सिवाना दुर्ग Siwana Fort Barmer


REKHA CHAUDHARY at  2018-08-27  at 00:00:00
सिवाना दुर्ग Siwana Fort Barmer
सिवाना दुर्ग Siwana Fort Barmer

Siwana का Durg Jodhpur से 54 मील पश्चिम की ओर है। इसके पूर्व में नागौर, पश्चिम में malani, उत्तर में Pachpadra और दक्षिण में जालौर है। वैसे तो यह Durg चारों ओर रेतीले भाग से घिरा हुआ है परंतु इसके साथ-साथ यहां छप्पन के पहाड़ों का सिलसिला पुर्व-पश्चिम की सीध में 48 मील तक फैला हुआ है। इस पहाड़ी सिलसिले के अंतगर्त haldeshwar का पहाड़ सबसे ऊँचा है, जिस पर Siwana का सुदृढ़ Durg बना है।

Siwana के Durg का बड़ा गौरवशाली इतिहास है। प्रारंभ में यह प्रदेश पंवारों के आधीन था। इस वंश में वीर नारायण बड़ा प्रतापी शासक हुआ। उसी ने Siwana Durg को बनवाया था। तदन्तर यह Durg Chauhanों के अधिकार में आ गया। जब Allauddin ने Gujarat और Malwa को अपने अधिकार में लिया, तो इन प्रांतों में आवागमन के मार्ग को सुरक्षित रखने के लिए यह आवश्यक हो गया था कि वह मार्ग में पड़ने वाले Durgon पर भी नियंत्रण करे। इस नीति के अनुसार उसने Chittod तथा Ranthambhore को अपने अधिकार में कर लिया। परंतु Marwad से इन प्रांतों में जाने के मार्ग तब तक सुरक्षित नही हो सकते थे जब तक जलौर और Siwana के Durgon पर इसका अधिकार नही हो जाता। इस समय Siwana Chauhan शासक शीतलदेव के नियंत्रण में था। सीतलदेव ने Chittod तथा Ranthambhore जैसे सुदृढ़ Durgon को खिलजी शक्ति के सामने धराशायी होते हुए देखा था। इस कारण उसके मन में भय तो था, परंतु उसने Siwana के Durg की स्वतंत्रता को बनाए रखने की कामना भी थी। वह बिना युद्ध लड़े किलों को शत्रुओं के हाथ में सौंप देना अपने वंश, परंपरा और सम्मान के विरुद्ध समझता था। उसने कई रावों और रावतों को युद्ध में परास्त किया था एवं उसकी धाक सारे Rajasthan में जमी हुई थी। अत: उसके लिए बिना युद्ध लड़े खिलजियों को Durg सौंप देना असंभव था।

जब Allauddin ने देखा कि बिना युद्ध के किले पर अधिकार स्थापित करना संभव नही है तो उसने 2 जुलाई 1308 ई0 को एक बड़ी सेना किले को जीतने के लिए भेजी। इस सेना ने किले को चारों ओर से घेर लिया। शाही सेना के दक्षिणी पार्श्व को Durg के पूर्व और पश्चिम की तरफ लगा दिया एंव वाम पार्श्व को उत्तर की ओर। इन दोनों पार्श्व के मध्य मलिक कमलुद्दीन के नेतृत्व में एक सैनिक टुकड़ी रखी गई। राजपूत सैनिक भी शत्रुओं का मुकाबला करने के लिए किले के बुर्जों पर आ डटे। जब शत्रुओं ने मजनीकों से प्रक्षेपास्रों की बौछार शुरु की तो राजपूत सैनिकों ने अपने तीरों, गोफनों तथा तेल मे भीगे वस्रों में आग लगाकर शत्रु सेना पर फेंकना प्रारंभ किया। जब शाही सेना के कुछ दल किले की दीवारों पर चढ़ने का प्रयास करते तो राजपूत सैनिक उनके प्रयत्नों को विफल बना देते थे। लंबे समय तक शाही सेना को राजपूतों पर विजय प्राप्त करने का कोई अवसर नही मिला। इस अवधि में शत्रुओं को बड़ी छति उठानी पड़ी तथा उसके सेना नायक नाहर खाँ को अपने प्राण गंवाने पड़े। जब मुस्लिम सेना कई माह तक Durg पर अधिकार में असमर्थ रही तो स्वंय Allauddin एक विशाल सेना लेकर आ गया। उसने पूरी सैन्य शक्ति के साथ Durg का घेरा डाल दिया। अब तक लंबे संघर्ष के कारण Durg में रसद का आभाव हो गया था। जब सर्वनाश निकट दिखाई देने लगा तो राजपूत सैनिकों ने Durg के दरवाजे खोलकर शाही सेना पर धावा बोल दिया। वीर राजपूत शत्रुओं पर टुट पड़े और एक-एक करके वीरोचित गति को प्राप्त हुए। सीतल देव भी एक वीर योद्धा की तरह मारा गया। Durg पर अधिकार करने के बाद Allauddin ने कमालुद्दीन को इसका सूबेदार नियुक्त किया।

जब Allauddin के बाद खिलजियों की शक्ति कमजोर पड़ने लगी तो राव मल्लीनाथ के भाई Rathore जैतमल ने इस Durg पर कब्जा कर लिया और कई वर्षों तक जैतमलोतों की इस Durg पर प्रभुता बनी रही। जब मालदेव Marwad का शासक बना तो उसने Siwana Durg को अपने अधिकार में ले लिया। यहां उसने मस्लिम आक्रमणकारियों का मुकाबला करने के लिए युद्धोपयोगी सामग्री को जुटाया। Akbar के समय राव चन्द्रसेन ने Siwana Durg में रहकर बहुत समय तक मुगल सेनाओं का मुकाबला किया। परंतु अंत में चन्द्रसेन को Siwana छोड़कर पहाड़ों में जाना पड़ा। Akbar ने अपने पोषितों के दल को बढ़ाने के लिए इस Durg को Rathore रायमलोत को दे दिया। लेकिन जब जसबंत सिंह की मृत्यु के पश्चात् Marwad में स्वतंत्रता संग्राम आरंभ हुआ तो Siwana की तरफ भी सैनिक अभियान आरंभ हो गए। इस तरह Marwad के इतिहास के साथ Siwana के शौर्य की कहानी जुड़ी हुई है।


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