Sangam Sahitya Kavi
'संगम' शब्द का अर्थ है - संघ, परिषद्, गोष्ठी अथवा संस्थान। वास्तव में संगम, तमिल कवियों, विद्वानों, आचार्यों, ज्योतिषियों एवं बुद्धिजीवियों की एक परिषद् थी। तमिल भाषा में लिखे गये प्राचीन साहित्य को ही संगम साहित्य कहा जाता है। सर्वप्रथम इन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य राजाओं के राजकीय संरक्षण में किया गया। संगम का महत्त्वपूर्ण कार्य होता था, उन कवियों व लेखकों की रचनाओं का अवलोकन करना, जो अपनी रचाओं को प्रकाशित करवाना चाहते थे। परिषद् अथवा संगम की संस्तुति के उपरान्त ही वह रचना प्रकाशित हो पाती थी। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि, इस प्रकार की तीन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में किया गया।
तमिल अनुश्रुतियों के अनुसार तीन परिषदों (संगम) का आयोजन हुआ था, 'प्रथम संगम', 'द्वितीय संगम' और 'तृतीय संगम'। तीनों संगम कुल 9950 वर्ष तक चले। इस अवधि में लगभग 8598 कवियों ने अपनी रचनाओं से संगम साहित्य की उन्नति की। कोई 197 पाण्ड्य शासकों ने इन संगमों को अपना संरक्षण प्रदान किया। 'संगम साहित्य' का रचनाकाल विवादास्पद है। इस विषय में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है, फिर भी जो संकेत मिलते हैं, उनके आधार पर यही अनुमान लगाया जा सकता है कि, 'संगम साहित्य' का संकलन 100 से 600 ई. के मध्य हुआ होगा। संगम साहित्य में उल्लिखित 'नरकुल' शब्द 'स्मरण प्रश्न' के अर्थ में प्रयुक्त होता था।
शब्द | अर्थ | देवता |
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मुल्लन | चारागाह तथा जंगल | विष्णु देवता से सम्बन्धित |
मरूदम | उपजाऊ नदी घाटी या श्रुतेक्षेत्र | इन्द्र से सम्बन्धित |
कुरिंजि | पहाड़ियाँ तथा वन | मरुगन से सम्बन्धित |
नेतल | तटीय क्षेत्र | वरुण से सम्बन्धित |
सगंम साहित्य के वे ग्रंथ, जिनका काफ़ी महत्त्वपूर्ण स्थान है, इस प्रकार से हैं-
द्वितीय संगम का एक मात्र शेष ग्रंथ ‘तोल्काप्पियम’ अगस्त्य ऋषि के बारह योग्य शिष्यों में से एक 'तोल्काप्पियर' द्वारा लिखा गया ग्रंथ है। सूत्र शैली में रचा गया यह ग्रंथ तमिल भाषा का प्राचीनतम व्याकरण ग्रंथ है।
लेखक | कृतियाँ |
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कुलशेखर | पेरूमल, तिरूमोली |
चेरामन पेरुमल नयनार | आदिमूल |
शेक्किलार | पेरिय पुराण |
ओट्टकुट्टन | कलिंगुत्तिपुराण |
एत्तुतौकै तीसरे संगम में संग्रह किये गये ग्रंथ हैं। एत्तुतौकै में 8 संग्रह मिलते हैं, जो इस प्रकार हैं-
शब्द | अर्थ |
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कुरिचि | आखेट एवं खाद्य संग्रहण |
मुल्लई | पशुपालन एवं खाद्य उत्पादन |
मरुदम | खाद्य उत्पादन एवं भण्डारण |
नडवल | मत्स्यग्रहण एवं नमक उत्पादन |
दस गीतों के संग्रह वाला यह ग्रंथ संगम का दूसरा संग्रह ग्रंथ है। इसकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
तीसरे संगम के इस तीसरे बड़े संग्रह में नीति एवं उपदेशपरक लघु गीत संग्रहीत हैं।
इन सभी संग्रहों के अतिरिक्त तृतीय संगम में बड़े महाकाव्य भी रचे गये, जो निम्नलिखित हैं -
यह 'तमिल साहित्य' का प्रथम महाकाव्य है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - ‘नूपुर की कहानी’। इस महाकाव्य की रचना चेर शासक 'सेन गुट्टुवन' के भाई 'इलांगो आदिगल' ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में की थी। इस महाकाव्य की सम्पूर्ण कथा नुपूर के चारों ओर घूमती है। इस महाकाव्य के नायक और नायिका 'कोवलन' और 'कण्णगी' हैं।
इस महाकाव्य की रचना मदुरा के एक बौद्ध व्यापारी 'सीतलै सत्तनार' ने की। 'मणिमेखलै' की रचना 'शिलप्पादिकारम' के बाद की गयी। ऐसी मान्यता है कि जहाँ पर 'शिलप्पादिकारम' की कहानी ख़त्म होती है, वहीं से 'मणिमेखलै' की कहानी प्रारम्भ होती है। 'सत्तनार' कृत इस महाकाव्य की नायिका ‘मणिमेखलै’, 'शिलप्पादिकारम' के नायक 'कोवलन्' की दूसरी पत्नी 'माधवी वेश्या' की पुत्री थी।
'जीवक चिंतामणि' जैन मुनि एवं महाकवि 'तिरुतक्कदेवर' की अमर कृति है। इस ग्रंथ को तमिल साहित्य के 5 प्रसिद्ध ग्रंथों में गिना जाता है। 13 खण्डों में विभाजित इस ग्रंथ में कुल क़रीब 3,145 पद हैं। ‘जीवक चिन्तामणि’ महाकाव्य में कवि ने जीवक नामक राजकुमार का जीवनवृत्त प्रस्तुत किया है। इस काव्य का नायक आठ विवाह करता है। वह जीवन के समस्त सुख और दुःख को भोग लेने के उपरान्त राज्य और परिवार का त्याग कर सन्न्यास ग्रहण कर लेता है।
उपर्युक्त तीन महाकाव्यों के अतिरिक्त संगमकालीन दो अन्य महाकाव्य ‘वलयपत्ति’ एवं ‘कुडलकेशि’ माने जाते हैं, किन्तु इनकी विषय वस्तु के संदर्भ में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है।
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