Loksabha Aur Vidhansabha Me Antar लोकसभा और विधानसभा में अंतर

लोकसभा और विधानसभा में अंतर



Pradeep Chawla on 14-09-2018


संसद देश का सर्वोच्च विधायी निकाय है। हमारी संसद राष्ट्रपति और दो सदनों-लोक सभा (हाउस आफ द पीपुल) और राज्य सभा (काँसिल आॅफ स्टेट्स) से मिला कर बनती है। राष्ट्रपति के पास संसद के किसी भी सदन की बैठक बुलाने और सत्रावसान करने अथवा लोक सभा को भंग करने का अधिकार है। लोकसभा और विधानसभा में अंतर
लोक सभा का गठन वयस्क मतदान के आधार पर प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए जनता के प्रतिनिधियों से होता है। सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या552 है जैसा कि संविधान में उल्लेख किया गया है। जिसमें 530 सदस्य राज्यों से 20 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। महामहिम राष्ट्रपति यदि ऐसा मानते हैं कि आंग्ल भारतीय समुदाय को सभा में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है तो उस समुदाय से अधिकतम दो सदस्यों को नामित करते हैं। कुल निर्वाचित सदस्य की संख्या राज्यों में इस प्रकार निर्धारित की गई है कि प्रत्येक राज्य को आवांटित सीटों की संख्या और उस राज्य की जनसंख्या के मध्य अनुपात, जहाँ तक व्यहार्य हो, सभी राज्यों के लिए समान रहे।


26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान प्रभावी हुआ। वर्ष 1951-52 के दौरान नए संविधान के अंतर्गत पहला आम चुनाव हुआ और अप्रैल 1952 में प्रथम निर्वाचित संसद, अप्रैल 1957 में दूसरी लोक सभा, अप्रैल 1962 में तीसरी लोक सभा, मार्च 1967 में चौथी लोक सभा, मार्च 1971 में पांचवी लोक सभा, मार्च 1977 में छठी लोक सभा, जनवरी 1980 में सातवीं लोक सभा, दिसम्बर 1984 में आठवीं लोक सभा, दिसम्बर 1989 में नौवीं लोक सभा, जून 1991 में दसवीं लोक सभा, मई 1996 में ग्यारहवीं लोक सभा, मार्च 1998 में बारहवीं लोक सभा, अक्टूबर 1999 में तेरहवीं लोक सभा, चौदहवीं लोक सभा मई 2004 में, पन्द्रहवीं लोक सभा मई 2009 और सोलहवीं लोक सभा मई 2014 में अस्तित्व में आयी।

पीठासीन अधिकारी

लोकसभा अपने सदस्यों में से एक सदस्य का चुनाव पीठासीन अधिकारी के रूप में करती है और उसे अध्यक्ष कहा जाता है। उसकी सहायता के लिए उपाध्यक्ष होता है जिसका चुनाव भी लोकसभा सदस्यों द्वारा किया जाता है। लोकसभा में कार्य

संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष का है।

भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है। उसका निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है जो संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनता है। राज्यसभा भी अपने सदस्यों में से एक सदस्य का चुनाव उप सभापति के रूप में करती है।

लोकसभा और राज्यसभा के कार्य

दोनों सदनों का मुख्य कार्य विधान पारित करना है। किसी भी विधेयक के विधान बनने के पूर्व इसे दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना होता है तथा राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त करनी होती है। संसद भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की संघ सूची के अंतर्गत उल्लेखित विषयों पर विधान बना सकता है। मोटे तौर पर संघ विषय में वैसे महत्वपूर्ण विषय हैं जिनका प्रशासन सुविधा, कार्यकुशलता तथा सुरक्षा कारणों से अखिल-भारतीय आधार पर किया जाता है। मुख्य संघ विषय हैं रक्षा, विदेश, रेलवे, परिवहन तथा संचार, करेंसी तथा सिक्का-ढलाई, बैंकिंग, सीमाशुल्क तथा उत्पाद शुल्क। ऐसे अन्य अनेक विषय हैं जिन पर संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों विधान बना सकते हैं।
इस श्रेणी के अंतर्गत आर्थिक तथा सामाजिक योजना, सामाजिक सुरक्षा तथा बीमा, श्रम कल्याण, मूल्य नियंत्रण तथा महत्वपूर्ण सांख्यिकी का उल्लेख किया जा सकता है। विधान पारित करने के अतिरिक्त संसद संकल्प, स्थगन प्रस्ताव, चर्चा तथा सदस्यों द्वारा मंत्रियों को संबोधित प्रश्नों के माध्यम से देश के प्रशासन पर नियंत्रण रख सकती है तथा लोगों की स्वतंत्रताओं की रक्षा कर सकती है।

लोकसभा और राज्यसभा में अंतर

  • लोकसभा के सदस्यों का चुनाव मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुरूप एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाता है।
  • प्रत्येक लोक सभा का सामान्य कार्यकाल केवल 5 वर्ष है जबकि राज्य सभा एक स्थायी सदन है।
  • संविधान के अंतर्गत मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। धन विधेयकों को केवल लोक सभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त लोकसभा ही देश के प्रशासन को चलाने के लिए राशि स्वीकृत करती है।
  • राज्य सभा को यह घोषित करने की विशेष शक्तियां हैं कि संसद के लिए राज्य सूची में वर्णित किसी विषय के संबंध में विधान बनाना राष्ट्रहित में आवश्यक तथा सामयिक है तथा केंद्र एवं राज्यों के लिए सम्मिलित एक अथवा अधिक अखिल भारतीय सेवाओं का विधि द्वारा सृजन किया जाए।

राष्ट्रपति द्वारा संसद का आरंभ

संविधान का अनुच्छेद 87(1) उपबंध करता है- ‘राष्ट्रपति लोक सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और संसद को उसके आव्हान के कारण बताएगा।’
लोकसभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन होने के बाद प्रथम सत्र की दशा में, राष्ट्रपति, सदस्यों द्वारा शपथ लिए जाने अथवा प्रतिज्ञान किए जाने और अध्यक्ष के चुने जाने के पश्चात एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करते हैं। इन प्रारंभिक औपचारिकताओं को पूरा करने में साधारणतया दो दिन लग जाते हैं। राष्ट्रपति द्वारा एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण किए जाने तक तथा संसद को इसके आव्हान के कारणों को बताए जाने तक कोई अन्य कार्य नहीं किया जाता है। प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र की दशा में राष्ट्रपति का अभिभाषण संसद के दोनों सदनों के सत्रारंभ हेतु अधिसूचित समय और तिथि को होता है। अभिभाषण की समाप्ति के आधा घंटे बाद दोनों सभाएं अपने-अपने सदन में अलग बैठकें करती हैं और राष्ट्रपति के अभिभाषण की प्रति सभा पटल पर रखी जाती है तथा प्रत्येक सदन के कार्यवाही-वृतांत में सम्मिलित की जाती है।


राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए सदस्यों को कोई पृथक आमंत्रण नहीं जारी किया जाता है। उन्हें राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए निर्धारित तिथि, समय तथा स्थान की सूचना संसदीय बुलेटिन के माध्यम से दी जाती है। राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए निर्धारित समय पर संसद के दोनों सदनों के सदस्य संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में एकत्र होते हैं जहां राष्ट्रपति अपना अभिभाषण करते हैं। नए सदस्यों, जिन्होंने शपथ नहीं लिया है अथवा प्रतिज्ञान नहीं किया है, को भी राष्ट्रपति के अभिभाषण के अवसर पर उन्हें निर्वाचन अधिकारी द्वारा दिए गए निर्वाचन प्रमाणपत्र अथवा सत्र के लिए उन्हें भेजे गए आमंत्रण को प्रस्तुत किए जाने पर केंद्रीय कक्ष में आने दिया जाता है। केंद्रीय कक्ष में प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल के सदस्यों, लोक सभा के उपाध्यक्ष तथा राज्य सभा के उप सभापति को प्रथम पंक्ति में स्थान आबंटित किया जाता है। अन्य मंत्रियों को भी एक साथ स्थान आबंटित किया जाता है।

लोकसभा तथा राज्यसभा में विपक्ष के नेता को भी प्रथम पंक्ति में स्थान आवंटित किया जाता है। अन्य दलों/ग्रुपों के नेताओं को भी उपयुक्त स्थान दिया जाता है। सभापति तालिका के सदस्यों तथा संसदीय समितियों के अध्यक्षों को दूसरी पंक्ति में स्थान आवंटित किया जाता है। अन्य सभी सदस्यों को भी उनकी वरिष्ठता के अनुसार स्थान आवंटित किया जाता है।
एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति का अभिभाषण संविधान के अधीन एक गरिमापूर्ण एवं औपचारिक कृत्य है। इस अवसर के अनुकूल अत्यधिक गरिमा और शालीनता अपनायी जाती है। किसी सदस्य के द्वारा किया गया कोई कार्य जिससे राष्ट्रपति के अभिभाषण के अवसर की गरिमा भंग हो या उसमें कोई बाधा पड़े, उस सदन द्वारा, जिसका वह सदस्य है, दंडनीय है। सदस्यों से यह आशा की जाता है कि वे राष्ट्रपति के केंद्रीय कक्ष में पहुंचने के पांच मिनट पूर्व स्थान ग्रहण कर सकते हैं।


उन दर्शकों, जिन्हें इस अवसर के लिए पास जारी किए गए हैं, से भी यह अनुरोध किया जाता है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए निर्धारित समय से आधा घंटे पूर्व वे अपना स्थान ग्रहण कर लें। ऐसी परंपरा है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण के समय कोई सदस्य केंद्रीय कक्ष को बीच में छोड़कर बाहर नहीं जाएगा। राष्ट्रपति राजकीय बग्घी अथवा कार में बैठकर संसद भवन (उत्तर पश्चिम पोर्टिको) पहुंचते हैं और राज्य सभा के सभापति, प्रधानमंत्री, लोक सभा के अध्यक्ष, संसदीय कार्य मंत्री और दोनों सदनों के महासचिव उनका स्वागत करते हैं। राष्ट्रपति को एक शोभा यात्रा में केन्द्रीय कक्ष तक ले जाया जाता है। जहाँ से शोभा यात्रा गुजरती है अर्थात संसद भवन के मुख्य द्वार से केन्द्रीय कक्ष तक लाल कालीन बिछाया जाता है।


जैसे ही राष्ट्रपति की शोभायात्रा केन्द्रीय कक्ष के गलियारे में दाखिल होती है, वैसे ही मंच पर पहले से ही मौजूद मार्शल (माननीय सदस्यों, माननीय राष्ट्रपति) कहते हुए राष्ट्रपति के आगमन की घोषणा करता है। इसके साथ ही मंच के ऊपर दीर्घा में खड़े दो बिगुल-वादक राष्ट्रपति के मंच पर पहुंचने तक बिगुल नाद करते रहते हैं। उस समय सभी सदस्य अपने-अपने स्थान पर उठकर खड़े हो जाते हैं और जब तक राष्ट्रपति अपने आसन पर बैठ नहीं जाते तब तक सदस्य खड़े रहते हैं। केन्द्रीय कक्ष में मंच के सामने पहुंच कर यह शोभायात्रा दो भागों में बंट जाती है; बीच के आसन पर राष्ट्रपति बैठते हंै, उसके दायें राज्य सभा का सभापति और बायें लोक सभा का अध्यक्ष। शोभायात्रा में शामिल दोनों सदनों के महासचिव और अन्य अधिकारी केन्द्रीय कक्ष में मंच के दायें और बायें रखी कुर्सियों की ओर जाते हैं। जब राष्ट्रपति मंच पर अपने स्थान पर पहुंचते है तो उसकी दायीं ओर केन्द्रीय कक्ष की लॉबी में उपस्थित बैंड वादक राष्ट्रगान की धुन बजाते हैं और इस दौरान प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने स्थान पर खड़ा रहता है। उसके बाद जब राष्ट्रपति बैठ जाते है तब पीठासीन अधिकारी और सदस्य अपने-अपने स्थानों पर बैठ जाते हैं। तत्पश्चात राष्ट्रपति अभिभाषण हिन्दी अथवा अंग्रेजी में पढ़ते है। अभिभाषण को राज्य सभा के सभापति द्वारा दूसरी भाषा में पढ़ा जाता है। अभिभाषण समाप्त होने पर राष्ट्रपति उठ खड़े होते है और उसके साथ ही सदस्यगण भी उठ खड़े होते हैं तथा राष्ट्रगान की धुन फिर बजाई जाती है। उसके बाद राष्ट्रपति, अपने आगमन के समय जैसे ही शोभायात्रा में केन्द्रीय कक्ष से चले जाते है। जब तक शोभायात्रा चली नहीं जाती, सदस्य खड़े रहते हैं। राष्ट्रपति संसद भवन के द्वार पर पहुंच कर राज्य सभा के सभापति, प्रधानमंत्री, लोक सभा के अध्यक्ष तथा संसदीय कार्य मंत्री से विदा लेता है। इस अवसर पर दोनों सदनों के महासचिव भी उपस्थित रहते हैं। उसके बाद राष्ट्रपति राष्ट्रपति भवन के लिए प्रस्थान करते है।


लोक सभा क्या है ?

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, लोक सभा जन प्रतिनिधियों का निकाय है। इसके सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन मताधिकार सम्पन्न वयस्क लोगों द्वारा सामान्यत: प्रत्येक 5 वर्षों में एक बार किया जाता है। सदन की सदस्यता के लिए न्यूनतम अर्ह आयु 25 वर्ष है। लोक सभा की वर्तमान सदस्य संख्या 545 है। विभिन्न राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के बीच विभाजित सदस्यों की संख्या निम्न है-
(1) आंध्र प्रदेश 42
(2) अरुणाचल प्रदेश 2
(3) असम 14
(4) बिहार 40
(5) छत्तीसगढ़ 11
(6) गोवा 2
(7) गुजरात 26
(8) हरियाणा 10
(9) हिमाचल प्रदेश 4
(10) जम्मू और कश्मीर 6
(11) झारखंड 14
(12) कर्नाटक 28
(13) केरल 20
(14) मध्य प्रदेश 29
(15) महाराष्ट्र 48
(16) मणिपुर 2
(17) मेघालय 2
(18) मिजोरम 1
(19) नागालैंड 1
(20) उड़ीसा 21
(21) पंजाब 13
(22) राजस्थान 25
(23) सिक्किम 1
(24) तमिलनाडु 39
(25) त्रिपुरा 2
(26) उत्तरांचल 5
(27) उत्तर प्रदेश 80
(28) पश्चिम बंगाल 42
(29) अंडमान और निकोबार 1
(30) चंडीगढ़ 1
(31) दादर और नागर हवेली 1
(32) दमन और द्वीव 1
(33) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली 7
(34) लक्षद्वीप 1
(35) पांडिचेरी 1
(36) आंग्ल भारतीय (यदि संविधान के अनु. 331 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्दिष्ट किए गए हैं)


राज्य सभा क्या है ?


राज्य सभा संसद का उच्च सदन है। इसमें 250 से अनधिक सदस्य हैं। राज्य सभा के सदस्य लोगों द्वारा सीधे निर्वाचित नहीं होते बल्कि विभिन्न राज्यों की विधान सभाओं द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं। प्रत्येक राज्य को निश्चित सदस्य संख्या आबंटित की गयी है। राज्य सभा का कोई भी सदस्य 30 वर्ष से कम आयु का नहीं हो सकता है।


राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा के 12 सदस्य नाम निर्देशित किए जाते हैं जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है। राज्य सभा एक स्थायी निकाय है। इसका विघटन नहीं होता किंतु प्रत्येक दो वर्ष में इसके एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं। राज्य सभा का 3 अप्रैल 1952 को प्रथम बार यथाविधि गठन हुआ तथा इसकी पहली बैठक उस वर्ष 13 मई को हुई।

वर्तमान में राज्य सभा में 245 सदस्यगण है जिनका विभिन्न राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रवार विभाजन निम्नवत है
(1) आंध्र प्रदेश 18
(2) अरुणाचल प्रदेश 1
(3) असम 7
(4) बिहार 16
(5) छत्तीसगढ़ 5
(6) गोवा 1
(7) गुजरात 15
(8) हरियाणा 5
(9) हिमाचल प्रदेश 3
(10) जम्मू और कश्मीर 4
(11) झारखंड 6
(12) कर्नाटक 12
(13) केरल 9
(14) मध्य प्रदेश 11
(15) महाराष्ट्र 19
(16) मणिपुर 1
(17) मेघालय 1
(18) मिजोरम 1
(19) नागालैंड 1
(20) उड़ीसा 10
(21) पंजाब 7
(22) राजस्थान 10
(23) सिक्किम 1
(24) तमिलनाडु 18
(25) त्रिपुरा 1
(26) उत्तरांचल 3
(27) उत्तर प्रदेश 31
(28) पश्चिम बंगाल 16
(29) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली 3
(30) पांडिचेरी 1
(31) संविधान के अनुच्छेद 80(1)(क) के अंतर्गत 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्दिष्ट होंगे।




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