Sangam Sahitya Kavi संगम साहित्य कवी

संगम साहित्य कवी



GkExams on 01-02-2019


'संगम' शब्द का अर्थ है - संघ, परिषद्, गोष्ठी अथवा संस्थान। वास्तव में संगम, तमिल कवियों, विद्वानों, आचार्यों, ज्योतिषियों एवं बुद्धिजीवियों की एक परिषद् थी। तमिल भाषा में लिखे गये प्राचीन साहित्य को ही संगम साहित्य कहा जाता है। सर्वप्रथम इन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य राजाओं के राजकीय संरक्षण में किया गया। संगम का महत्त्वपूर्ण कार्य होता था, उन कवियों व लेखकों की रचनाओं का अवलोकन करना, जो अपनी रचाओं को प्रकाशित करवाना चाहते थे। परिषद् अथवा संगम की संस्तुति के उपरान्त ही वह रचना प्रकाशित हो पाती थी। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि, इस प्रकार की तीन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में किया गया।

तमिल अनुश्रुति

तमिल अनुश्रुतियों के अनुसार तीन परिषदों (संगम) का आयोजन हुआ था, 'प्रथम संगम', 'द्वितीय संगम' और 'तृतीय संगम'। तीनों संगम कुल 9950 वर्ष तक चले। इस अवधि में लगभग 8598 कवियों ने अपनी रचनाओं से संगम साहित्य की उन्नति की। कोई 197 पाण्ड्य शासकों ने इन संगमों को अपना संरक्षण प्रदान किया। 'संगम साहित्य' का रचनाकाल विवादास्पद है। इस विषय में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है, फिर भी जो संकेत मिलते हैं, उनके आधार पर यही अनुमान लगाया जा सकता है कि, 'संगम साहित्य' का संकलन 100 से 600 ई. के मध्य हुआ होगा। संगम साहित्य में उल्लिखित 'नरकुल' शब्द 'स्मरण प्रश्न' के अर्थ में प्रयुक्त होता था।

संगमकालीन क्षेत्र एवं संबन्धित देवता
शब्दअर्थदेवता
मुल्लनचारागाह तथा जंगलविष्णु देवता से सम्बन्धित
मरूदमउपजाऊ नदी घाटी या श्रुतेक्षेत्रइन्द्र से सम्बन्धित
कुरिंजिपहाड़ियाँ तथा वनमरुगन से सम्बन्धित
नेतलतटीय क्षेत्रवरुण से सम्बन्धित

महत्त्वपूर्ण ग्रंथ

सगंम साहित्य के वे ग्रंथ, जिनका काफ़ी महत्त्वपूर्ण स्थान है, इस प्रकार से हैं-

  • तोल्काप्पियम
  • एत्तुतौकै

तोल्काप्पियम

द्वितीय संगम का एक मात्र शेष ग्रंथ ‘तोल्काप्पियम’ अगस्त्य ऋषि के बारह योग्य शिष्यों में से एक 'तोल्काप्पियर' द्वारा लिखा गया ग्रंथ है। सूत्र शैली में रचा गया यह ग्रंथ तमिल भाषा का प्राचीनतम व्याकरण ग्रंथ है।

संगम कालीन कृतियाँ एवं लेखक
लेखककृतियाँ
कुलशेखरपेरूमल, तिरूमोली
चेरामन पेरुमल नयनारआदिमूल
शेक्किलारपेरिय पुराण
ओट्टकुट्टनकलिंगुत्तिपुराण

एत्तुतौकै (अष्ट पदावली)

एत्तुतौकै तीसरे संगम में संग्रह किये गये ग्रंथ हैं। एत्तुतौकै में 8 संग्रह मिलते हैं, जो इस प्रकार हैं-

  1. नणिण्नै - इसमें लगभग 400 पद्य मिलते हैं, जिनकी रचना 175 कवियों ने मिलकर की थी।
  2. कुरुन्थोकै - इसमें लगभग 402 छोटे गीत मिलते हैं। ये प्रेम प्रधान गीत तमिल सामन्त 'पूरिक्कों' के संरक्षण में संग्रहीत किये गये।
  3. एन्कुरूनूर - 'किलार' द्वारा संग्रहीत 500 लघु गीतों वाले इस संग्रह में प्रेम के सभी लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं।
  4. पदित्रपल्ल - 8 कविताओं के इस संग्रह में चेर शासकों की प्रशंसा की गयी है।
  5. परिपादल - 24 कविताओं के इस संग्रह में देवता की प्रशंसा की गयी है।
  6. कलिथौके - इसमें प्रणय विषय पर आधारित 150 कविताओं का संग्रह किया गया है।
  7. अहनानूरू - प्रणय विषय पर आधारित 400 कविताओं का यह संग्रह मदुरा निवासी 'रुद्रशर्मा द्वारा' संग्रहीत किया गया।
  8. पुरनानूरु - 400 गीतों के इस संग्रह में राजाओं की प्रशंसा की गयी है। हालाँकि 'तृतीय संगम' के अधिकांश ग्रंथ नष्ट हो गये हैं, अपितु अवशिष्ट तमिल साहित्य इसी संगम से सम्बन्धित है, जो ग्रंथों और महाकाव्यों के रूप में मिलते हैं। यद्यपि महाकाव्यों को 'संगम युग' के बाद रखा जाता है। संगम साहित्य के अधिकांश ग्रंथ, 'साउथ इंडिया, शैव सिद्धान्त पब्लिशिंग सोसाइटी, तिलेवेल्ली' द्वारा प्रकाशित किये गये हैं।
संगमकालीन महत्त्वपूर्ण शब्दावलियाँ
शब्दअर्थ
कुरिचिआखेट एवं खाद्य संग्रहण
मुल्लईपशुपालन एवं खाद्य उत्पादन
मरुदमखाद्य उत्पादन एवं भण्डारण
नडवलमत्स्यग्रहण एवं नमक उत्पादन

पत्तुपात्तु (दशगीत)

दस गीतों के संग्रह वाला यह ग्रंथ संगम का दूसरा संग्रह ग्रंथ है। इसकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. तिरुमुरुकात्रुप्पदै- इसकी रचना 'नक्कीरर' ने की। इसमें संगमकालीन देवता 'मुरुगन' एवं उसके पर्वतीय स्थलों की प्रशंसा की गयी है।
  2. नेडुनल्वादै - 'नक्कीरर' की दस रचना में विरह का स्वाभाविक चित्र प्रस्तुत किया गया है। 'नक्कीरर' की तुलना अंग्रेज़ी लेखक 'जॉनसान' से की जाती है।
  3. पेरुम्पानात्रुप्पदै - 500 गीतों वाले इस संग्रह की रचना 'रुद्रक कन्नार' ने की। इस संग्रह से कांची के शासक 'तोण्डैमान इलण्डिरैयन' के विषय में ऐतिहासिक जानकारी मिलती है।
  4. 'पत्तिनपाल्लै - प्रणव विषय पर आधारित इस संग्रह की रचना 'रुद्रक कन्नार' ने की। ऐसा माना जाता है कि चोल नरेश करिकाल ने 'रुद्रक कन्नार' की रचनाओं से प्रभावित होकर उसे बहुत-सा धन उपहार में दिया। 'कन्नार' की इस रचना में चोल बन्दरगाह 'कावेरीपट्नम' के विषय में जानकारी मिलती है।
  5. पोरुनरात्रप्पदै - 'कन्नियार' द्वारा रचित इस कविता संग्रह में चोल नरेश करिकाल की प्रशंसा की गयी है।
  6. मदुरैकांची - 'मागुदि मरुथानर' द्वारा रचित इस संग्रह में पाण्ड्य नरेश 'तलैयालंगानम् नेडुन्जेलियन' की प्रशंसा की गयी है।
  7. सिरुपानत्रप्पदै - इस संग्रह से चेर, चोल एवं पाण्ड्य राजाओं, उनकीराजधानियों एवं उस समय की सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। इसके रचनाकार 'नथ्थनार' थे।
  8. मुल्लैप्पात्तु - 'नप्पुथनार' कृत इस संग्रह में एक रानी के पति-विरह का वर्णन किया गया है।
  9. कुरिन्विप्पात्तु - 'कपिलर' द्वारा रचित इस संग्रह में ग्रामीण जीवन की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।
  10. मलैपदुकदाम - 'कौशिकनार' द्वारा रचित 600 गीतों वाले इस संग्रह में प्रकृति चित्रण एवं नृत्यकला पर प्रकाश डाला गया है।

पदिनेकिकणक्कु (लघु उपदेश गीत)

तीसरे संगम के इस तीसरे बड़े संग्रह में नीति एवं उपदेशपरक लघु गीत संग्रहीत हैं।

महाकाव्य रचना

इन सभी संग्रहों के अतिरिक्त तृतीय संगम में बड़े महाकाव्य भी रचे गये, जो निम्नलिखित हैं -

शिलप्पादिकारम

मुख्य लेख : शिलप्पादिकारम

यह 'तमिल साहित्य' का प्रथम महाकाव्य है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - ‘नूपुर की कहानी’। इस महाकाव्य की रचना चेर शासक 'सेन गुट्टुवन' के भाई 'इलांगो आदिगल' ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में की थी। इस महाकाव्य की सम्पूर्ण कथा नुपूर के चारों ओर घूमती है। इस महाकाव्य के नायक और नायिका 'कोवलन' और 'कण्णगी' हैं।

मणिमेखलै

मुख्य लेख : मणिमेखलै

इस महाकाव्य की रचना मदुरा के एक बौद्ध व्यापारी 'सीतलै सत्तनार' ने की। 'मणिमेखलै' की रचना 'शिलप्पादिकारम' के बाद की गयी। ऐसी मान्यता है कि जहाँ पर 'शिलप्पादिकारम' की कहानी ख़त्म होती है, वहीं से 'मणिमेखलै' की कहानी प्रारम्भ होती है। 'सत्तनार' कृत इस महाकाव्य की नायिका ‘मणिमेखलै’, 'शिलप्पादिकारम' के नायक 'कोवलन्' की दूसरी पत्नी 'माधवी वेश्या' की पुत्री थी।

जीवक चिन्तामणि

मुख्य लेख : जीवक चिन्तामणि

'जीवक चिंतामणि' जैन मुनि एवं महाकवि 'तिरुतक्कदेवर' की अमर कृति है। इस ग्रंथ को तमिल साहित्य के 5 प्रसिद्ध ग्रंथों में गिना जाता है। 13 खण्डों में विभाजित इस ग्रंथ में कुल क़रीब 3,145 पद हैं। ‘जीवक चिन्तामणि’ महाकाव्य में कवि ने जीवक नामक राजकुमार का जीवनवृत्त प्रस्तुत किया है। इस काव्य का नायक आठ विवाह करता है। वह जीवन के समस्त सुख और दुःख को भोग लेने के उपरान्त राज्य और परिवार का त्याग कर सन्न्यास ग्रहण कर लेता है।


उपर्युक्त तीन महाकाव्यों के अतिरिक्त संगमकालीन दो अन्य महाकाव्य ‘वलयपत्ति’ एवं ‘कुडलकेशि’ माने जाते हैं, किन्तु इनकी विषय वस्तु के संदर्भ में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Sangum sahitiye kitne h on 24-11-2020

Sangum sahitiye kitne h





नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment