18 Vee Sadee Ke Bharat Ka Itihas 18 वीं सदी के भारत का इतिहास

18 वीं सदी के भारत का इतिहास



GkExams on 23-11-2018

18वीं सदी के विद्रोह और सुधार

  • राममोहन रॉय और ब्रह्म समाज

    सामाजिक और धार्मिक जीवन के कुछ पहलुओं के सुधार से प्रारंभ होने वाला जागरण ने समय के साथ देश के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित किया। 18वीं सदी के उत्तरार्ध में कुछ यूरोपीय और भारतीय विद्वानों ने प्राचीन भारतीय दर्शन,विज्ञान,धर्म और साहित्य का अध्ययन प्रारंभ किया। इस अध्ययन के द्वारा भारतीय अपने प्राचीन भारतीय ज्ञान से परिचित हुए,जिसने उनमें अपनी सभ्यता के प्रति गौरव का भाव जाग्रत किया।

  • 1857 का विद्रोह (कारण और असफलताए)

    1857 का विद्रोह उत्तरी और मध्य भारत में ब्रिटिश अधिग्रहण के विरुद्ध उभरे सैन्य असंतोष व जन-विद्रोह का परिणाम था| इस विद्रोह ने भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के शासन को समाप्त कर दिया और अगले 90 वर्षों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को ब्रिटिश सरकार (ब्रिटिश राज) के प्रत्यक्ष शासन के अधीन लाने का रास्ता तैयार कर दिया| इस विद्रोह के – सामाजिक और धार्मिक, आर्थिक,सैन्य और राजनीतिक –चार मुख्य कारण थे|

  • ब्रिटिश शासन में सामाजिक अधिनियम

    19वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिशों की नीतियों ने हालाँकि तत्कालीन सामाजिक समाज में व्याप्त बुराइयों के उन्मूलन में सहयोग दिया लेकिन धीरे-धीरे भारत की सामाजिक-धार्मिक बुनावट को कमजोर करने का कार्य भी किया क्योकि वे मुख्यतः अंग्रेजी सोच व समझ पर आधारित थीं| प्राच्यवाद के व्याख्याताओं ने कहा कि भारतीय समाज को आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण की आवश्यकता है| उन्हें (बुराइयों) अनेक विचारधाराओं की तीव्र आलोचना का सामना करना पड़ा| विलियम विल्बरफोर्स व चार्ल्स ग्रांट जैसे व्यक्तियों के अनुसार ‘भारतीय समाज अंधविश्वासों,मूर्ति पूजा व पुजारियों की तानाशाही से भरा पड़ा है|’

  • दक्षिण भारत में सुधार

    बंगाल से शुरू होकर धार्मिक व सामाजिक सुधार आन्दोलन भारत के अन्य भागों में भी फैल गए| ब्रहम समाज से प्रेरित होकर 1864 ई. में मद्रास में वेद समाज की स्थापना की गयी| इसने जातिगत भेदभाव का विरोध किया और विधवा पुनर्विवाह व स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित किया| ब्रहम समाज के समान,वेद समाज ने भी अंधविश्वासों व हिन्दू धर्म के रूढ़िवादी रीति-रिवाजों का विरोध किया और एक परमसत्ता में विश्वास व्यक्त किया| वेद समाज के सबसे प्रमुख नेता चेम्बेती श्रीधरालू नायडू थे।

  • पश्चिमी भारत में सुधार आन्दोलन

    सन1867 ई. में बम्बई में प्रार्थना समाज की स्थापना की गई| महादेव गोविन्द रानाडे और रामकृष्ण भंडारकर इसके मुख्य संस्थापक थे| प्रार्थना समाज के नेता ब्रहम समाज से प्रभावित थे| उन्होंने जाति-प्रथा और छुआछुत के व्यवहार का विरोध किया| रानाडे, जोकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भी संस्थापकों में से एक थे,ने 1887 ई. में इंडियन नेशनल सोशल कांफ्रेंस की स्थापना की जिसका उद्देश्य संपूर्ण भारत में सामाजिक सुधार के लिए प्रभावशाली तरीके से कार्य करना था|

  • थिओसोफिकल समाज

    ‘थिओसोफी’ सभी धर्मों में निहित आधारभूत ज्ञान है लेकिन यह प्रकट तभी होता है जब वे धर्म अपने-अपने अन्धविश्वासों से मुक्त हो| वास्तव में यह एक दर्शन है जो जीवन को बुद्धिमत्तापूर्वक प्रस्तुत करता है और हमें यह बताता है की ‘न्याय’ तथा ‘प्यार’ ही वे मूल्य है जो संपूर्ण विश्व को दिशा प्रदान करते है| इसकी शिक्षाएं,बिना किसी बाह्य परिघटना पर निर्भरता के, मानव के अन्दर छुपी हुई आध्यात्मिक प्रकृति को उद्घाटित करती हैं|

  • सय्यद अहमद खान और अलीगढ़ आन्दोलन

    सर सैय्यद अहमद खान भारत के महानतम मुस्लिम सुधारकों में से एक थे|उन्होंने आधुनिक तर्कवाद व विज्ञान के प्रकाश में कुरान की व्याख्या की| उन्होंने धर्मान्धता,संकीर्ण मानसिकता व कट्टरपन का विरोध किया और स्वतंत्र सोच को बढावा देने पर बल दिया| उनका सबसे बड़ा योगदान 1875 ई. में अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज की स्थापना था| समय के साथ यह भारतीय मुस्लिमों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थान बन गया| यह मानविकी व विज्ञान के विषयों से सम्बंधित शिक्षा को पूरी तरह से अंग्रेजी माध्यम में प्रदान करता था और इसके कई अध्यापक इंग्लैंड से भी आये थे|

  • मुस्लिम सुधार आन्दोलन

    19 वीं सदी के आरम्भ में मुस्लिम उद्बोधन के चिन्ह उत्तर प्रदेश में बरेली के सर सैय्यद अहमद खां और बंगाल के शरीयतुल्ला के नेतृत्व में उभरकर सामने आये, ऐसा ईसाई मिशनरियों,पश्चिमी विचारों के प्रभाव और आधुनिक शिक्षा के कारण संभव हो सका| उन्होंने स्वयं को इस्लाम के शुद्धिकरण व उसे मजबूत बनाने और इस्लामिक शिक्षाओं के प्रोत्साहन के लिए समर्पित कर दिया था| शरीयतुल्ला ने बंगाल के फरायजी आंदोलन की शुरुआत की,जिसने कृषकों के हित में कई कदम उठाये थे|उन्होंने मुस्लिम समाज में प्रचलित जाति-व्यवस्था का तीव्र विरोध किया था|

  • रामकृष्ण और विवेकानंद

    19 वीं सदी के धार्मिक मानवों ने न तो किसी सम्प्रदाय का समर्थन किया और न ही मोक्ष का कोई नया रास्ता दिखलाया| उन्होंने ईश्वरीय चेतना का सन्देश दिया| उनके अनुसार ईश्वरीय चेतना के आभाव में परम्पराएँ रूढ़ और दमनात्मक हो जाती है और धार्मिक शिक्षाएं अपनी परिवर्तनकारी शक्ति को खोने लगती है| 19 वीं सदी में भारत के ईश मानव रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद थे| रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का दर्शन धार्मिक सौहार्द्र पर आधारित था और इस सौहार्द्र का अनुभव व्यक्तिगत ईश्वरीय चेतना के आधार पर ही किया जा सकता है|

  • ईश्वरचंद विद्यासागर

    सामाजिक सुधार आन्दोलन, जो देश के सभी भागों और सभी धर्मों तक विस्तृत था, वास्तव में धार्मिक सुधार आन्दोलन भी था| महान विद्वान और सुधारक विद्यासागर के विचारों में भारतीय और पश्चिमी मूल्यों का सुन्दर समन्वय था| वे उच्च नैतिक मूल्यों में विश्वास करते थे और निर्धनों के प्रति उदार भाव से सम्पन्न एक महान मानववादी विचारक थे| उनकी महान शिक्षाओं के लिए कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज,जिसके वे कुछ वर्षों के लिए प्रिंसिपल रहे थे,ने उन्हें ‘विद्यासागर’ की उपाधि प्रदान की|

  • डेजेरियो और यंग बंगाल

    1820 के दशक अंतिम समय और 1830 के दशक प्रारंभ में बंगाल के युवाओं में एक उग्र/क्रांतिकारी,प्रबुद्ध और बुद्धिजीवी चलन का उदय हुआ जिसे ‘यंग बंगाल आन्दोलन’ के नाम से जाना गया|






सम्बन्धित प्रश्न



Comments Gurpreet Kaur on 31-10-2023

Chapter nahi aa reha h

Murli Dhar sharma on 29-04-2023

हमें सदी का भारत क्लासेस चैप्टर निकालो

Sneha Nirmal on 24-10-2022

18वीं Sadi ke Bhartiya rajaon ki Suchi bataiye


Kiran on 04-03-2022

18 वीं शताब्दी में बंगाल की राजनीतिक स्थिति कैसी थी

Vikas on 28-02-2022

18 bi Satabdi m madhy m bharat ki rajnitik yesthiti

Komal kumari on 20-07-2021

Bhugol kya h





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