अंग बनकर दक्षिण दिशा से आती है। मौसमशास्त्रियों को यह निश्चय करना कठिन होता है कि दिल्ली की ओर इस दौड़ में मानसून की कौन सी धारा विजयी होगी।

मध्य जुलाई तक मानसून कश्मीर और देश के अन्य बचे हुए भागों में भी फैल जाता है, परंतु एक शिथिल धारा के रूप में ही क्योंकि तब तक उसकी सारी शक्ति और नमी चुक गई होती है।

सर्दी में जब स्थल भाग अधिक जल्दी ठंडे हो जाते हैं, प्रबल, शुष्क हवाएं उत्तर-पूर्वी मानसून बनकर बहती हैं। इनकी दिशा गरमी के दिनों की मानसूनी हवाओं की दिशा से विपरीत होती है। उत्तर-पूर्वी मानसून भारत के स्थल और जल भागों में जनवरी की शुरुआत तक, जब एशियाई भूभाग का तापमान न्यूनतम होता है, पूर्ण रूप से छा जाता है। इस समय उच्च दाब की एक पट्टी पश्चिम में भूमध्यसागर और मध्य एशिया से लेकर उत्तर-पूर्वी चीन तक के भू-भाग में फैली होती है। बादलहीन आकाश, बढ़िया मौसम, आर्द्रता की कमी और हल्की उत्तरी हवाएं इस अवधि में भारत के मौसम की विशेषताएं होती हैं। उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण जो वर्षा होती है, वह परिमाण में तो न्यून, परंतु सर्दी की फसलों के लिए बहुत लाभकारी होती है।

उत्तर-पूर्वी मानसून तमिलनाडु में विस्तृत वर्षा गिराता है। सच तो यह है कि तमिलनाडु का मुख्य वर्षाकाल उत्तर-पूर्वी मानसून के समय ही होता है। यह इसलिए कि पश्चिमी घाट की पर्वत श्रेणियों की आड़ में आ जाने के कारण उत्तर-पश्चिमी मानसून से उसे अधिक वर्षा नहीं मिल पाती। नवंबर और दिसंबर के महीनों में तमिलनाडु अपनी संपूर्ण वर्षा का मुख्य अंश प्राप्त करता है।

भारत में गिरने वाली अधिकांश वर्षा मानसून काल में ही गिरती है। संपूर्ण भारत के लिए औसत वर्षा की मात्रा 117 सेंटीमीटर है। वर्षा की दृष्टि से भारत बड़ा विरोधपूर्ण प्रसंग प्रस्तुत करता है। चेरापुंजी में साल में 1100 सेंटीमीटर वर्षा गिरती है, तो जयसलमेर में केवल 20 सेंटीमीटर। मानसून काल भारत के किसी भी भाग के लिए निरंतर वर्षा का समय नहीं होता। कुछ दिनों तक वर्षा निर्बाध रूप से होती रहती है, जिसके बाद कई दिनों तक बादल चुप्पी साध लेते हैं। वर्षा का आरंभ भी समस्त भारत या उसके काफी बड़े क्षेत्र के लिए अक्सर विलंब से होता है। कई बार वर्षा समय से पहले ही समाप्त हो जाती है या देश के किसी हिस्से में अन्य हिस्सों से कहीं अधिक वर्षा हो जाती है। यह अक्सर होता है और बाढ़ और सूखे की विषम परिस्थिति से देश को जूझना पड़ता है।

भारत में वर्षा का वितरण पर्वत श्रेणियों की स्थिति पर काफी हद तक अवलंबित है। यदि भारत में मौजूद सभी पर्वत हटा दिए जाएं तो वर्षा की मात्रा बहुत घट जाएगी। मुंबई और पूणे में पड़ने वाली वर्षा इस तथ्य को बखूबी दर्शाती है। मानसूनी पवन दक्षिण-पश्चिमी दिशा से पश्चिमी घाट को आ लगते हैं जिसके कारण इस पर्वत के पवनाभिमुख भाग में भारी वर्षा होती है। मुंबई शहर, जो पश्चिमी घाट के इस ओर स्थित है, लगभग 187.5 सेंटीमीटर वर्षा पाता है, जबकि पूणे, जो पश्चिमी घाट के पवनविमुख भाग में केवल 160 किलोमीटर के फासले पर स्थित है, मात्र 50 सेंटीमीटर।

पर्वत श्रेणियों के कारण होने वाली वर्षा का एक अन्य उदाहरण उत्तर-पूर्वी भारत में स्थित चेरापुंजी है। इस छोटे से कस्बे में वर्ष में 1100 सेंटीमीटर की वर्षा औसतन गिरती है जो एक समय विश्वभर में सर्वाधिक वर्षा हुआ करती थी। यहां प्रत्येक बारिश वाले दिन 100 सेंटीमीटर तक की वर्षा हो सकती है। यह विश्व के अनेक हिस्सों में वर्ष भर में होने वाली वर्षा से भी अधिक है। चेरापुंजी खासी पहाड़ियों के दक्षिणी ढलान में दक्षिण से उत्तर की ओर जानेवाली एक गहरी घाटी में स्थित है। इस पहाड़ी की औसत ऊंचाई 1500 मीटर है। दक्षिण दिशा से बहनेवाली मानसूनी हवाएं इस घाटी में आकर फंस जाती हैं और अपनी नमी को चेरापुंजी के ऊपर उंड़ेल देती हैं। एक कुतूहलपूर्ण बात यह है कि चेरापुंजी में अधिकांश बारिश सुबह के समय गिरती है।

चूंकि भारत के अधिकांश भागों में वर्षा केवल मानसून के तीन-चार महीनों में ही गिरती है, बड़े तालाबों, बांधों और नहरों से दूर स्थित गांवों में पीने के पानी का संकट उपस्थित हो जाता है। उन इलाकों में भी जहां वर्षाकाल में पर्याप्त बारिश गिरती है, मानसून पूर्व काल में लोगों को कष्ट सहना पड़ता है, क्योंकि पानी के संचयन की व्यवस्था की कमी है। इसके साथ ही भारतीय वर्षा बहुत भारी होती है और एक बहुत छोटी अवधि में ही हो जाती है। इस कारण से वर्षा जल को जमीन के नीचे उतरने का अवसर नहीं मिलता। वह सतह से ही तुरंत बहकर बरसाती नदियों के सूखे पाटों को कुछ दिनों के लिए भर देता है और बाढ़ का कारण बनता है। जमीन में कम पानी रिसने से वर्ष भर बहने वाले झरने कम ही होते हैं और पानी को सोख लेने वाली हरियाली पनप नहीं पाती। हरियाली रहित खेतों में वर्षा की बड़ी-बड़ी बूंदें मिट्टी को काफी नुकसान पहुंचाती हैं। मिट्टी के ढेले उनके आघात से टूटकर बिखर जाते हैं और अधिक मात्रा में मिट्टी का अपरदन होता है।



Comments मनसा on 20-07-2021

मानसून वषा की छः विशेषताए लिखिए

Mahjfbjjgki on 14-04-2021

So terigqnd kon Marta hi

Poorvi on 25-11-2020

Monsoon varsha ki visheshata


Komal Dhurv on 18-06-2020

मानसूनी वरसा की विशेषताएं





नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment