Bandh Nirmann Ki हानियाँ बांध निर्माण की हानियाँ

बांध निर्माण की हानियाँ



Pradeep Chawla on 01-11-2018





नदियों पर बाँध बनाना विकास का सूचक माना जाता है. बाँध बनाकार नदी के

जल को एक जलाशय में एकत्र करके उससे जलविद्युत बनायी जाती है और नहरें

बनाकर सिंचाई के लिए खेतों को पानी उपलब्ध कराया जाता है. लेकिन प्रत्येक

परियोजना के समाज एवं पर्यावरण पर कुछ दुष्प्रभाव पड़ते हैं जैसे :





  • गाद- बाँध निर्माण से एक तालाब बन जाता है. पीछे से

    आने वाली बालू तालाब में जमा हो जाती है जिससे बाँध के नीचे अगल बगल

    क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बालू नहीं मिल पाती है.
  • पानी की गुणवत्ता – बहाव बंद होने से पानी सड़ने लगता

    है उसकी ताजगी ख़त्म हो जाती है. इस प्रभाव का प्रत्यक्ष उधाहरण उत्तराखंड

    के श्रीनगर में बनें बाँध के नीचे पानी सड़ने लगा है जिस कारण प्रसिद्ध

    किल्किलेस्वर मन्दिर में शिवलिंग में श्रद्धालु शुद्ध गंगा जल नहीं चढ़ा पा

    रहे हैं. बाँध के नीचे श्रीकोट के लोगों को गंदा पानी इस्तेमाल करना पड़ रहा

    है जिस से पीलिया जैसी बिमारी बढ़ रही है.
  • मीथेन उत्सर्जन– बाँध के जलाशयों में पत्ते, टहनियां

    और जानवरों की लाशें नीचे जमती हैं और सड़ने लगती है. तालाब के नीचे इन्हें

    ऑक्सीजन नहीं मिलती है जिस कारण मीथेन गैस बनती है जो कार्बन डाई ऑक्साइड

    से ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती है.
  • वनों का डूबना–वन तालाब में डूब जाते हैं जिससे इन वनों से मिलने वाली चरान और चुगान से लोग वंचित हो जाते हैं.
  • जैव विविधता–बांधों के कारण पानी रुकने से मछलियों की कई प्रजाति समाप्त हो जाती है जिससे जलीय जैव विविधता को नुकसान होता है.
  • जलाशयों से प्रेरित भूस्खलन– बांधो द्वारा सुरंग बनाइ

    जाती हैं. इन सुरंगों को बनाने के लिये पहाड़ियों में ब्लास्टिंग की जाती

    है जो पहाड़ियों को अस्थिर कर देता है. जिस कारण भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ जाती

    हैं.
  • मलेरिया के कीटाणुओं की वृद्धि – बांधो के जलाशयों

    में रुके पानी में मलेरिया की कीटाणु पनपते हैं. जो जलाशयों के नजदीकी

    क्षेत्र में रह रहे लोगों की बीमारियाँ बढ़ाते हैं. आप इस रिपोर्ट में देख

    सकते हैं.
  • मुक्त बहते पानी के सौन्दर्य की कमी – दुनिया के लोग

    गंगा के दर्शन करने के लिए आते हैं. बहती गंगा के स्थान पर इन्हें तालाब

    दिखते हैं जिससे इन्हें ख़ुशी से वंचित होना पड़ता है.


उपरोक्त तमाम अप्रत्यक्ष प्रभावों का मूल्यांकन करना आवश्यक है. तभी तय

किया जा सकता है की बाँध लाभकारी हैं या नहीं. बिजली उत्पादन से हुए लाभ के

सामने इन अप्रत्यक्ष नुकसानों की गणना करना आवश्यक है.



डॉक्टर भरत झुनझुनवाला द्वारा कोटलीभेल परियोजना में इन अप्रत्यक्ष नुकसानों का आंकलन किया गया जो निम्न तालिका में दिया गया है ( डॉ. भरत झुनझुनवाला की रिपोर्ट यहाँ है ):





























































































































































































































Sl No





Item





Total Cost





1





Sediment





98.0





2





Quality of river water





350.0





3





Methane emissions





62.8





4





Forests





61.1





5





Earthquakes





8.4





6





Landslides





2.9





7





Malaria and health





6.4





8





Biodiversity





11.7





9





Otters





20.0





10





Road accidents





7.1





11





Decline in temperatures





7.0





12





Sand





18.2





13





River Rafting





8.0





14





Bridges





4.9





15





Aesthetic value of free-flowing water





60.5





16





Immersion of ashes





5.4





17





Relocation of temples





4.2





18





Loss of fishing





2.5





19





Cascade effect





192.7





20





Total cost of KB1B





931.8





जबकि परियोजना से होने वाले लाभ नीचे तालिका में हैं:





























































Chapter No





Item





Total





1





Benefits from generation of power





(+) 103.8





2





12% Free power to State





(+) 50.2





3





Employment





(+) 1.5





Total





152.5





डॉक्टर भारत झुनझुनवाला की गणना के अनुसार

कोटलीभेल जल विद्युत् परियोजना से 931.8 करोड़ रुपये प्रति वर्ष का

पर्यावरणीय अप्रत्यक्ष नुकसान है जबकि परियोजना से 152.5 करोड़ का फायदा

होगा. इन नुकसानों की गणना किस आधार पर की गई है आप इस रिपोर्ट में देख सकते हैं.

बाँध से हमें बिजली प्राप्त हुयी तो दूसरी ओर हमें कई नुकसान भी हुए जो

बाँध से प्राप्त लाभ की तुलना में कही अधिक हैं. इसलिए हम मोदी जी से आग्रह

करते हैं की जल विद्युत् परियोजनाओ का मूल्याकन करते समय इन अप्रत्यक्ष

पर्यावरणीय प्रभाव की गणना करके जल विद्युत परियोजनाओ को स्वीकृति प्रदान

करें और वर्तमान समय में चल रही इन परियोजनाओ के विकल्पों पर विचार करें.




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Comments Pratap Tomar on 28-12-2020

Bandh ke nukshan

Mansi on 06-08-2020

Bandh ki haniyan
Peragraph





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