Dal Badal Kanoon Kab Lagu Hua दल बदल कानून कब लागू हुआ

दल बदल कानून कब लागू हुआ





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Comments Aaaa on 17-03-2023

Dal Badal per rok sabse pahle kis rajya mein lagi

Harsh on 02-02-2023

Bharat me dal badl kanun kb bana

Mitali sonkar on 28-10-2022

Dal badal kanun se sambandhit case kaun sa hai


GkExams on 12-05-2019

संविधान के दलबदल विरोधी कानून के संशोधित अनुच्छेद 101, 102, 190 और 191 का संबंध संसद तथा राज्य विधानसभाओं में दल परिवर्तन के आधार पर सीटों से छुट्टी और अयोग्यता के कुछ प्रावधानों के बारे में है। दलबदल विरोधी कानून भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची जोड़ा गया है जिसे संविधान के 52वें संशोधन के माध्यम से वर्ष 1985 में पारित किया गया था। इस कानून में विभिन्न संवैधानिक प्रावधान थे और इसकी विभिन्न आधारों पर आलोचना भी हुयी थी।



अधिनियम की विशेषताएं



दलबदल विरोधी कानून की विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है:



यदि एक व्यक्ति को दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो वह संसद के किसी भी सदन का सदस्य होने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

यदि एक व्यक्ति को दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो विधान सभा या किसी राज्य की विधान परिषद की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

दसवीं अनुसूची के अलावा- संविधान की नौवीं अनुसूची के बाद, दसवीं अनुसूची को शामिल किया गया था जिसमें अनुच्छेद 102 (2) और 191 (2) को शामिल किया गया था।



संवैधानिक प्रावधान निम्नवत् हैं:



75 (1 क) यह बताता है कि प्रधानमंत्री, सहित मंत्रियों की कुल संख्या, मंत्री परिषद लोक सभा के सदस्यों की कुल संख्या के पंद्रह प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

75 (1 ख) यह बताता है कि संसद या संसद के सदस्य जो किसी भी पार्टी से संबंध रखते हैं और सदन के सदस्य बनने के लिए अयोग्य घोषित किये जा चुकें हैं तो उन्हें उस अवधि से ही मंत्री बनने के लिए भी अयोग्य घोषित किया जाएगा जिस तारीख को उन्हें अयोग्य घोषित किया गया है।

102 (2) यह बताता है कि एक व्यक्ति जिसे दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित कर दिया गया है तो वह संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनने के लिए अयोग्य होगा।

164 (1 क) यह बताता है कि मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या, उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के पंद्रह प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

164 (1 ख) यह बताता है कि किसी राज्य के किसी भी विधानमंडल सदन के सदस्य चाहे वह विधानसभा सभा सदस्य हो या विधान परिषद का सदस्य, वह किसी भी पार्टी से संबंध रखता हो और वह उस सदन के सदस्य बनने के लिए अयोग्य घोषित किये जा चुकें हैं तो उन्हें उस अवधि से ही मंत्री बनने के लिए भी अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा जिस तारीख को उन्हें अयोग्य घोषित किया गया है।

191 (2) यह बताता है कि एक व्यक्ति जिसे दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित कर दिया गया है तो वह राज्य के किसी भी सदन चाहे वो विधान सभा हो या विधान परिषद, का सदस्य बनने के लिए भी अयोग्य होगा।

361 ख - लाभप्रद राजनीतिक पद पर नियुक्ति के लिए अयोग्यता।



अधिनियम का आलोचनात्मक मूल्यांकन



दलबदल विरोधी कानून को भारत की नैतिक राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में माना गया है। इसने विधायकों या सांसदों को राजनैतिक माईंड सेट के साथ नैतिक और समकालीक राजनीति करने को मजबूर कर दिया है। दलबदल विरोधी कानून ने राजनेताओं को अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए गियर शिफ्ट करने के लिए हतोत्साहित किया। हालांकि, इस अधिनियम में कई कमियां भी हैं और यहां तक कि यह कई बार दलबदल को रोकने में विफल भी रहा है। इसे निम्नलिखित कथनों से और गंभीर तरीके से समझा जा सकता है:



लाभ -



पार्टी के प्रति निष्ठा के बदलाव को रोकने से सरकार को स्थिरता प्रदान करता है।

पार्टी के समर्थन के साथ और पार्टी के घोषणापत्रों के आधार पर निर्वाचित उम्मीदवारों को पार्टी की नीतियों के प्रति वफादार बनाए रखता है।

इसके अलावा पार्टी के अनुशासन को बढ़ावा देता है।



नुकसान -



दलों को बदलने से सांसदों को रोकने से यह सरकार की संसद और लोगों के प्रति जवाबदेही कम कर देता है।

पार्टी की नीतियों के खिलाफ असंतोष को रोकने से सदस्य की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ हस्तक्षेप करता है।

इसलिए, कानून का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक दलबदल की बुराई से निपटने या मुकाबला करना था। एक सदस्य तब अयोग्य घोषित हो सकता है जब वह स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता को त्याग देता है और जब वह पार्टी द्वारा जारी किए गये दिशा निर्देश के विपरीत वोट (या पूर्व अनुज्ञा) करता है/करती है।


GkExams on 12-05-2019

संविधान के दलबदल विरोधी कानून के संशोधित अनुच्छेद 101, 102, 190 और 191 का संबंध संसद तथा राज्य विधानसभाओं में दल परिवर्तन के आधार पर सीटों से छुट्टी और अयोग्यता के कुछ प्रावधानों के बारे में है। दलबदल विरोधी कानून भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची जोड़ा गया है जिसे संविधान के 52वें संशोधन के माध्यम से वर्ष 1985 में पारित किया गया था। इस कानून में विभिन्न संवैधानिक प्रावधान थे और इसकी विभिन्न आधारों पर आलोचना भी हुयी थी।



अधिनियम की विशेषताएं



दलबदल विरोधी कानून की विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है:



यदि एक व्यक्ति को दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो वह संसद के किसी भी सदन का सदस्य होने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

यदि एक व्यक्ति को दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो विधान सभा या किसी राज्य की विधान परिषद की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

दसवीं अनुसूची के अलावा- संविधान की नौवीं अनुसूची के बाद, दसवीं अनुसूची को शामिल किया गया था जिसमें अनुच्छेद 102 (2) और 191 (2) को शामिल किया गया था।



संवैधानिक प्रावधान निम्नवत् हैं:



75 (1 क) यह बताता है कि प्रधानमंत्री, सहित मंत्रियों की कुल संख्या, मंत्री परिषद लोक सभा के सदस्यों की कुल संख्या के पंद्रह प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

75 (1 ख) यह बताता है कि संसद या संसद के सदस्य जो किसी भी पार्टी से संबंध रखते हैं और सदन के सदस्य बनने के लिए अयोग्य घोषित किये जा चुकें हैं तो उन्हें उस अवधि से ही मंत्री बनने के लिए भी अयोग्य घोषित किया जाएगा जिस तारीख को उन्हें अयोग्य घोषित किया गया है।

102 (2) यह बताता है कि एक व्यक्ति जिसे दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित कर दिया गया है तो वह संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनने के लिए अयोग्य होगा।

164 (1 क) यह बताता है कि मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या, उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के पंद्रह प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

164 (1 ख) यह बताता है कि किसी राज्य के किसी भी विधानमंडल सदन के सदस्य चाहे वह विधानसभा सभा सदस्य हो या विधान परिषद का सदस्य, वह किसी भी पार्टी से संबंध रखता हो और वह उस सदन के सदस्य बनने के लिए अयोग्य घोषित किये जा चुकें हैं तो उन्हें उस अवधि से ही मंत्री बनने के लिए भी अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा जिस तारीख को उन्हें अयोग्य घोषित किया गया है।

191 (2) यह बताता है कि एक व्यक्ति जिसे दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित कर दिया गया है तो वह राज्य के किसी भी सदन चाहे वो विधान सभा हो या विधान परिषद, का सदस्य बनने के लिए भी अयोग्य होगा।

361 ख - लाभप्रद राजनीतिक पद पर नियुक्ति के लिए अयोग्यता।



अधिनियम का आलोचनात्मक मूल्यांकन



दलबदल विरोधी कानून को भारत की नैतिक राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में माना गया है। इसने विधायकों या सांसदों को राजनैतिक माईंड सेट के साथ नैतिक और समकालीक राजनीति करने को मजबूर कर दिया है। दलबदल विरोधी कानून ने राजनेताओं को अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए गियर शिफ्ट करने के लिए हतोत्साहित किया। हालांकि, इस अधिनियम में कई कमियां भी हैं और यहां तक कि यह कई बार दलबदल को रोकने में विफल भी रहा है। इसे निम्नलिखित कथनों से और गंभीर तरीके से समझा जा सकता है:



लाभ -



पार्टी के प्रति निष्ठा के बदलाव को रोकने से सरकार को स्थिरता प्रदान करता है।

पार्टी के समर्थन के साथ और पार्टी के घोषणापत्रों के आधार पर निर्वाचित उम्मीदवारों को पार्टी की नीतियों के प्रति वफादार बनाए रखता है।

इसके अलावा पार्टी के अनुशासन को बढ़ावा देता है।



नुकसान -



दलों को बदलने से सांसदों को रोकने से यह सरकार की संसद और लोगों के प्रति जवाबदेही कम कर देता है।

पार्टी की नीतियों के खिलाफ असंतोष को रोकने से सदस्य की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ हस्तक्षेप करता है।

इसलिए, कानून का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक दलबदल की बुराई से निपटने या मुकाबला करना था। एक सदस्य तब अयोग्य घोषित हो सकता है जब वह स्वेच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता को त्याग देता है और जब वह पार्टी द्वारा जारी किए गये दिशा निर्देश के विपरीत वोट (या पूर्व अनुज्ञा) करता है/करती है।






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