गुटनिरपेक्षता Andolan गुटनिरपेक्षता आंदोलन

गुटनिरपेक्षता आंदोलन



GkExams on 20-05-2022


गुटनिरपेक्षता आंदोलन (Non-Aligned Movement) : इसे आमतौर पर "NAM" के नाम से भी जाना जाता है। आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की यह राष्ट्रों की एक अन्तरराष्ट्रीय संस्था है, जिहोंने निश्चय किया है, कि विश्व के वे किसी भी पावर ब्लॉक के संग या विरोध में नहीं रहेंगे।


गुटनिरपेक्षता-Andolan


और यह आन्दोलन भारत के प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर व युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ सुक्रणों एवं घाना - क्वामें एन्क्रूमा का आरभ्भ किया हुआ है। इसकी स्थापना अप्रैल,1961में हुई थी।


गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन :




गुटनिरपेक्ष आंदोलन (non aligned movement in hindi) का पहला सम्मेलन वर्ष 1961 में बेलग्रेड में आयोजित किया गया जिसमें जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति सुकर्णो, मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर, घाना के राष्ट्रपति क्वामे एन्क्रूमा जैसे नेताओं ने भाग लिया।


इस समय की बात करें तो गुटनिरपेक्ष आंदोलन संयुक्त राष्ट्र के बाद विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक समन्वय और परामर्श का मंच है। इस समूह में 120 विकासशील देश (non aligned movement members) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त इस समूह में 17 देशों और 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।


गुटनिरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्य :


यहाँ हम निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा आपको गुटनिरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्यों से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है..


  • शीत युद्ध की राजनीति का त्याग करना और स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अनुसरण करना।
  • सैन्य गठबंधनों से पर्याप्त दूरी बनाए रखना।
  • साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध करना।
  • रंगभेद की नीति के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत करना और मानवाधिकारों की रक्षा के लिये यथासंभव प्रयास करना।



  • गुट निरपेक्ष आंदोलन (non aligned movement india) में भारत की भूमिका :


    यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मजबूती लेन हेतु कृतसंकल्प गुटनिरपेक्षता की नीति का मूलतः भारत की देन है। अंतरिम प्रधानमंत्री का भार संभालने के तुरंत बाद प. जवाहर लाल नेहरू ने जिस विदेश नीति की घोषणा की थी वही आगे चलकर गुटनिरपेक्षता की अवधारणा के रूप में विकसित हो गई। यह अवधारणा प्रत्यक्षतः शीत युद्ध से संबंधित है।


    वस्तुतः शीत युद्ध उस तनाव की स्थिति का नाम है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच उत्पन्न हो गयी थी। ये दोनों देश 1939 से 1945 के महायुद्ध में मित्र राष्ट्रों के रूप में भागीदार थे। परिणामतः युद्ध के दौरान जो विद्वेष धीरे धीरे पनप रहा था वह अब खुलकर सामने आ गया था।


    ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ तथा अन्य मित्र राज्यों की युद्ध में स्पष्ट विजय हुई। भले ही मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी, इटली और जापान को पराजित किया हो परंतु वें वैचारिक मतभेद स्थायी रूप से भुला नही पाए थे। शीत युद्ध इन्ही मतभेदों का परिणाम था। यह एक अनोखा युद्ध था जिसे दो विरोधी गुटों के राजनयिक रूप से लड़ा गया।





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