Pushtaini sampatti Aur Hindu Uttaradhikar Adhiniyam पुश्तैनी संपत्ति और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम

पुश्तैनी संपत्ति और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम



Pradeep Chawla on 12-05-2019

हिंदुओं को उत्तराधिकार

किसी हिंदू की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों (लडक़े

तथा लड़कियां) तथा मां के बीच बराबर बांटी जाती है । अगर उसके किसी पुत्र

की उससे पहले मृत्यु हो गयी हो तो बेटे की विधवा तथा बच्चों को संपत्ति का

एक हिस्सा मिलेगा। उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि किसी हिंदू पुरुष

द्वारा पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी कर लेने से दूसरी पत्नी को

उत्तराधिकार नहीं मिलता है, लेकिन उसके बच्चों का पहली पत्नी के बच्चों की

तरह ही अधिकार होता है । हिंदू महिला की संपत्ति उसके बच्चों (लडक़े तथा

लड़कियां ) तथा पति को मिलेगी । उससे पहले मरने वाले बेटे के बच्चों को भी

बराबर का एक हिस्सा मिलेगा । अगर किसी हिंदू व्यक्ति के परिवार के नजदीकी

सदस्य जीवित नहीं हैं, तो उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पाने वाले

उत्तराधिकारियों का निश्चित वर्गीकरण होता है । हिन्दू उत्तराधिकार

अधिनियम में हिन्दू माता-पिता की पुत्री को अपने माता-पिता की संपत्ति के

उत्तराधिकार के लिए पुत्रों के समान ही अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन कृषि

भूमि के संबन्ध में सभी राज्यों में वैसी स्थिति नहीं है। कृषि भूमि

राज्यों का विषय है और समस्त कृषि भूमि को राज्य की संपत्ति माना गया है।

कृषक को कृषि भूमि पर कृषि करने मात्र का अधिकार होता है जिसे सांपत्तिक

अधिकार न मान कर ऐसा अधिकार माना गया है जैसा कि किसी अन्य स्थावर संपत्ति

के मामले में किराएदार को होता है। इस कारण से कृषि भूमि पर कृषक के अधिकार

का उत्तराधिकार राज्य में कृषि भूमि से संबन्धित कानून से शासित होता है।



उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि में कृषक का अधिकार, उत्तराधिकार की विधि के

अनुसार न हो कर भूमि कानून जमींदारी विनाश अधिनियम के अनुसार होता है।

उसमें केवल अविवाहित पुत्रियों को पिता व माता की संपत्ति में अधिकार है,

लेकिन अविवाहित रहते हुए एक बार पुत्री को यह अधिकार प्राप्त हो जाए तो उस

का विवाह हो जाने से यह समाप्त नहीं होता। विवाह के उपरान्त भी बना रहता है

वह बेदखल नहीं होता। एक हिंदू पुरूष के संपत्ति के उत्तराधिकारी पुत्र,

पुत्री, विधवा मां, मृतक पुत्र का पुत्र, मृतक पुत्र की पुत्री, मृतक

पुत्री के बेटा-बेटी, मृतक बेटे की विधवा, मृतक बेटे के बेटे का बेटा, मृतक

बेटे के बेटे की विधवा, मृतक बेटे के मृतक बेटे की बेटी हो सकते है। पिता

की स्वअर्जित संपत्ति पर उन के जीवनकाल में उन के अतिरिक्त किसी का कोई

अधिकार नहीं होता है। वह उसे वे बेच सकतै है, दान कर सकते है या फिर वसीयत

कर सकते है। यदि पिता के पास कोई पुश्तैनी संपत्ति है, (ऐसी संपत्ति जो आप

के पिता या दादा या परदादा को 17 जून 1956 के पूर्व उन के पिता या पुरुष

पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई थी तथा उस संपत्ति की आय से खरीदी

गई संपत्ति पुश्तैनी संपत्ति हैं) तो उस में पिता की सभी संतानों का हिस्सा

होता है और उसे न तो वह किसी को दे सकता है और न ही विक्रय कर सकता है। वह

केवल उस संपत्ति में अपना हिस्सा हस्तान्तरित कर सकते हैं। लेकिन संपत्ति

का बँटवारा पत्र का पंजीकृत होना जरूरी है। यदि वह पंजीकृत नहीं है तो

मान्य नहीं होगा, लेकिन यदि पहले बँटवारा हो चुका हो और बाद में बँटवारे का

ज्ञापन लिख कर उसे नोटेरी से सत्यापित कराया गया हो तो वह बँटवारे की सही

सबूत हो सकता है।



जब तक माता पिता जीवित हैं, उन की संपत्ति पर किसी का कोई अधिकार नहीं

है। पुत्र को वयस्क अर्थात18 वर्ष का होने तक तथा पुत्री का उस के विवाहित

होने तक मात्र भरण पोषण का अधिकार है। स्त्री का पति से तलाक न होने पर वह

संतानों के समान ही पति की संपत्ति की उत्तराधिकारी है। पिता के पेंशन की

अधिकारी सिर्फ आप की मां होती है, लेकिन ग्रेच्युटी और अन्य लाभ जो भी

उन्हें मिले हैं, उन की वे ट्रस्टी मात्र होती हैं, उस पर मां के साथ ही

सभी बच्चों का बराबर अधिकार होता है। पैतृक संपत्ति में पुत्रियों को भी

पुत्रों के समान अधिकार दिया गया है, लेकिन यह अधिकार केवल पैतृक संपत्ति

में ही है। पत्नी के नाम से खरीदी गई संपत्ति जिस के क्रय मूल्य का भुगतान

पति ने किया है, उसके लिए यह माना जाएगा कि वह पत्नी के हितों के लिए

खरीदी गई है, लेकिन यदि पति यह साबित कर देता है कि वह उस की पत्नी के

हितों के लिए नहीं खरीदी गई थी तो वह संपत्ति पति की ही मानी जाएगी। माता

पिता की संपत्ति यदि उन की स्वअर्जित है तो उस पर उन का पूर्ण अधिकार है।

वे पुत्र को उस संपत्ति से निकलने को कह सकते हैं, लेकिन पुत्र न निकले तो

जबरन निकाला नहीं जा सकता है। उसके लिए उन्हें पुत्र के वहाँ रहने की

अनुज्ञा (लायसेंस) समाप्त करनी होगी। फिर भी पुत्र घर नहीं छोड़ता है, उसके

विरुद्ध संपत्ति पर कब्जा प्राप्त करने के लिए पिता दीवानी वाद कर सकता

है।



मुसलमानों (शिया और सुन्नी) को उत्तराधिकार



शिया और सुन्नियों के लिए अलग-अलग नियम हैं। लेकिन सामान्य नियम दोनों

पर लागू होते हैं अंतिम संस्कार के खर्च और ऋ णों के भुगतान के बाद बची

संपत्ति का केवल एक तिहाई वसीयत के रुप में दिया जा सकता है । पुरुष वारिस

को महिला वारिस से दोगुना हिस्सा मिलता है ।



वंश-परंपरा में (जैसे पुत्र-पोता) नजदीकी रिश्ते (पुत्र) के होने पर दूर के रिश्ते (पोते) को हिस्सा नहीं मिलता है ।



ईसाइयों को उत्तराधिकार



विशेष विवाह कानून के तहत विवाह करने वाले तथा भारत में रहने वाले

यूरोपीय, एंग्लो इंडियन तथा यहूदी भी इसी कानून के तहत आते हैं । विधवा को

एक तिहाई संपत्ति पाने का हक है । बाकी दो तिहाई मृतक की सीधी वंश परंपरा

के उत्तराधिकारियों को मिलता है। बेटे और बेटियों को बराबर का हिस्सा मिलता

है ।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Hema chauhan on 29-03-2022

उत्तर प्रदेश मे कृषि भूमि में शादी शुदा बेटी का हक़ है या नही





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