Gond Jati Pramaan Patra गोंड जाति प्रमाण पत्र

गोंड जाति प्रमाण पत्र



GkExams on 03-01-2019

नायक जाति के एसटी (अनुसूचित जनजाति) सर्टिफिकेट रद करने के बाद जिला प्रशासन अब जाति के एसटी सर्टिफिकेट को लेकर फैसले की तैयारी में है। निर्णय के लिए डीएम ने बृहस्पतिवार को जिला स्तरीय स्क्रूटनी कमेटी की बैठक बुलाई है। गोंड, एसटी हैं या नहीं, इसकी जांच रिपोर्ट के साथ सभी एसडीएम और तहसीलदार को बैठक में आने के लिए कहा गया है। माना जा रहा है कि जाति की श्रेणी का निर्णय जिला स्तर पर ही कर लेने के लिए यह कवायद की जा रही है।

कहार और इसकी कई उपजातियों में शुमार समाज के लोगों का पुराना पेशा डोली उठाने से लेकर शादी की रस्मों से जुड़े ऐसे कामों को संभालना रहा है, जो आमदनी का जरिया भी बनते हैं। इस तरह की रस्म और वैवाहिक मौके के काम अब सिर्फ अति पिछड़े इलाकों में ही बचे हैं। इस तरह के कामों से जुड़े रहने के कारण ही समाज में इन्हें पिछड़ा माना गया और पिछड़े वर्ग में शामिल किया गया। विभिन्न तहसीलों से ऐसे तमाम लोगों को पिछड़ी जाति का प्रमाणपत्र भी दिया गया। यहां तक सब ठीक चलता रहा लेकिन गुजरते वक्त में समाज के बीच से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग तेज होने लगी। इसे लेकर करीब तीन साल पहले चौरीचौरा में शुरू हुआ आंदोलन कमिश्नरी में भी कई दिनों तक जारी रहा। जातियों के इतिहास को करीब से जानने वाले मानते हैं कि हार या इस जैसी अन्य उप जाति के लोग कभी भी समाज में अस्पृश्य नहीं रहे। शादी या अन्य संस्कारों में भी उनसे ऐसा कोई काम नहीं लिया जाता था जिससे समाज परहेज करता हो। जानकार मानते हैं कि इस तरह की बातों के मुद्दा बनने की जड़ में जाति के आधार पर मिलने वाला आरक्षण का लाभ है।
एसटी हैं गोंड,
सिर्फ प्रशासन नहीं मानता : दुर्गा
कहारों की मांग को जायज ठहराते हुए अखिल भारतीय आदिवासी संघ के प्रांतीय सचिव एवं अधिवक्ता दुर्गा प्रसाद का कहना है कि की उपजाति धुरिया उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के कैमूर क्षेत्र से लेकर वाराणसी, बलिया, गोरखपुर, बस्ती आदि मंडलों में ज्यादा है। साल 1891, 1911, 1921, 1931 और 1941 की गणना में इन्हें जनजाति कहा गया है। 1950 में एससी/एसटी एक्ट बना, जिसमें इस जाति को एससी की श्रेणी में रखा गया। बाकी जगहों के को इस श्रेणी में नही रखा गया। 1976 में पार्लियामेंट ने एससी की लिस्ट में परिवर्तन किया और पूरे प्रदेश के को एससी में रख दिया। इसके बाद 1981 की जनगणना में भी बिरादरी के लोगों को एससी में रखा गया और गोरखपुर में 13792 लोग चिह्नित हुए थे। 2001 तक की जनगणना में इस बिरादरी को एससी सूची में रखा गया। इसके बाद प्रदेश सरकार ने 2002 में इन्हें एसटी की सूची में दर्ज कर दिया। साथ ही एक्ट पारित कर की उपजाति धुरिया को भी एसटी की सूची में शामिल कर लिया गया। इसे लेकर शासनादेश भी जारी हुए लेकिन स्थानीय स्तर पर प्रशासन इसे मान नहीं रहा है।
कहार जाति के लोगों को ही प्रचलित भाषा में कहा जाता है। ये शादी में डोली ले जाने, पानी भरने और बर्तन साफ करने का काम क रते हैं। ये कभी भी समाज में अछूत नहीं रहे हैं।
- तहसीलदार कसया, कुशीनगर (पत्र दिनांक 29 फरवरी 2008)
इस तहसील में गोंड, गौड़ को शासनादेश से अनुसूचित जाति माना गया है। इस तहसील में कहार जाति के लोगों को भी गौड़ कहार कहा जाता है। इनका मुख्य पेशा पानी भरना व डोली ले जाना रहा है।
- तहसीलदार हाटा, कुशीनगर
मूलत: कैमूर जिले के अनुसूचित जनजाति में आते हैं। सहजनवां में इनका विस्थापित होकर आना साबित नहीं होता। इसलिए यह उस श्रेणी में नहीं आते।
- राम अभिलाष, एसडीएम सहजनवां (डीएम को संबोधित पत्र दिनांक 10 मार्च 2010)
गोंड जाति कहार की उपजाति है, जो पिछड़ी जाति में मानी जाती है। इसलिए इस आधार पर पूर्व में जाति के अभ्यर्थी को जारी अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र निरस्त किया जाता है।
-रामविलास राम, तहसीलदार, निचलौल (आदेश, 3 अक्टूबर 2001)







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