Manas जैवमंडल Aarakshit Shetra मानस जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र

मानस जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र



Pradeep Chawla on 12-05-2019

जैवमंडल क्या है?

जैवमंडल से तात्पर्य पृथ्वी के उस भाग से है जहां सभी प्रकार का जीवन पाया जाता है। पृथ्वी के तीन परिमंडल—स्थलमंडल, वायुमंडल और जैवमंडल जहाँ आपस में मिलते हैं, वहीं जैवमंडल स्थित है। इस जैवमंडल की परत बेहद पतली, लेकिन अत्याधिक जटिल है। किसी भी प्रकार का जीवन जैवमंडल की इसी परत में संभव है, क्योंकि इसके लिए आवश्यक भूमि, हवा और जल केवल इन तीनों मंडलों के मिलन क्षेत्र अर्थात जैवमंडल में ही मौजूद है।



(टीम दृष्टि इनपुट)



संरक्षित जैवमंडल क्या है?

यूनेस्को (UNESCO) के संरक्षित जैवमंडलों के विश्व नेटवर्क के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्दिष्ट संरक्षित क्षेत्र आते हैं, जिन्हें संरक्षित जैवमंडल कहा जाता है और जिनका उद्देश्य मानव और प्रकृति के बीच एक संतुलित संबंध को प्रदर्शित करना होता है। संरक्षित जैवमंडलों को जैव विविधता संरक्षण समाधान के सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में से एक से निपटने के लिए बनाया गया है और वह प्रश्न है...आर्थिक-सामाजिक विकास के लिये खोज और संबद्ध सांस्कृतिक मूल्यों का रखरखाव? कह सकते हैं कि संरक्षित जैवमंडल लोगों और प्रकृति दोनों के लिये विशेष वातावरण है और इसका जीवंत उदाहरण है कि कैसे मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे की ज़रूरतों के प्रति सह-अस्तित्व बनाए रख सकते हैं? भारत में कुल 18 संरक्षित जैवमंडल हैं, जिनकी सूची नीचे दी गई है।



भारत में जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र





1. कोल्ड डेजर्ट, हिमाचल प्रदेश

2. नंदा देवी, उत्तराखंड

3. कंचनजंगा, सिक्किम

4. देहांग-देबांग, अरुणाचल प्रदेश

5. मानस, असम

6. डिब्रू-साइखोवा, असम

7. नोकरेक, मेघालय

8. पन्ना, मध्य प्रदेश

9. पचमढ़ी, मध्य प्रदेश

10. अचनकमार-अमरकंटक, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़

11. कच्छ, गुजरात

12. सिमिलीपाल, ओडिशा

13. सुंदरबन, पश्चिम बंगाल

14. शेषाचलम, आंध्र प्रदेश

15. अगस्त्यमाला, कर्नाटक-तमिलनाडु-केरल

16. नीलगिरी, तमिलनाडु-केरल

17. मन्नार की खाड़ी, तमिलनाडु

18. ग्रेट निकोबार, अंडमान और निकोबार द्वीप



यूनेस्को चलाता है संरक्षित जैवमंडल अभियान

संरक्षित जैवमंडल अभियान यूनेस्को के मैन एंड बायोस्फीयर (Man and Biosphere) कार्यक्रम द्वारा निर्देशित है और भारत इस कार्यक्रम द्वारा चलाए जाने वाले परिदृश्य दृष्टिकोण (Landscape Approach) का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है। वर्ष 1986 से भारत सरकार संरक्षित जैवमंडल नामक एक योजना चला रही है, जिसके तहत पूर्वोत्तर राज्यों तथा हिमालयी (पर्वतीय) राज्यों को 90:10 के अनुपात में और अन्य राज्यों को 60:40 के अनुपात में वित्तीय सहायता दी जाती है। यह वित्तीय सहायता कुछ निश्चित वस्तुओं के रखरखाव, सुधार और विकास के लिये दी जाती है। राज्य सरकार प्रबंधन कार्य योजना (Management Action Plan) तैयार करती है, जिसकी निगरानी और अनुमोदन केन्द्रीय प्रबंधन कार्य योजना कमेटी द्वारा किया जाता है।



भारत सरकार द्वारा देश में अब तक जिन 18 संरक्षित जैवमंडलों की स्थापना की गई है, इनमें से 10 अब तक यूनेस्को के संरक्षित जैवमंडलों के वैश्विक नेटवर्क में शामिल हो चुके हैं।


Pradeep Chawla on 12-05-2019

नाम : कालिदास







जन्म : पहली से तीसरी शताब्दी के बीच ईस पूर्व माना जाता है।







पत्नी : राजकुमारी विद्योत्तमा।











आरंभिक जीवन:











कालिदास किस काल में हुए और वे मूलतः किस स्थान के थे इसमें काफ़ी विवाद है। चूँकि, कालिदास ने द्वितीय शुंग शासक अग्निमित्र को नायक बनाकर मालविकाग्निमित्रम् नाटक लिखा और अग्निमित्र ने १७० ईसापू्र्व में शासन किया था, अतः कालिदास के समय की एक सीमा निर्धारित हो जाती है कि वे इससे पहले नहीं हुए हो सकते। छठीं सदी ईसवी में बाणभट्ट ने अपनी रचना हर्षचरितम् में कालिदास का उल्लेख किया है तथा इसी काल के पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में कालिदास का जिक्र है अतः वे इनके बाद के नहीं हो सकते। इस प्रकार कालिदास के प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी के मध्य होना तय है। दुर्भाग्यवश इस समय सीमा के अन्दर वे कब हुए इस पर काफ़ी मतभेद हैं। विद्वानों में द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व का मत। प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व का मत। तृतीय शताब्दी ईसवी का मत। चतुर्थ शताब्दी ईसवी का मत। पाँचवी शताब्दी ईसवी का मत, तथा। छठीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध का मत प्रचलित थे। इनमें ज्यादातर खण्डित हो चुके हैं या उन्हें मानने वाले इक्के दुक्के लोग हैं किन्तु मुख्य संघर्ष प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व का मत और चतुर्थ शताब्दी ईसवी का मत में है।











कालिदास के जन्मस्थान के बारे में भी विवाद है। मेघदूतम् में उज्जैन के प्रति उनकी विशेष प्रेम को देखते हुए कुछ लोग उन्हें उज्जैन का निवासी मानते हैं।







साहित्यकारों ने ये भी सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कालिदास का जन्म उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा गांव में हुआ था। कालिदास ने यहीं अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी औऱ यहीं पर उन्होंने मेघदूत, कुमारसंभव औऱ रघुवंश जैसे महाकाव्यों की रचना की थी। कविल्ठा चारधाम यात्रा मार्ग में गुप्तकाशी में स्थित है। गुप्तकाशी से कालीमठ सिद्धपीठ वाले रास्ते में कालीमठ मंदिर से चार किलोमीटर आगे कविल्ठा गांव स्थित है। कविल्ठा में सरकार ने कालिदास की प्रतिमा स्थापित कर एक सभागार की भी निर्माण करवाया है। जहां पर हर साल जून माह में तीन दिनों तक गोष्ठी का आयोजन होता है, जिसमें देशभर के विद्वान भाग लेते हैं।











महाकवि कालिदास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के राजकवि थे। वह शिव भक्त थे। उनके गंथो के मंगल श्लोको से इस बात की पुष्टि होती है। मेघदूत और रघुवशो के वर्णन से पता चलता है की उन्होंने भारत की यात्रा की थी।











इसी कारण उनके काव्यों में भोगोलिक वर्णन , स्व्भविक और मनोरम हुए ।महाकवि कालिदास Mahakavi Kalidas का प्रकृति के साथ घनिष्ट संभंध रहा , वह प्रकृति को सजीव और मानवीय भावनायो से परिपूर्ण मानते थे उनके अनुसार मानव के सामान यह भी सुख दुःख का अनुभव करती है सकुंतला की विदा पर आश्रम के पशु पछि भी विचलित हो जाते हैं। हिरनी कोमल पुष्प खाना छोड़ देती है , मोर नाचना बंद कर देती है , लताये अपने पत्ते गिरा कर मनो अपनी सखी के वियोग में रो रहे हो अभिज्ञानशाकुंतलम। उनकी कविताये बहुत मनोरम है और सर्वश्रेष्ठ ,मानी जाती है अभिज्ञानशाकुंतलम के ४ अंक में कालिदास ने शकुलतल की विदा बेला पर प्रकृति द्वारा शकुलतल को दी गयी भेंट का बहुत सुन्दर वर्णन किया गया है। किसी पेड़ ने चंद्रमा के जैसा सफ़ेद मांगलिक रेशमी वस्त्र दिया किसी ने पैरो को रंगने के लिए आलता दिया , अन्य पेड़ो ने कलाई तक उठे हुए सुन्दर कोपलो की प्रति स्पर्धा करने वाले वनदेवता के करतला से आभूषण दिए











काव्यसौंदर्य:











कालिदास अपनी विषय-वस्तु देश की सांस्कृतिक विरासत से लेते हैं और उसे वे अपने उद्देश्य की प्राप्ति के अनुरूप ढाल देते हैं। उदाहरणार्थ, अभिज्ञान शाकुन्तल की कथा में शकुन्तला चतुर, सांसारिक युवा नारी है और दुष्यन्त स्वार्थी प्रेमी है। इसमें कवि तपोवन की कन्या में प्रेमभावना के प्रथम प्रस्फुटन से लेकर वियोग, कुण्ठा आदि की अवस्थाओं में से होकर उसे उसकी समग्रता तक दिखाना चाहता है। उन्हीं के शब्दों में नाटक में जीवन की विविधता होनी चाहिए और उसमें विभिन्न रुचियों के व्यक्तियों के लिए सौंदर्य और माधुर्य होना चाहिए।











त्रैगुण्योद्भवम् अत्र लोक-चरितम् नानृतम् दृश्यते। नाट्यम् भिन्न-रुचेर जनस्य बहुधापि एकम् समाराधनम्।। कालिदास के जीवन के बारे में हमें विशेष जानकारी नहीं है। उनके नाम के बारे में अनेक किवदन्तियां प्रचलित हैं जिनका कोई ऐतिहासिक मूल्य नहीं है। उनकी कृतियों से यह विदित होता है कि वे ऐसे युग में रहे जिसमें वैभव और सुख-सुविधाएं थीं। संगीत तथा नृत्य और चित्र-कला से उन्हें विशेष प्रेम था। तत्कालीन ज्ञान-विज्ञान, विधि और दर्शन-तंत्र तथा संस्कारों का उन्हें विशेष ज्ञान था।















जो बात यह महान कलाकार अपनी लेखिनी के स्पर्श मात्र से कह जाता है। अन्य अपने विशद वर्णन के उपरांत भी नहीं कह पाते। कम शब्दों में अधिक भाव प्रकट कर देने और कथन की स्वाभाविकता के लिए कालिदास प्रसिद्ध हैं। उनकी उक्तियों में ध्वनि और अर्थ का तादात्मय मिलता है। उनके शब्द-चित्र सौन्दर्यमय और सर्वांगीण सम्पूर्ण हैं, जैसे – एक पूर्ण गतिमान राजसी रथ, दौड़ते हुए मृग-शावक, उर्वशी का फूट-फूटकर आंसू बहाना, चलायमान कल्पवृक्ष की भांति अन्तरिक्ष में नारद का प्रकट होना, उपमा और रूपकों के प्रयोग में वे सर्वोपरि हैं।











मालविकाग्निमित्रम् कालिदास की पहली रचना है, जिसमें राजा अग्निमित्र की कहानी है। अग्निमित्र एक निर्वासित नौकर की बेटी मालविका के चित्र के प्रेम करने लगता है। जब अग्निमित्र की पत्नी को इस बात का पता चलता है तो वह मालविका को जेल में डलवा देती है। मगर संयोग से मालविका राजकुमारी साबित होती है, और उसके प्रेम-संबंध को स्वीकार कर लिया जाता है।











अभिज्ञान शाकुन्तलम् कालिदास की दूसरी रचना है जो उनकी जगतप्रसिद्धि का कारण बना। इस नाटक का अनुवाद अंग्रेजी और जर्मन के अलावा दुनिया के अनेक भाषाओं में हुआ है। इसमें राजा दुष्यंत की कहानी है जो वन में एक परित्यक्त ऋषि पुत्री शकुन्तला (विश्वामित्र और मेनका की बेटी) से प्रेम करने लगता है। दोनों जंगल में गंधर्व विवाह कर लेते हैं। राजा दुष्यंत अपनी राजधानी लौट आते हैं। इसी बीच ऋषि दुर्वासा शकुंतला को शाप दे देते हैं कि जिसके वियोग में उसने ऋषि का अपमान किया वही उसे भूल जाएगा। काफी क्षमाप्रार्थना के बाद ऋषि ने शाप को थोड़ा नरम करते हुए कहा कि राजा की अंगूठी उन्हें दिखाते ही सब कुछ याद आ जाएगा। लेकिन राजधानी जाते हुए रास्ते में वह अंगूठी खो जाती है। स्थिति तब और गंभीर हो गई जब शकुंतला को पता चला कि वह गर्भवती है। शकुंतला लाख गिड़गिड़ाई लेकिन राजा ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया। जब एक मछुआरे ने वह अंगूठी दिखायी तो राजा को सब कुछ याद आया और राजा ने शकुंतला को अपना लिया। शकुंतला शृंगार रस से भरे सुंदर काव्यों का एक अनुपम नाटक है।















कालिदास का नाटक विक्रमोर्वशीयम बहुत रहस्यों भरा है। इसमें पुरूरवा इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी से प्रेम करने लगते हैं। पुरूरवा के प्रेम को देखकर उर्वशी भी उनसे प्रेम करने लगती है। इंद्र की सभा में जब उर्वशी नृत्य करने जाती है तो पुरूरवा से प्रेम के कारण वह वहां अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती है। इससे इंद्र गुस्से में उसे शापित कर धरती पर भेज देते हैं। हालांकि, उसका प्रेमी अगर उससे होने वाले पुत्र को देख ले तो वह फिर स्वर्ग लौट सकेगी। विक्रमोर्वशीयम् काव्यगत सौंदर्य और शिल्प से भरपूर है।











अपने कुमारसम्भव महाकाव्य में पार्वती के रूप का वर्णन करते हुए महाकवि कालिदास ने लिखा है कि संसार में जितने भी सुन्दर उपमान हो सकते हैं उनका समुच्चय इकट्ठा करके, फिर उसे यथास्थान संयोजित करके विधाता ने बड़े जतन से उस पार्वती को गढ़ा था, क्योंकि वे सृष्टि का सारा सौन्दर्य एक स्थान पर देखना चाहते थे।[10]वास्तव में पार्वती के सम्बन्ध में कवि की यह उक्ति स्वयं उसकी अपनी कविता पर भी उतनी ही खरी उतरती है। एकस्थसौन्दर्यदिदृक्षा उसकी कविता का मूल प्रेरक सूत्र है, जो सिसृक्षा को स्फूर्त करता है। इस सिसृक्षा के द्वारा कवि ने अपनी अद्वैत चैतन्य रूप प्रतिमा को विभिन्न रमणीय मूर्तियों में बाँट दिया है। जगत की सृष्टि के सम्बन्ध में इस सिसृक्षा को अन्तर्निहित मूल तत्त्व बताकर महाकवि ने अपनी काव्यसृष्टि की भी सांकेतिक व्याख्या की है।











गुरु:











तुलसीदास के गुरु के रुप में कई व्यक्तियों के नाम लिए जाते हैं। भविष्यपुराण के अनुसार राघवानंद, विलसन के अनुसार जगन्नाथ दास, सोरों से प्राप्त तथ्यों के अनुसार नरसिंह चौधरी तथा ग्रियर्सन एवं अंतर्साक्ष्य के अनुसार नरहरि तुलसीदास के गुरु थे। राघवनंद के एवं जगन्नाथ दास गुरु होने की असंभवता सिद्ध हो चुकी है। वैष्णव संप्रदाय की किसी उपलब्ध सूची के आधार पर ग्रियर्सन द्वारा दी गई सूची में, जिसका उल्लेख राघवनंद तुलसीदास से आठ पीढ़ी पहले ही पड़ते हैं। ऐसी परिस्थिति में राघवानंद को तुलसीदास का गुरु नहीं माना जा सकता।











माता-पिता:











तुलसीदास के माता पिता के संबंध में कोई ठोस जानकारी नहीं है। प्राप्त सामग्रियों और प्रमाणों के अनुसार उनके पिता का नाम आत्माराम दूबे था। किन्तु भविष्यपुराण में उनके पिता का नाम श्रीधर बताया गया है। रहीम के दोहे के आधार पर माता का नाम हुलसी बताया जाता है।











महाकाव्य:











इन नाटकों के अलावा कालिदास ने दो महाकाव्यों और दो गीतिकाव्यों की भी रचना की। रघुवंशम् और कुमारसंभवम् उनके महाकाव्यों के नाम है। रघुवंशम् में सम्पूर्ण रघुवंश के राजाओं की गाथाएँ हैं, तो कुमारसंभवम् में शिव-पार्वती की प्रेमकथा और कार्तिकेय के जन्म की कहानी है।











मेघदूतम् और ऋतुसंहारः उनके गीतिकाव्य हैं। मेघदूतम् में एक विरह-पीड़ित निर्वासित यक्ष एक मेघ से अनुरोध करता है कि वह उसका संदेश अलकापुरी उसकी प्रेमिका तक लेकर जाए, और मेघ को रिझाने के लिए रास्ते में पड़ने वाले सभी अनुपम दृश्यों का वर्णन करता है। ऋतुसंहार में सभी ऋतुओं में प्रकृति के विभिन्न रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है।











रचनाएं:











•श्यामा दंडकम्







•ज्योतिर्विद्याभरणम्







•श्रृंगार रसाशतम्







•सेतुकाव्यम्







•श्रुतबोधम्







•श्रृंगार तिलकम्







•कर्पूरमंजरी







•पुष्पबाण विलासम्







•अभ्रिज्ञान शकुंन्त्लम







•विक्रमौर्वशीय







•मालविकाग्निमित्रम:




सम्बन्धित प्रश्न



Comments 11 भारत का बायोस्पीयर कोण हे on 23-01-2024

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