हिंदू महिलाओं के उत्तराधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला कई महिलाओं के लिए एक बुरी खबर साबित हो सकता है. इस फैसले के मुताबिक हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 को 9 सितंबर 2005 से पहले के बंटवारों में मान्यता नहीं दी जाएगी.
इसका मतलब ये है कि जिन महिलाओं ने अपने पिता को 9 सितंबर 2005 से पहले खो दिया था उन्हें पैतृक संपत्ति में उनकी बराबर की हिस्सेदारी नहीं मिलेगी.
सुप्रीम कोर्ट के पिछले कुछ प्रगतिशील निर्णयों ने महिलाओं के कानूनी और सामाजिक ओहदे को मजबूत किया है. अकेली मां को संरक्षण अधिकार देने से लेकर एकल महिलाओं का बच्चे गोद लेने का अधिकार सुनिश्चित करने तक उच्चतम न्यायालय ने लगातार अपने निर्णयों से महिलाओं को सशक्त बनाने की कोशिश की है. ऐसे में उत्तराधिकार जैसे मुद्दे पर कोर्ट का यह रुख निराश करता है.
twकानून विशेषज्ञ इस मुद्दे के कानूनी पहलुओं और प्राथमिकता से जुड़े मुद्दों पर बहस कर सकते हैं. लेकिन, मैं एक इससे जुड़ी जटिलताओं को एक नारिवादी पहलू से समझना चाहती हूं. महिलाओं को उनके अधिकार दिलाए जाने के हिसाब से पुराना कानून प्रभावी ढंग से काम कर सकता है.
लेकिन, अक्सर कर्नाटक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जाति अधिनियम 1978 (विशेष भूमिखंडों के स्थानांतरण पर रोक) को ऐसे कानूनों के पूर्व में लागू किए जाने की जटिलताओं को ध्यान में लाने के लिए प्रयोग किया जाता है. ऐसे में हमें खुद से पूछना चाहिए क्या कानून के पालन में जटिलताओं को कानून पालन के इरादे को कमजोर करने के लिए सामने लाना चाहिए. इसकी जगह प्रशासनिक स्तरों पर ऐसे कानूनों के संचालन में सुगमता लाए जाने की जरूरत है.
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उन महिलाओं को अपनी पैतृक संपत्ति पर हक जताने से रोकता है जिनकी पैतृक संपत्तियों का बंटवारा 20 दिसंबर 2004 (कानून के पारित होने की तिथि) से पहले हुआ था. क्या ये पाबंदियां महिलाओं में नए तरीके की असमानताओं को लाने का काम नहीं करेंगीं?
वर्ष 2005 में पारित हुए संशोधन कानून की शब्दशः विवेेचना से ये निरर्हताएं पैदा हुई हैं जो हमें शब्दों के आधार पर अध्ययन की ओर लाता है. ऐसे में असमानताओं को दूर करने वाले कानूनों को ठीक ढंग से लिखे जाने की जरूरत है.
जिस कानून के बारे में बात की जा रही है वो कहता है कि संशोधन स्वयं ही ये कहता है कि महिलाओं को पैतृक संपत्तियों में हिस्सा मिलना कानून पारित होने की तिथि से ही होगा. कानून में सरल अंदाज में लिखी गई भाषा के बाद इस कानून की अलग ढंग से विवेचना की गुंजाइश नहीं है. क्या हम मान लें कि कानून को जानबूझकर इन निरर्हताओं को ध्यान में रखकर लिखा गया या ये शब्दों के चुनाव में बरती गई चूक है?
Mere pitaji ne paidrak sampatti mere sautele Bhai ko Dan kar Di hai registered ke dwara aur uske bad ham do sage bhai Hain jinhen use sampatti per koi sa nahin diya hai uska civil court mein case chal Raha hai uska kya nirnay hoga
मेरे दादा जी के 4 बेटे है जिनमे से 3 की मृत्यु हो चुकी हैं बड़ा बेटा जीवित हैं सबसे छोटे चाचा जो अविवाहित थे इनकी जमीन जायदाद उत्तर प्रदेश में है उनका उत्तराधिकारी कोन होगा।
कृप्या बताइये
Mara nana g ka 2 brother thaa onka ek le death ho chke ha onka badhe nana g ke be ho gye chota brother abhi ha sister koe nhe ha too property da hesa dar kon ha
एक पिता की दो पत्नी पहलि पत्नी एक संन्तान ओर दोसरी के चार बच्चे तो उनकी भूमी पर बटवाडा केसे होगा क्या माता के आधिकार से या बच्चों के आधिकार से होगा
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